ISRO EOS-09: 2008 में मुंबई में हुए खौफनाक दहशतगर्दाना हमले ने भारत को झकझोर कर रख दिया. इसके बाद भारत ने नेशनल सिक्योरिटी को ध्यान में रखते हुए स्पेस में अपनी क्षमता बढ़ाने का फैसला किया. इसी के तहत देश की स्पेस एजेंसी ने एक खास सैटेलाइट के लॉन्च को तेजी से आगे बढ़ाया. इस सैटेलाइट का नाम था RISAT-2, जिसे एक साल से भी कम समय में लॉन्च कर दिया गया. इसमें इज़रायल के TecSAR-1 सैटेलाइट की तकनीक का भी इस्तेमाल किया गया था. यह भारत की Radar Imaging Satellite (RISAT) सीरीज की भी शुरुआत थी.
RISAT सैटेलाइट दो तरह के होते हैं, जिनमें X-बैंड और C-बैंड Synthetic Aperture Radar (SAR) सिस्टम वाले सैटेलाइट शामिल हैं. X-बैंड SAR का इस्तेमाल RISAT-2 और उसके बाद आने वाले सैटेलाइट्स में किया गया है. ये हाई-रेजोल्यूशन की तस्वीरें ले सकता है और सेना के लिए निगरानी व टारगेट को पहचान में मदद करता है. दूसरी तरफ, C-बैंड SAR का इस्तेमाल RISAT-1 में किया गया था, जो बड़े पैमाने पर धरती की निगरानी के लिए बना था. खास बात यह है कि यह बादलों और अंधेरे में भी ज़मीन, पेड़-पौधों और वाटर सोर्सेस की जानकारी भी दे सकता है. अब इस सैटेलाइट को अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट यानी EOS नाम से नया रूप दिया गया है. यह सैटेलाइट ISRO की नई तकनीक की एक शानदार छलांग है, जो किसी भी मौसम में दिन और रात में साफ तस्वीरें लेने में कारगर है.
ईओएस-09 की खासियतें
उन्नत सी-बैंड एसएआर से लैस ईओएस-09 को फ्लड मैपिंग, साइक्लोन ट्रैकिंग, लैंड्सलाइड का पता लगाने और तटीय सुरक्षा के लिए डिज़ाइन किया गया है. EOS-09 उन्नत रडार तकनीक और इमेजिंग versatility को पैक करते हुए कॉन्फ़िगरेशन को आगे बढ़ाता है. पांच इमेजिंग मोड के साथ - जिसमें हाई-रिज़ॉल्यूशन स्पॉटलाइट और मीडियम रिज़ॉल्यूशन स्कैनएसएआर शामिल हैं. यह अल्ट्रा-डिटेल्ड मॉनिटरिंग (1-मीटर रिज़ॉल्यूशन तक) से लेकर वाइड एरिया एनवायरमेंट मॉनिटरिंग तक सब कुछ मुहैया करता है।
EOS-09 सबसे अलग क्यों है?
उपग्रह सी-बैंड एसएआर से लैस नहीं है. इसलिए जब बादल घिरते हैं, तो ज़्यादातर सैटेलाइट अंधे हो जाते हैं. जबकि सी-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार उन चीजों को देख लेता है जिन्हें ऑप्टिकल उपग्रह नहीं देख पाते हैं. बादल, बारिश, कोहरा और धूल तथा यह सभी मौसमों में दिन-रात निर्बाध रूस से निगरानी करता है.
वहीं, भारत जैसे देश के लिए, जहां प्राकृतिक आपदाएं और सुरक्षा खतरे और डायवर्स लैंडस्केप में टकराते रहते हैं. 1 मीटर तक के रिजोल्यूशन के साथ C-Band SAR छोटी सी छोटी जमीनी तब्दीलियां का पता लगा सकता है, जैसे गाड़ियों की गति या मिट्टी की गड़बड़ी, जो अक्सर सैन्य अभियानों या आतंकवादी गतिविधि के अहम इशारे होते हैं. इसकी 10 से 225 किलोमीटर तक की चौड़ाई को स्कैन करने की क्षमता है, इसे बड़े पैमाने पर डिजास्टर मैपिंग (जैसे बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन) और माइक्रो सर्वे दोनों के लिए उपयुक्त बनाती है.
लेकिन EOS-09 का SAR सिस्टम सिर्फ़ ताकतवर ही नहीं है बल्कि यह स्मार्ट भी है. यह सह- और क्रॉस-पोलराइजेशन और संभवतः हाइब्रिड पोलरिमेट्री का सपोर्ट करने की उम्मीद है, जिससे यह इलाके, वनस्पति और यहां तक कि टेंट या छिपे हुए शिविरों जैसी मानव निर्मित संरचनाओं को बांटने में सक्षम होगा. यह दोहरे उपयोग की क्षमता नेशनल सिक्योरिटी को मजबूत करती है. साथ ही, एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट्री, हाइड्रोलॉजी और शहर के प्लानिंग में भी मदद करती है. वहीं, समुद्र में सी-बैंड SAR एक खामोश सरपरस्त बन जाता है.अवैध समुद्री गतिविधि की निगरानी करना, तेल रिसाव पर नज़र रखना या भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर जहाजों की पहचान करना शामिल है.
जब आफत आती है, तो इसका रडार तूफानी बादलों को चीरकर असल वक्त में नुकसान का आकलन कर लेता है. साथ ही, आकाश साफ होने से बहुत पहले ही इमरजेंसी प्रोसेस और रिसोर्सेस तैनाती का गाइडेंस कर देता है.
टारगेट पर नज़र
EOS-09 सैटेलाइट का लॉन्च पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के तुरंत बाद हुआ है, जो यह दिखाता है कि भारत अब अपनी सेंसेटिव सरहदों पर निगरानी बढ़ाने को लेकर पहले से कहीं ज़्यादा गंभीर हो गया है. भारत की करीब 15,000 किलोमीटर लंबी ज़मीनी सीमाएं हैं.इसमें पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण नियंत्रण रेखा (LoC), चीन की कठिन पहाड़ी सरहदें और बांग्लादेश के साथ धीरे-धीरे खुलती जा रही सीमाएं शामिल हैं. इसके अलावा भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी समुद्री सरहद भी है. इतना बड़ा और पेचीदा खित्ता लगातार सुरक्षा चुनौतियां पैदा करता है, जिन्हें संभालने के लिए मजबूत मॉनिटरिंग सिस्टम जरूरी है.