Climate Changes: वर्ष 2015 में एक ऐतिहासिक समझौते के तहत लगभग 200 देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 1800 के दशक के अंत के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमति व्यक्त की थी जिसका सीधा मकसद जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसानों से बचना था. लेकिन फिर भी कुछ देशों ने रिकॉर्ड मात्रा में कोयला और गैस जलाना और बड़े पैमाने पर जंगलों को काटना जारी रखा.
गलत दिशा में बढ़ रही हैं चीजें
लीड्स विश्वविद्यालय में प्रीस्टले सेंटर फॉर क्लाइमेट फ्यूचर्स के निदेशक एवं प्रमुख लेखक प्रोफेसर पियर्स फोर्स्टर ने कहा कि चीजें गलत दिशा में बढ़ रही हैं. आगे उन्होंने कहा कि हमने कुछ परिवर्तन देखे हैं जिसमें पृथ्वी का तापमान और समुद्र के स्तर में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. हालांकि नए अध्ययन के अनुसार 2025 की शुरुआत में Carbon Budget घटकर 130 बिलियन टन रह जाएगा.
3 साल का समय
अगर दुनिया भर में होने वाला कार्बन उत्सर्जन लगभग 40 बिलियन टन पर बना रहता है तो 130 बिलियन टन के कार्बन बजट को खत्म होने तक लगभग 3 साल का समय देगा. शोधकर्ताओं ने कहा कि इससे विश्व पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्य को पार करने के लिए जिम्मेदार हो जाएंगे. पिछले साल दुनिया भर के वायु तापमान 1800 दशक के अंत के तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सिय अधिक था.
महासागरों में बढ़ती गर्मी
लगभग 90 प्रतिशत एक्सट्रा गर्मी महासागरों द्वारा सोख ली जाती है. इससे समुद्री जीवन में तो भारी बदलाव आएंगे ही साथ ही पानी का लेवल भी बहुत बढ़ेगा क्योंकि पिघतले हुए ग्लेशियर समुद्रों में एक्सट्रा पानी भी डाल रहे हैं. 1990 के दशक के बाद से वैश्विक समुद्र स्तर में बढ़ोतरी की दर दोगुनी हो गई है जिससे वो लाखों लोग जो दुनिया भर के तटीय क्षेत्रों में रहते हैं उनके लिए बाढ़ का खतरा काफी बढ़ गया है.