France Palestine Recognition: वर्ल्ड पॉलिटिक्स में कब कौन सा नया ऑर्डर सेट हो जाए.. कुछ नहीं कहा जा सकता है. इसी बीच इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के चलते जहां गाजा पर निगाहें हैं तो वहीं फ्रांस के एक फैसले ने नया विमर्श खड़ा कर दिया है. हुआ यह कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश की मान्यता देने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा का जिक करते हुए इसके ऐलान की बात कही है. उधर इस फैसले से इजरायल और अमेरिका दोनों नाराज हो गए हैं. उन्होंने हमास के हमले का जिक्र करते इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है.
असल में सबसे पहले तो इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने फ्रांस की घोषणा को आतंकवाद को इनाम देने वाला कदम बताया. उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी इजरायल को खत्म करके उसकी जगह देश बनाना चाहते हैं और यह मान्यता देना इजरायल की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. नेतन्याहू ने चेतावनी दी कि इससे क्षेत्र में ईरान समर्थित समूहों को और बल मिलेगा.
वहीं अमेरिका ने भी खुलकर फ्रांस की आलोचना की है. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने लिखा कि अमेरिका मैक्रों की योजना को पूरी तरह खारिज करता है. उन्होंने कहा कि यह फैसला हमास के प्रचार को मजबूत करता है और शांति की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाता है. यह 7 अक्टूबर के आतंकवादी हमले के पीड़ितों के मुंह पर तमाचा है.
US Secretary of State Marco Rubio tweets, "The United States strongly rejects Emmanuel Macron’s plan to recognize a Palestinian state at the UN General Aassembly. This reckless decision only serves Hamas propaganda and sets back peace. It is a slap in the face to the victims of… pic.twitter.com/FOdReHLF3O
— ANI (@ANI) July 25, 2025
उधर फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा है कि फ्रांस की यह घोषणा मध्य पूर्व में स्थायी शांति के लिए एक गंभीर पहल है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फिलिस्तीन को हथियार छोड़ने होंगे और इजरायल को पूर्ण मान्यता देनी होगी. मैक्रों ने गाजा में चल रही हिंसा रोकने और फंसे हुए नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील भी की.
फैसले का फिलिस्तीनी प्रशासन ने स्वागत किया
इन सबके बीच फ्रांसीसी फैसले का फिलिस्तीनी प्रशासन ने स्वागत किया है. PLO के उपाध्यक्ष हुसैन अल शेख ने कहा कि यह कदम फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति फ्रांस की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि फ्रांस की इस पहल से यूरोप के अन्य देश भी इसी राह पर चल सकते हैं जिससे इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और बढ़ेगा.