North Pole: क्लाइमेट में लगातार बदलाव की वजह से पृथ्वी के नॉर्थ और साउथ पोल्स के अपनी मौजूदा स्थिति से 90 फीट तक खिसकने का खतरा है. यह खुलासा एक स्टडी में हुआ है जिसमें कहा गया है कि बर्फ की चादरों के पिघलने से ओसियन का मास प्लानेट के चारों तरफ फिर से बंट जाएगा. हालांकि, यह मंजर साल 2100 तक सामने आने की संभावना है. यह बदलाव 89 फीट का होने की उम्मीद है और यह प्लानेट के रोटेशन एक्सिस में बदलने के कारण होगा.
यह स्टडी 5 मार्च को जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ था. रिसर्चर ने कहा कि पोल्स की स्थिति में बदलाव से प्लानेट और स्पेसशिप नेविगेशन मुतासिर होगा. स्टडी में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों से पिघले पानी को में ध्यान में रखा गया. इसके बाद ग्लेशियर के पिघलने को भी ध्यान में रखा गया.
स्टडी में पता चला है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर तब डगमगाने लगती है जब प्लानेट के द्रव्यमान के डिस्ट्रीब्यूशन में परिवर्तन होता है. यह डगमगाहट नियमित और पूर्वानुमानित है और कई परिवर्तनों की वजह से हो सकती है, जैसे वायुमंडलीय दबाव ( Atmospheric pressure ) और समुद्री धाराओं में परिवर्तन. हालांकि, कभी-कभी कोर और मेंटल के बीच की इंटरैक्शन भी ऐसा होने का कारण बन सकती है.
कई स्टडीज में से पता चला
कई अन्य स्टडीज से भी पता चलता है कि मास डिस्ट्रीब्यूशन में परिवर्तन पृथ्वी के पोल्स को ट्रान्सफर कर सकता है. ताजा अध्ययन ETH ज्यूरिख के रिसर्चर द्वारा किया गया था. उन्होंने 1900 से 2018 तक पोल्स की गति और बर्फ की चादर पिघलने के अनुमानों पर गौर किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि जलवायु में परिवर्तन की वजह से ध्रुव कितना ट्रान्सफर्ड हो सकते हैं.
फिर भी खतरा बरकरार..
उन्होंने पाया कि अगर पूरी दुनिया में अत्यधिक गर्मी बढ़ती है, तो 2100 तक नॉर्थ पोल 89 फीट से ज्यादा पश्चिम की तरफ खिसक सकता है. लेकिन, अगर हालात इतने खराब नहीं होते, तब भी पोल 1900 की अपनी स्थिति की तुलना में 39 फीट तक खिसक सकता है.
अर्थ साइंटिस्ट ने बताया
स्टडी के CO-AUTHOR मुस्तफा कियानी शाहवंदी ने लाइव साइंस को बताया, 'यह प्रभाव ग्लेशियल आइसोस्टेटिक समायोजन के प्रभाव से कुछ हद तक ज्यादा है, जो कि अंतिम हिमयुग की समाप्ति के बाद ठोस पृथ्वी के पलटाव का प्रभाव है.' कियानी वियना यूनिवर्सिटी में एक पृथ्वी वैज्ञानिक ( Earth Scientist ) हैं.
'इंसानों ने जो कुछ किया है'
इसका मतलब है कि 'पृथ्वी की सतह पर मौजूद भूमि हिमयुग ( Land Ice Age ) के ग्लेशियरों के भार के नीचे दब गई और जब वे पिघले तो ऊपर उठ गई.' इससे पृथ्वी की पपड़ी में भार का वितरण बदल जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पोल्स में बदलाव होता है. कियानी शाहवंदी ने कहा, 'इसका मतलब है कि इंसानों ने जो कुछ किया है, उससे पोल्स में बदलाव हिमयुग के प्रभाव से कहीं ज़्यादा हुआ है.' रिसर्चर ने कहा कि पृथ्वी के रोटेशन एक्सिस का इस्तेमाल स्पेसशिप के स्थान का मानचित्रण करने के लिए किया जाता है, तथा पोल्स में होने वाले बदलाव से सैटेलाइट्स और अंतरिक्ष यान के नेविगेशन पर प्रभाव पड़ेगा.