Purple Colour: अक्सर रातों में आसमान में चमकदार रंग की रौशनी दिखाई देती है. इनमें सबसे ज्यादा बैंगनी रंग की लाइट लोगों को खूब पसंद आती है, लेकिन वास्तव में बैंगनी रंग मौजूद नहीं है. यह सिर्फ हमारे दिमाग की कल्पना है, जो भ्रमित होने पर इंसान को दिखाई देता है. दरअसल, एक स्टडी से पता चलता है कि जब लाल और नीला रंग एक साथ दिखाई देते हैं तो इंसान का ब्रेन उन्हें समझ नहीं पाता, जिसकी वजह से सिर खुजलाने लगता है और ये घटना ब्रेन को बैंगनी रंग बनाने के लिए प्रेरित करती है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि लाल और नीला वेभलेंथ स्पेक्ट्रम के दो विपरीत छोरों पर मौजूद होते हैं. जब ये दोनों वेभलेंथ एक ही जगह पर दिखाई देते हैं, तो ब्रेन कंफ्यूज्ड हो जाता है. इसलिए यह स्पेक्ट्रम को मोड़ देता है और दोनों रंगों को एक चक्र में जोड़कर बैंगनी रंग बना देता है. इसका मतलब यह नहीं है कि बैंगनी रंग असली नहीं है.
यह रंग हमें देखने के लिए है, लेकिन यह ब्रेन की दुविधा के कारण बना है. वैज्ञानिकों ने संक्षिप्त नाम VIBGYOR का इस्तेमाल कर इंद्रधनुष के सभी रंगों का वर्णन किया है. यहां V का मतलब वॉयलेट है, लेकिन यह बैंगनी नहीं है. वॉयलेट कलर की अपनी प्रकाश तरंगदैर्घ्य ( wavelength of light ) होती है, लेकिन बैंगनी रंग की नहीं. बैंगनी रंग स्पेक्ट्रम पर प्रकाश की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य बनाता है और असली है, जैसा कि सूर्य की पराबैंगनी (UV) रेडिएशन से साबित होता है जो सनबर्न का कारण बनता है.
Cone स्पेशल सेल
वह सिस्टम जो हमें लाखों रंग देखने देता है, उसमें शंकु नामक ( Cone ) स्पेशल सेल शामिल होती हैं. इसके तीन प्रकार हैं. एक छोटी तरंगदैर्घ्य के लिए (एस शंकु, जो नीले और बैंगनी रंग का पता लगाते हैं), एक मध्यम स्पेक्ट्रम के लिए (एम शंकु, जो हरे और पीले रंग का पता लगाते हैं), और एक लंबी तरंगदैर्घ्य के लिए (एल शंकु, जो लाल और नारंगी रंग का पता लगाते हैं). इनमें से प्रत्येक विजिबल स्पेक्ट्रम के अलग-अलग हिस्सों पर प्रतिक्रिया करता है.
शख्स क्या देख रहा है?
जब प्रकाश हमारी आंखों में एंट्री करता है, तो मिलते-जुलते Cone एक्टिव हो जाते हैं. ऑप्टिक नर्व के जरिए से ब्रेन तक संकेत भेजे जाते हैं, जो उन्हें प्रोसेस्ड करता है और एनालिसिस करता है कि शख्स क्या देख रहा है? शंकुओं की सक्रियता यह तय करती है कि व्यक्ति कौन सा रंग देख रहा है. यह प्रक्रिया रंगों को मिक्सर भी करती है ताकि हम मूल रंगों से बने रंगों का मिश्रण देख सकें, जैसे फ़िरोज़ा ( Turquoise ), पन्ना ( Emerald ) और इसी तरह के बाकी रंग.
क्या यही सिद्धांत पर्पल पर भी लागू नहीं होना चाहिए?
हालांकि, कई लोग यह तर्क दे सकते हैं कि क्या यही सिद्धांत पर्पल पर भी लागू नहीं होना चाहिए? खैर, ऐसा नहीं है. ऐसा लाल ( Red ) और नीले ( Blue ) रंग की स्पेक्ट्रम की स्थिति की वजह से है. जैसा कि ऊपर बताया गया है, वे स्पेक्ट्रम के विपरीत दिशा में मौजूद हैं और जिस वैज्ञानिक तरीके से हम रंगों को देखते हैं. उनके मुताबिक, तर्क कहता है कि उन्हें आपस में मिश्रित नहीं होना चाहिए. लेकिन ब्रेन ने इस मसले का हल खोज लिया.
बैंगनी रंग कैसे बनता है?
दरअसल, जब S शंकु ( Blue/violet light) और L कोन ( Red Light ) एक्टिव होते हैं, तो उन्हें अस्वीकार करने के बजाय ब्रेन विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम को एक सर्किल में मोड़ देता है ताकि लाल और नीला/बैंगनी (Red and Blue/Purple ) मिल सकें, जिसके नतीजे बैंगनी रंग बनता है.