Chandipura Virus Vaccine: कोरोना और निपाह के बीच देश में एक ऐसा वायरस भी जिसके बारे में बहुत लोगों ने सुना है, हालांकि इसका तोड़ निकाल लिया गया है. लेकिन साथ ही यह अब तक का सबसे जानलेवा संकमण रहा है. चांदीपुरा वायरस ने ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अब तक सबसे ज्यादा बच्चों की जान ली है. 60 साल पुरानी इस जानलेवा बीमारी का इलाज अब मिल गया है.
कैसे फैलता है ये वायरस?
यह वायरस बालू मक्खी के काटने से फैलता है और बच्चों में तेजी से मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले एन्सेफलाइटिस का कारण बनता है जिसे सामान्य भाषा में दिमागी बुखार कहते हैं. इसके सबसे ज्यादा शिकार 5 से 15 साल तक के बच्चे होते हैं. इसके खतरे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बेहोशी, उल्टी और बुखार जैसे लक्षण दिखने के 24-48 घंटे के अंदर ही मरीज की मौत हो जाती है.
खामोश हत्यारा-आईसीएमआर
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद(ICMR)के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायरस कई सालों से भारत में एक खामोश हत्यारा बना हुआ है. अब इसके खिलाफ एंटीवायरल इलाज की तलाश पूरी हुई. Indian Council of Medical Research ने पुणे स्थित राष्ट्रीय वायरोलॉजी संस्थान ने सेल और एनिमल मॉडल प्रयोगों में फेविपिराविर नाम की दवा को वायरस रोकने में असरदार पाया है.
कितनों को बनाया शिकार?
2003 से 2004 के बीच इस वायरस ने 329 लोगों को अपनी चपेट में लिया जिसमें 183 लोगों की मौत हुई. महाराष्ट्र में 114 और गुजरात में 24 लोगों की मौत हुई. वहीं साल 2004 से 2011 के बीच गुजरात में 31 और 2009 से 2011 के बीच अन्य राज्यों में 16 लोगों को जान गंवानी पड़ी. हालांकि यह पहली बार है जब इस जानलेवा वायरस के लिए किसी दवा के असरदार होने की पुष्टि वैज्ञानिक तौर से भारत में हुई है.