Declining Population Rate: क्या होगा अगर दुनिया में बच्चे पैदा होना बंद हो जाएं, क्या आपने कभी इस तरह से सोचा है? आज हम आपको बताएंगे कि अगर ऐसा हुआ तो इसका परिणाम क्या हो सकता है. दुनिया में बच्चों के पैदा होना बंद होते ही पहले तो 70-100 साल में मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी,आबादी धीरे-धीरे घटने लगेगी और फिर भोजन, स्वास्थ्य सेवाओं, सेना और जरूरी कामों के लिए युवाओं की कमी से समाज का संतुलना बुरी तरह से ढह जाएगा.
वैज्ञानिकों का जवाब
वैज्ञानिकों ने इस पर कहा है कि शुरुआत में इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन धीरे-धीरे जब बच्चे जन्म लेना बंद कर देंगे और बुजुर्ग मरने लगेंगे तब युवाओं की आबादी तेजी से घटना शुरु हो जाएगी. समाज की सारी बुनियादी व्यवस्थाएं जैसे डॉक्टर, इंजीनियर्स, खेती करने वाले लोग धीरे-धीरे कम होते जाएंगे और समाज डगमगाने लग जाएगा. बिना युवाओं वाला देश अर्थव्यवस्था की मार झेल रहा होगा, हेल्थ केयर, खेती, साफ पानी, खाने की कमी के संकट से लोग जूझ रहे होंगे. नई तकनीकें बनने में कमी आ जाएगी और लोग अकेलेपन का शिकार होने लगेंगे.
अंत की शुरुआत
इसके 70-80 सालों बाद इंसान बहुत सीमित संख्या में ही बचे होंगे. कुछ शहर तो ऐसे हो सकते हैं जहां सिर्फ बुजुर्गों का ही जमावड़ा लगा हो लेकिन दूर-दूर तक कोई युवा नहीं. सब वैसे ही गायब हो जाएंगे जैसे कभी निएंडरथल गायब हो गए थे, इंसान भी इतिहास बन जाएगा. आपको बता दें कि विज्ञान इस कल्पना को पूरी तरह नहीं नकारता है. जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में बर्थ रेट चिंताजनक गिरावट पर है. भारत में भी लोग कम बच्चे पैदा कर रहे हैं और कई तो बिल्कुल नहीं. अमेरिका में भी 2024 में 3.6 मिलियन जन्म हुए, जबकि 20 साल पहले ये संख्या 4.1 मिलियन थी, वहीं मरने वालों की दर बढ़ी है.
बिगड़ेगा सामाजिक संतुलन
समाज की रीढ़ युवाओं को ही कहा जाता है. अगर युवा घटे तो नए आइडिया में कमी आ जाएगी और बुजुर्गों का जीवन भी भारी संकट में आ जाएगा क्योंकि एक समय बाद उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा. हमारे पूर्वज कहे जाने वाले Homo Sapiens पिछले लगभग 2 लाख सालों से इस धरती पर हैं. लेकिन हमारे रिश्तेदार कहे जाने वाले Neanderthals 40,000 साल पहले लुप्त हो गए थे. उनके लुप्त होने का बड़ा कारण था कि वह संसाधनों का प्रबंधन नहीं कर सके और प्रजनन दर में भारी कमी आ गई. अगर हम आज के बर्थ ट्रेंड्स, ग्लोबल क्लाइमेट चेंज, महामारी और युद्ध जैसे खतरों को देखे तो इंसान का मिट जाना मात्र कोई कल्पना नहीं लगती.