Chorus Waves: वैज्ञानिकों की एक टीम ने पृथ्वी से हजारों मील दूर रहस्यमय चिरपिंग वेव्स का पता लगाया है. इनकी आवाज पक्षियों के सुबह-सुबह चहचहाने जैसी है. ये 'कोरस वेव्स' असल में पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाली कंपन है. लेकिन इनके वजह से पार्टिकल्स की स्पीड बहुत अधिक हो जाती है जो एस्ट्रोनॉट्स और स्पेसक्राफ्ट के लिए घातक हो सकते हैं.
क्या हैं कोरस वेव्स?
कोरस वेव्स को 'व्हिस्लर-मोड कोरस वेव्स' भी कहा जाता है. ये ऊर्जा की लहरें होती हैं जो धरती के चुंबकीय क्षेत्र (मैग्नेटोस्फीयर) में गूंजती हैं. ये वेव्स सेकंड के कुछ हिस्सों के लिए ही पैदा होती हैं. इसे पहली बार World War 1 में रेडियो ऑपरेटर्स द्वारा सुना गया था जब वह दुश्मन का सिग्नल पकड़ने की कोशिश कर रहे थे. अब तक वैज्ञानिक ये मानते आ रहे थे कि ये वेव्स धरती के करीब होती हैं लेकिन नई रिसर्च में इन्हें पृथ्वी से लगभग 1,65,000 किमी की दूरी पर रिकॉर्ड किया गया. इस नई खोजने मौजूद वैज्ञानिक सिद्धांतों को भी चुनौती दी है.
कैसे बनती हैं ये वेव्स?
कोरस वेव्स को अब तक पृथ्वी, बुध (Mercury), बृहस्पति (Jupiter), शनि (Saturn), यूरेनस (Uranus) और नेपच्यून (Neptune) जैसे ग्रहों के चारों ओर पाया गया है. इसने पास वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र है .वैज्ञानिकों का मानना है कि इन वेव्स का निर्माण प्लाज्मा में अस्थिरता(Plasma Instability)के कारण होता है. जब सूर्य से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन्स चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के साथ घूमते हैं, तो आमतौर वे स्पाइरल मूवमेंट में रहते हैं. लेकिन जब चुंबकीय क्षेत्र में कोई गड़बड़ी होती है, तो ये इलेक्ट्रॉन्स 'कोरस वेव्स' पैदा करते हैं. ये वेव्स इलेक्ट्रॉन्स को बेहद तेज रफ्तार (लगभग प्रकाश की गति तक)पर ले जा सकती हैं.
अंतरिक्ष में नया खतरा
हालांकि इस खोज ने अंतरिक्ष में नए खतरे की तरफ इशारा किया है. इन कोरस वेव्स के कारण अंतरिक्ष में इलेक्ट्रॉन्स की स्पीड इतनी तेज हो जाती है कि ये किसी स्पेसक्राफ्ट को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसके अलावा इसका बहुत बड़ा असर एस्ट्रोनॉट्स पर भी पड़ता है.