Rainbow Trout: हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के अनुसार इंसानों के खाने के लिए मारी जाने वाली मछलियां जैसे रेनबो ट्राउट 2-20 मिनट तक बहुत ही तेज दर्द का अनुभव करती हैं. साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित इस रिपोर्ट से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. इस शोध में मछलियों को मारने वाली विधि एयर एस्फिक्सिएशन(हवा में दम घोटना)की गहराई से जांच की गई. इसमें पहले मछलियों को पानी से बाहर निकाला जाता है और फिर हवा में छोड़ दिया जाता है. इस प्रक्रिया में यह धीरे-धीरे ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ देती हैं.
दर्द की शुरूआत
रिपोर्ट में बताया गया कि मात्र 1 मिनट तक ही हवा में रहने के बाद से ही मछलियों के शरीर में तनाव की प्रतिक्रिया शुरु हो जाती है. हाइड्रोमिनरल असंतुलन जिसे शरीर में पानी और खनिजों का असंतुलन भी कहा जाता है, हवा में आने के 60 सेंकड के अंदर ही शुरू हो जाता है जिससे मछलियों का दर्द बढ़ता जाता है जो 2 से 20 मिनट तक चलता है जिस कारण से मछलियों को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है. कई जगहों पर मछलियों को मारने के लिए बर्फ में डाल दिया जाता है लेकिन आपको बता दें कि यह तरीका काफी पीड़ा से भरा होता है. बर्फ में उनकी मेटाबॉलिज्म बहुत धीमा पड़ जाता है जिससे उन्हें बेहोश होने में और ज्यादा समय लगता है और उनका दर्द सहने की समय सीमा बढ़ती जाती है.
क्या है इसका सॉल्यूशन?
इसी रिपोर्ट में इसके समाधान की भी बात की गई और वह है इलेक्ट्रिक स्टनिंग को अपनाना. यह मछलियों के दर्द को काफी हद तक कम कर सकता है. शोध के सह-लेखक व्लादिमीर अलोंसो के अनुसार, यह अध्ययन ‘वेलफेयर फुटप्रिंट फ्रेमवर्क’ नामक एक वैज्ञानिक पद्धति के जरिए किया गया जो. इस अध्ययन से की दुनिया भर में मारी जाने वाली लगभग 2.2 खरब बिना पाली गई और 171 अरब फार्म में पाली गई मछलियों की मौत को कम दर्दनाक बनाने में मदद मिल सकती है.