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SpaDeX: ओह नो! ISRO को फिर टालना पड़ा स्पेस में डॉकिंग का ऐतिहासिक प्रयोग, सेफ हैं दोनों सैटेलाइट

ISRO SpaDeX Docking Experiment Live Streaming: स्पेडेक्स मिशन के तहत, ISRO अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट्स को एक साथ जोड़ने (डॉकिंग) और अलग करने (अनडॉकिंग) का ऐतिहासिक प्रयोग करने वाला है.

SpaDeX: ओह नो! ISRO को फिर टालना पड़ा स्पेस में डॉकिंग का ऐतिहासिक प्रयोग, सेफ हैं दोनों सैटेलाइट
Deepak Verma|Updated: Jan 08, 2025, 09:31 PM IST
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ISRO SpaDeX Mission Docking Experiment: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) में एक तकनीकी दिक्कत पेश आई है. इस वजह से, एजेंसी ने गुरुवार को होने वाले सैटेलाइट डॉकिंग एक्सपेरिमेंट को फिर से टाल दिया है. ISRO ने X (पहले Twitter) पर एक अपडेट में कहा कि दोनों सैटेलाइट्स के बीच 225 मीटर की दूरी करने के लिए एक सटीक पैंतरा लगाते समय, गैर-दृश्यता अवधि (non-visibility period) के बाद यह पाया गया कि सैटेलाइट्स के बीच का बहाव (drift) उम्मीद से कहीं ज्यादा हो गया. इसके बाद डॉकिंग को टालने का फैसला किया गया. इसरो ने कहा कि दोनों सैटेलाइट्स सुरक्षित हैं.

राहत की बात यह है कि दोनों सैटेलाइट्स पूरी तरह सुरक्षित हैं और मिशन टीम स्थिति की निगरानी कर रही है. ISRO ने कहा कि आगे का अपडेट जल्द दिया जाएगा. 'स्पेडेक्स' मिशन ISRO का एक ऐतिहासिक अंतरिक्ष अभियान है. इसके जरिए भारत सैटेलाइट्स के बीच सटीक डॉकिंग और जटिल अंतरिक्ष पैंतरों की क्षमता हासिल करना चाहता है. इस मिशन का मकसद भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में उपयोग होने वाली नई तकनीकों को विकसित और परखना है.

दूसरी बार टालना पड़ा 'डॉकिंग' प्रयोग

ISRO ने 30 दिसंबर 2024 को PSLV-C60 के जरिए स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन को लॉन्च किया था. पहले एजेंसी ने 7 जनवरी को सैटेलाइट्स की डॉकिंग तय की थी, लेकिन फिर उसे 9 जनवरी तक के लिए टाल दिया गया था. अंतरिक्ष विज्ञान में ऐसे तकनीकी बदलाव सामान्य हैं और वैज्ञानिकों की टीम हर संभावित स्थिति के लिए तैयार रहती है. प्रयोग के समय में बदलाव मिशन की सुरक्षा और सफलता सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है.

यह भी पढ़ें: अंतरिक्ष में जंग की तैयारी! इंटीग्रेटेड सैटेलाइट कम्युनिकेशन ग्रिड बनाने जा रहा भारत

अगर इसरो अपने मिशन में सफल हो जाता है तो भारत स्पेस डॉकिंग तकनीक वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा. यह तकनीक भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं जैसे कि चंद्रमा पर भारत, चंद्रमा से नमूना वापसी, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) का निर्माण और संचालन आदि के लिए जरूरी है.

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