लाल सागर में इन दिनों तनाव बढ़ता नजर आ रहा है, माना जा रहा है कि इसका सीधा भारत के इंटरनेट पर पड़ सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में जो बड़ी इंटरनेट केबल लाइनें हैं, उनमें से ज्यादातर इसी रास्ते से गुजरती हैं. अगर इन केबल्स को नुकसान पहुंचता है या कनेक्शन टूटता है तो भारत का इंटरनेट पूरी तरह बंद भी हो सकता है. इसी वजह से इसे इंटरनेट का किल स्विच कहा जा रहा है. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस खतरे से बचने के लिए केबल कंपनियां कई तरह के इंतजाम कर रही हैं. ऐसे में ज्यादा फाइबर केबल जोड़ी जा रही हैं, कंपनियां डबल बैकअप के तौर पर एक्स्ट्रा केबल खरीद रही हैं, कुछ जगहों पर समुद्र के बजाय जमीन के रास्ते केबल डालने की भी योजना है, लेकिन इन सबका एक बड़ा असर ये हो रहा है कि इंटरनेट कंपनियों जैसे डाटा सेंटर और क्लाउड सर्विस देने वालों की लागत बहुत बढ़ गई है. अगर कोई कंपनी यूरोप से एशिया तक चलने वाली तेज स्पीड वाली अंडरसी केबल किराए पर लेती है तो उसे हर महीने करीब 25 से 40 लाख रुपये तक चुकाने पड़ सकते हैं.
लाल सागर से होकर गुजरता है डिजिटल नेटवर्क
भारत का इंटरनेट और डिजिटल नेटवर्क काफी हद तक उस रास्ते पर टिका हुआ है जो लाल सागर से होकर गुजरता है. दुनिया की कुछ बड़ी कंपनियों, जैसे Google, Airtel और Reliance Jio की इंटरनेट केबल्स इसी रास्ते से भारत में मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों तक पहुंचती हैं. इन केबल्स के जरिए ही हम दुनिया से जुड़े रहते हैं और तेज इंटरनेट चल पाता है. इसलिए अगर रेड सी इलाके में कुछ गड़बड़ होती है या केबल को नुकसान पहुंचता है तो भारत का इंटरनेट सिस्टम भी काफी प्रभावित होने की संभावना है. इसी वजह से ये रास्ता भारत के लिए बहुत जरूरी माना जाता है.
हूती विद्रोहियों ने दो मालवाहक जहाजों को डुबोया
पिछले कुछ हफ्तों में यमन के हूती विद्रोहियों ने दो मालवाहक जहाजों (कार्गो शिप्स) को डुबो दिया. ये लोग पहले भी समुद्र के नीचे बिछी इंटरनेट केबल्स का इस्तेमाल हथियार की तरह कर चुके हैं. यानी वो इन्हें नुकसान पहुंचाकर अपने राजनीतिक और सैन्य मकसद पूरे करते हैं. इस वजह से इस इलाके में केबल्स की सुरक्षा काफी मुश्किल हो गई है. यहां बीमा करवाना बहुत महंगा हो गया है. मरम्मत करने वाले जहाजों को यहां आने के लिए हूती विद्रोही फिरौती मांग का सामना करना पड़ा रहा है. Google, Jio और Airtel जैसी बड़ी कंपनियों से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कोई भी जवाब देने से साफ इनकार कर दिया.
21,000 किलोमीटर लंबी इंटरनेट केबल्स चलाती है कंपनी
Raylightstorm कंपनी के प्रमुख अमजित गुप्ता का कहना है कि उनकी कंपनी समुद्र के नीचे 21,000 किलोमीटर लंबी इंटरनेट केबल्स चलाती है. उनका कहना है कि लाल सागर जैसे संघर्ष वाले इलाकों में इंटरनेट केबल्स को बनाए रखना बहुत मुश्किल हो रहा है. अगर एक और रुकावट आई तो मरम्मत करना और भी कठिन हो जाएगा. इसीलिए अब Ooredoo और Zain जैसी कई कंपनियां समुद्र के बजाय जमीन के रास्ते केबल्स बिछाने की योजना बना रही हैं. उनका मानना है कि समुद्र सीमित और जोखिम भरा होता है, जबकि जमीन के रास्ते उन देशों के कंट्रोल में होते हैं जहां सुरक्षा बेहतर हो सकती है. अब ज्यादातर कंपनियों की राय यही है कि सुरक्षित और स्थिर इंटरनेट नेटवर्क के लिए जमीन के रास्ते ज्यादा सही हैं.
क्या बोले AS लक्ष्मीनारायण
टाटा कम्युनिकेशंस के डायरेक्टर AS लक्ष्मीनारायण का कहना है कि समुद्र के नीचे बिछी इंटरनेट केबल्स में कटने या नुकसान होने की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं. लाल सागर जैसे इलाकों में जब केबल खराब होती है तो उसे ठीक करने में काफी समय लगता है. वहां मरम्मत करने वाले जहाजों को पहुंचने में भी देर होती है. उन्होंने कहा कि पूरे उद्योग में ऐसे जहाजों की कमी है जो इन केबल्स की मरम्मत कर सकें. भारत सरकार इस पर विचार कर रही है कि क्या देश को खुद अपने जहाजों का एक बेड़ा (fleet) बनाना चाहिए ताकि ऐसे हालात में जल्दी और सुरक्षित मरम्मत की जा सके.
