Shubhanshu Shukla Badge: भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अमेरिका की Axiom-4 मिशन के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी ISS की यात्रा पर जाएंगे. इस दौरना हमारा हिंदुस्तान ना सिर्फ अपनी तकनीक और अंतरिक्ष महत्वकांक्षाओं के लिए पहचाना जाएगा बल्कि अपनी संस्कृति के लिए जाना जाएगा. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि तारीखा मिशन के लिए शुभांशु शुक्ला के लिए एक स्पेशल बैज तैयार किया जा रहा है, जो भारत की वैज्ञानिक विरासत और संस्कृति का प्रतीक होगा. इस बैज को डिजाइन करने वाले भी भारतीय डिजाइनर मनीष त्रिपाठी हैं.
मनीष त्रिपाठी के जरिए डिजाइन किया जाने वाला यह बैच ना सिर्फ इस मिशन की पहचान होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति की भी पहचान होगा. इस बैच में प्राचीन वेधशालाओं से लेकर गगनयान मिशन तक की झलक दिखाई देगी. दिलचस्प बात यह भी है कि डिजाइनर मनीष त्रिपाठी और एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला स्कूल के पुराने दोस्त भी हैं. इन दोनों ने मिलकर लगभग 8 महीने तक इस पर एक दूसरे के साथ विचार शेयर किए ताकि यह बैज भारत की अंतरिक्ष यात्रा को दर्शा सके.
हालांकि सभी ऐसा लग रहा होगा कि यह बैज पहनना उनके बेहद आसान है लेकिन ये बिल्कुल आसान नहीं था. इसे स्पेस-ग्रेड मटीरियल में डिजाइन करना पड़ा था. इसके लिए पहले टेस्टिंग भी की गई. ताकि यह अंतरिक्ष की परिस्थितियों में टिका रहे और भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करता रहे. इससे एक संदेश यह भी जाता है कि भारत अब दुनिया को अंतरिक्ष में अपनी 'मुट्ठी की छाप' दिखा रहा है.
गगनयान का चिन्ह: भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन की निशानी
आर्यभट्ट सैटेलाइट: भारत के पहले सैटेलाइट के 50 साल पूरे होने की खुशी.
सूर्य: ऊर्जा और जीवन का प्रतीक, जो भारतीय संस्कृति और अंतरिक्ष विज्ञान दोनों में महत्वपूर्ण है.
जंतर मंतर वेधशाला: प्राचीन भारतीय खगोलविद्या की पहचान.
शून्य और अनंत का चिन्ह: गणित को दी गई भारत की देन जो अंतरिक्ष विज्ञान की नींव है.
चंद्रमा: भारत के चंद्रयान-2 और 3 मिशनों की कामयाबी की निशानी.
हेलमेट में भारत का नक्शा: यह भगवान हनुमान से प्रेरित है, जो भारत की साहसिक उड़ान की तरफ इशारा करती है.
इस बैज में हिस्सा लेने वाले देशों के झंडे भी हैं, जो अंतरिक्ष में वैश्विक सहयोग को दर्शाते हैं.
यह बैज सिर्फ एक प्रतीक नहीं, बल्कि आने वाली नस्लों के लिए प्रेरणा है कि विज्ञान और संस्कृति मिलकर भी ऊंचाइयों को छू सकते हैं.