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DNA: अब अमेरिका की नहीं चलेगी 'दादागीरी'... भारत के पास है इलाज, ट्रंप को ब्रिक्स USA विरोधी क्यों नजर आने लगा?

DNA Analysis: डॉनल्ड ट्रंप को आखिर अचानक 10 देशों का गुट यानी ब्रिक्स अमेरिका विरोधी क्यों नजर आने लगा है. इस सवाल के कुछ जवाब आपको ब्राजील में हुई ब्रिक्स मीटिंग से मिल सकते हैं.

DNA: अब अमेरिका की नहीं चलेगी 'दादागीरी'... भारत के पास है इलाज, ट्रंप को ब्रिक्स USA विरोधी क्यों नजर आने लगा?
Zee News Desk|Updated: Jul 07, 2025, 11:36 PM IST
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DNA Analysis: एलन मस्क अमेरिका की राजनीति में नई क्रांति का प्लान बना रहे हैं. तो दूसरी तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अब टैरिफ यानी टैक्स को दुनिया के लिए नया हथियार बना रहे हैं. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं. ये समझने के लिए आपको सोशल मीडिया पर डीलर ट्रंप के नये पोस्ट को समझना चाहिए.

जो भी देश ब्रिक्स गुट के साथ मिलकर अमेरिका विरोधी नीतियों का हिस्सा बनेगा. उसपर हम 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ यानी टैक्स लगाएंगे. और हमारी इस नीति में किसी को रियायत नहीं मिलेगी. इस जानकारी को ढंग से समझने के लिए शुक्रिया.

ट्रंप को ब्रिक्स अमेरिका विरोधी क्यों नजर आने लगा?

डॉनल्ड ट्रंप का ये पोस्ट संदेश कम और धमकी ज्यादा नजर आता है. लेकिन यहां एक सवाल उठता है. आखिर अचानक ट्रंप को 10 देशों का गुट यानी ब्रिक्स अमेरिका विरोधी क्यों नजर आने लगा है. इस सवाल के कुछ जवाब आपको ब्राजील में हुई ब्रिक्स मीटिंग से मिल सकते हैं. ब्राजील में भारत समेत ब्रिक्स देशों के बीच क्या सहमति बनी. ये भी आपको जानना चाहिए.

'NEW DEVELOPMENT BANK'

ब्राजील में जो ब्रिक्स डिक्लेरेशन जारी किया गया. उसमें सबसे पहली प्राथमिकता पश्चिमी जगत के आर्थिक ढांचे पर निर्भरता कम करने को दी गई है. सदस्य देशों ने ये भी तय किया है कि वो एक दूसरे के साथ अपनी करेंसी में लेनदेन करेंगे. साथ ही ब्रिक्स देशों ने NEW DEVELOPMENT BANK नाम का नया आर्थिक संस्थान खोलने पर भी सहमति जताई है.

'DE-DOLLARIZATION'

इनमें से कोई भी ऐलान सीधे तौर पर अमेरिका विरोधी नजर नहीं आता. ट्रंप के बयान पर रूस ने भी रिएक्ट किया है. रूस ने कहा है कि ब्रिक्स का मकसद अमेरिका को चुनौती देना नहीं है. लेकिन ग्लोबल साउथ यानी यूरोप से बाहर के देशों का ये मजबूत संगठन ट्रंप को अंदर ही अंदर डरा रहा है. और इस दहशत की बुनियाद में है अमेरिका का डॉलर. क्यों ट्रंप को डॉलर के फ्यूचर को लेकर डर लग रहा है. ये जानने के लिए आप एक शब्द को समझिए  DE-DOLLARIZATION. 

DE-DOLLARIZATION का शाब्दिक अर्थ है व्यापार के लिए करेंसी के रूप में डॉलर का कम इस्तेमाल करना. आजतक दुनिया के अधिकतर देश एक दूसरे से व्यापार में भुगतान के लिए डॉलर का ही इस्तेमाल करते हैं. लेकिन अगर ब्रिक्स के सदस्य देशों ने डॉलर की बजाय अपनी करेंसी से भुगतान करना शुरु किया. तो दुनिया की तकरीबन 40 प्रतिशत आबादी डॉलर से दूर हो जाएगी. जो डॉलर की मांग को कम करेगा और बतौर करेंसी डॉलर कमजोर हो जाएगा. डॉलर के कमजोर होने का सीधा प्रभाव अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर होगा.

अमेरिका की दादागिरी खत्म?

अगर ब्रिक्स सदस्यों की डॉलर पर निर्भरता कम हो गई तो अमेरिका की दादागीरी यानी आर्थिक प्रतिबंधों वाली धमकी भी कमजोर हो जाएगी. अब तक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका की कूटनीति ऐसे ही प्रतिबंधों के इर्द गिर्द घूमती है. जिस देश पर अमेरिका दबाव बनाना चाहता है उसपर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं. यूक्रेन युद्ध की वजह से अमेरिका ने रूस पर भी ऐसे ही प्रतिबंध लगाए थे.

लेकिन अमेरिकी करेंसी कमजोर हो जाने से अंकल सैम यानी अमेरिका की डॉलर डिप्लोमेसी प्रभावशाली नहीं रहेगी. डॉलर के साथ ही साथ ब्रिक्स सम्मेलन का एक और फैसला डॉनल्ड ट्रंप की टेंशन बढ़ा रहा होगा. 

अगर ब्रिक्स का NEW DEVELOPMENT BANK का प्लान सफल हो जाता है तो आर्थिक मदद के लिए ब्रिक्स के सदस्य देशों को पश्चिमी जगत से जुड़ी WORLD BANK या INTERNATIONAL MONETARY FUND जैसी संस्थाओं पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. ब्रिक्स के सभी सदस्य देश आर्थिक सहयोग के जरिए एक क्रेडिटलाइन यानी कर्ज लेने की व्यवस्था स्थापित कर लेंगे.

अमेरिका ने वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थानों को भी अमेरिकी हितों को साधने के लिए इस्तेमाल किया है. आपको याद होगा पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर किया था, तो अमेरिका ने वर्ल्ड बैंक से सीधे पाकिस्तान को कर्ज दिला दिया था. ताकि पाकिस्तान से कोई भी ट्रंप या अमेरिका विरोधी बयान ना आए. यही है ट्रंप के अंदर बैठे डर का पूरा सार. अगर ब्रिक्स ने अपने लक्ष्यों को हासिल कर लिया तो दुनिया में अमेरिका की पैठ और पहुंच दोनों कम हो जाएंगी.

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