क्या कहता है इतिहास
अगर इतिहास के पन्नों को खखोला जाए तो 2023 की शुरुआत में बाब अल-मंडब नाम की एक संकरी समुद्री जगह पर चार बड़ी इंटरनेट केबल्स (SEACOM, EIG, AAE-1, और TGN-EA) को नुकसान पहुंचा था. इसका कारण वहां का जंग और विवाद से भरा क्षेत्रीय संघर्ष और जहाजों के एंकर से हुए नुकसान को माना गया. इसकी वजह से अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया जैसे इलाकों में इंटरनेट धीमा हो गया था. इसके बाद इन केबल्स में रिलायंस जियो, टाटा कम्युनिकेशंस और एयरटेल जैसी भारतीय कंपनियों ने पैसा लगाया है और वे इन्हें चलाने में अहम भूमिका निभाई.
FLAG ने लिया तरराष्ट्रीय नेटवर्क चलाने का लाइसेंस
नई योजनाओं की शुरुआत को लेकर FLAG नाम की एक बड़ी केबल कंपनी के CEO कार्ल ग्रिव्नर ने बताया कि उनकी कंपनी गल्फ इलाकों यानी मिडिल ईस्ट में नई साझेदारियां कर रही है और कुछ वैकल्पिक रास्ते बना रही है. इनमें से एक रास्ता है Gulf European Transit Route, जिसे India-Middle East-Europe Economic Corridor भी कहा जाता है. यह रास्ता बेहद खास है क्योंकि, यह समुद्र के नीचे बिछी फाइबर केबल्स को जमीन पर बने इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ जोड़ता है. यह लाल सागर के खतरनाक रास्ते को बायपास करता है. वहीं, FLAG कंपनी ने पिछले साल भारत में अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क चलाने का लाइसेंस लिया था और भारत, सिंगापुर और यूरोप में निवेश किया. ये सभी नेटवर्क मिडिल ईस्ट के रास्ते जुड़ते हैं. मतलब अब कंपनियां उस खतरनाक रास्ते की बजाय ज्यादा सुरक्षित और स्थिर रास्तों पर फोकस कर रही हैं, जिससे भारत और दुनिया के दूसरे हिस्सों में तेज और भरोसेमंद इंटरनेट सेवा बनी रहे.
रिलायंस जियो की नई योजना
भारत में केबल नेटवर्क का जबरदस्त विकास पिछले तीन सालों में भारत के समुद्र के नीचे बिछे इंटरनेट केबल नेटवर्क (सबसी केबल सिस्टम) में तेजी से हुआ है. Airtel ने 2024 में C-ME-WE 6 केबल शुरू की और 2 Africa Pearls नाम के प्रोजेक्ट में निवेश किया, जो दुनिया की सबसे लंबी सबसी केबल है. Reliance Jio जल्द ही दो बड़ी केबल्स, India-Asia-Express और India-Europe-Express को भारत से जोड़ने वाला है, जिससे भारत का इंटरनेट नेटवर्क और मजबूत हो जाएगा. दूसरी ओर Google और Meta जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने भी भारत में अपने प्रोजेक्ट्स में भारी निवेश किया है, जैसे Google का Blue-Raman और Meta का Waterworth. उधर, TRAI का अनुमान है कि पूरी दुनिया में इन केबल्स का बाजार 2023 में 27.57 अरब डॉलर था और 2028 तक यह 40.58 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा. भारत का सबसी केबल बाजार भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है और 2030 तक 78.6 मिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.
FAQ
Q1. सवाल: भारत के इंटरनेट को रेड सी में तनाव से कैसे खतरा है?
Ans. भारत की ज्यादातर इंटरनेशनल इंटरनेट केबल्स रेड सी के रास्ते से आती हैं. अगर वहां कोई नुकसान होता है, तो भारत का इंटरनेट पूरी तरह बंद हो सकता है. इसलिए इसे 'इंटरनेट का किल स्विच' कहा जा रहा है.
Q2. कंपनियां इस खतरे से बचने के लिए क्या कर रही हैं?
Ans. केबल ऑपरेटर्स ज्यादा फाइबर जोड़ रहे हैं, डबल बैकअप केबल खरीद रहे हैं और कुछ जगहों पर समुद्र की बजाय जमीन के रास्ते केबल बिछाने की योजना बना रहे हैं.
Q3. भारत में सबसी केबल नेटवर्क का भविष्य कैसा दिख रहा है?
Ans. TRAI के अनुसार, भारत का सबसी केबल बाजार 2030 तक 650 करोड़ रुपये से ज्यादा का हो सकता है. Airtel, Jio, Google और Meta जैसी कंपनियां इसमें भारी निवेश कर रही हैं.