trendingNow12698897
Hindi News >>विज्ञान
Advertisement

Science News: वाह! इसरो शाबाश... पूरा हो गया 'मिशन 1000', भारत की हो गई बल्ले-बल्ले

ISRO New Satellites:  प्रस्ताव है कि इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल स्पेस एजेंसी के आगाी सैटेलाइट्स में कैमिकल प्रोपल्शन सिस्टम की जगह पर किया जाएगा और इससे ऐसे कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स के लिए रास्ता साफ होगा, जो क्लास अपग्रेड्स समेत अन्य कामों के लिए केवल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल करेंगे.

Science News: वाह! इसरो शाबाश... पूरा हो गया 'मिशन 1000', भारत की हो गई बल्ले-बल्ले
Rachit Kumar|Updated: Mar 29, 2025, 02:44 PM IST
Share

ISRO Electric Propulsion System: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी इसरो लगातार कामयाबी के झंडे गाड़ रहा है. स्पेस एजेंसी ने अपने 300 एमएन (मिलिन्यूटन) ‘स्टेशनरी प्लाज्मा थ्रस्टर’ पर 1,000 घंटे के लाइफटाइम टेस्ट सफलतापूर्वक पूरा करने का ऐलान किया है. यह थ्रस्टर सैटेलाइट्स के इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम में शामिल करने के लिए तैयार किया गया है.

क्या है इसरो का प्लान?

ऐसा प्रस्ताव है कि इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल स्पेस एजेंसी के आगाी सैटेलाइट्स में कैमिकल प्रोपल्शन सिस्टम की जगह पर किया जाएगा और इससे ऐसे कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स के लिए रास्ता साफ होगा, जो क्लास अपग्रेड्स समेत अन्य कामों के लिए केवल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल करेंगे.

बड़े पैमाने पर होगी बचत

 इसरो ने कहा कि इन थ्रस्टर के शामिल होने से बड़े पैमाने पर बचत होगी, जिससे कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स में ‘ट्रांसपोंडर’ क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलेगी. उसने कहा कि इन थ्रस्टर में प्रोपेलेंट के रूप में कैमिकल एलिमेंट ‘जेनॉन’ का इस्तेमाल किया गया है. स्पेस प्रोपल्शन सिस्टम का एक अहम परफॉर्मेंस इंडेक्स यानी ‘इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम’का स्पेसिफिक इम्पल्स कन्वेंशनल प्रोपल्शन सिस्टम से कम से कम छह गुना ज्यादा है.

उसने कहा, 'यह टेस्ट 5.4 किलोवॉट के पूर्ण शक्ति स्तर पर उस जगह पर किया गया, जो स्पेस की स्थितियों के मुताबिक काम करता है. इस दौरान‘इलेक्ट्रोड लाइनर’ के इरोजन की समय-समय पर निगरानी की गई.' इसरो ने कहा, 'यह टेस्ट सैटेलाइट्स में शामिल किए जाने से पहले थ्रस्टर्स की विश्वसनीयता और मजबूती को प्रदर्शित करने के लिए एक मील का पत्थर है.'

ISRO का कारनामा

इसके अलावा इसरो ने 2,000 केएन (किलोन्यूटन) के हाई ‘थ्रस्ट’ वाले ‘सेमी-क्रायोजेनिक इंजन’ या ‘तरल ऑक्सीजन/केरोसिन (मिट्टी का तेल) इंजन’ बना लिया है. यह इंजन लॉन्च व्हीकल ‘मार्क-3’ (एलवीएम3) के ‘सेमीक्रायोजेनिक बूस्टर’ चरण में मदद करेगा. इसरो ने कहा कि ‘सेमीक्रायोजेनिक इंजन’बनाने में पहली बड़ी सफलता 28 मार्च को मिली जब तमिलनाडु में महेंद्रगिरि के ‘इसरो प्रोपल्शन सेंटर’ में ‘इंजन पावर हेड टेस्ट आर्टिकल’ (पीएचटीए) का पहला हॉट टेस्ट सफल रहा. स्पेस एजेंसी ने कहा कि शुक्रवार के परीक्षण ने 2.5 सेकंड की परीक्षण अवधि के लिए इंजन के सुचारू ‘इग्निशन’ और ‘बूस्ट स्ट्रैप मोड’ संचालन को प्रदर्शित किया.

(इनपुट-पीटीआई)

Read More
{}{}