Universe Rotation: यूनिवर्स अपने आप में कई रहस्यों को छिपाए हुए है. हाल ही में एक नई खोज से पता चला है कि हमारा ब्रह्मांड हर 500 अरब साल में एक बार पूरा चक्कर लगा सकता है. इस खोज से उस पहेली का हल निकाला जा सकता है, जो पूरे यूनिवर्स साइंस के प्रिंसिपल के सामने बाधाएं खड़ी कर रही थी. बता दें कि साल 1929 में फेमस एस्ट्रोनॉमर एडविन हबल की एक रिसर्च पेपर में बताया गया था कि हमारे ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है. इससे हबल स्थिरांक का जन्म हुआ. यह वो संख्या होती है जो बताती है कि हमारा यूनिवर्स कितनी तेजी से फैल रहा है, लेकिन इस खोज से हबल स्ट्रेस की एक एक पहेली पैदा हुई थी.
500 अरब साल में एक बार घूमता है ब्रह्मांड
सुपरनोवा और कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB) ब्रह्मांड की विस्तार दर को मापने के दो दरें हैं. ये तकरीबन 10 प्रतिशत अलग रिजल्ट देते हैं, जो वैज्ञानिकों के लिए आजतक एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है. 'हवाई यूनिवर्सिटी' के इस्तवान स्जापुदी की अगुआई में इस नई रिसर्च में एक नया गणितीय मॉडल पेश किया गया. इसमें ब्रह्मांड में थोड़ा घूर्णन (Rotation) जोड़ा गया. इस मॉडल ने बिना किसी मौजूदा एस्ट्रोनॉमिकल मेजरमेंट का खंडन किए हबल स्ट्रेस को हल कर दिया. इस खोज से पता चलता है कि यह यूनिवर्स 500 अरब साल में एक बार घूमता है.
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बेहद धीरे चक्कर लगाता है यूनिवर्स
स्टडी के अनुसार हमारे यूनिवर्स का रोटेशन इतना धीमा है कि इसका सीधे तरह से मेजरमेंट करना बिल्कुल भी संभव नहीं है. इसी रोटेशन से ब्रह्मांड का विस्तार प्रभावित होता है. नए मॉडल में यह रोटेशन 0.6c यानी लाइट की स्पीड का 60 प्रतिशत की गति से होता है, जो फिजिक्स के नियमों का उल्लंघन नहीं करता है. यह खोज यूनिवर्स की फुर्ती को समझने में नया दृष्टिकोण देती है.
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स्वाभाविक है ब्रह्मांड का चक्कर लगाना?
यूनिवर्स के रोटेशन का विचार आज का या नया बिल्कुल भी नहीं है. गणितज्ञ कर्ट गोडेल ने साल 1949 में इसकी संभावना जताई थी. वहीं स्टीफन हॉकिंग जैसे महान वैज्ञानिकों ने भी इस प्रिंसिपल पर काम किया था. शोधकर्ताओं का मानना है कि जिस तरह गैलक्सी, तारे और ग्रह घूमते हैं उसी तरह यूनिवर्स का चक्कर लगाना भी स्वाभाविक हो सकता है.