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यूक्रेन.. पुतिन और फिर NATO, इस बार अपने ही जाल में फंस गए ट्रंप, क्यों बैकफुट पर अमेरिकी राष्ट्रपति?

भारत के लिए इस पूरे घटनाक्रम में दो मैसेज हो सकते हैं. पहला अमेरिका के साथ डील करते समय अपनी राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ऊपर रखना चाहिए. और दूसरा ट्रंप के अनौपचारिक सर्कल से भी जुड़ाव बनाना जरूरी है.

यूक्रेन.. पुतिन और फिर NATO, इस बार अपने ही जाल में फंस गए ट्रंप, क्यों बैकफुट पर अमेरिकी राष्ट्रपति?
Gaurav Pandey|Updated: Jul 19, 2025, 07:30 AM IST
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक इंटरव्यू में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को लेकर भयंकर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि वे पुतिन से निराश हैं और अब किसी पर ज्यादा भरोसा नहीं करते हैं. यह वही ट्रंप हैं जिन्होंने कुछ महीने पहले पुतिन को भला इंसान कहा था. पुतिन के ही चक्कर में उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को व्हाइट हाउस बुलाकर तानाशाह बताया था. लेकिन अब ट्रंप का रुख पलट गया है. उन्होंने पुतिन को 50 दिनों का अल्टीमेटम दे दिया. उन्होंने युद्ध रोकने की चेतावनी दी है और यूक्रेन को हथियार देने का ऐलान किया है. आखिर क्या हुआ कि ट्रंप फंस गए.

यूक्रेन.. पुतिन और फिर NATO
असल में पुतिन के चक्कर में उन्होंने जेलेंस्की को लताड़ा. इसके बाद फिर जिस NATO को पुराना और अप्रासंगिक बताते थे अब उसी संगठन को समर्थन दे रहे हैं. इसी का परिणाम है कि NATO के महासचिव मार्क रुटे ने भारत चीन और ब्राजील को चेतावनी दे डाली. नाटो ने कहा कि रूस से तेल गैस की खरीद जारी रखी तो भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है. रुटे ने इसमें भी पुतिन का तड़का लगा दिया कि ये तीनों देश पुतिन को शांति वार्ता के लिए गंभीर होने को कहें.

यूक्रेन को हथियार और मदद का वादा
अब ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को अमेरिकी हथियारों की एक बड़ी खेप देने की मंजूरी दी है. इसमें मोबाइल रॉकेट सिस्टम और आर्टिलरी शेल्स शामिल हैं. यहां तक कि पैट्रियट मिसाइल भेजने की बात भी हो रही है. जेलेंस्की ने बताया कि उन्होंने ट्रंप के दूत कीथ केलॉग से मुलाकात कर रक्षा सहयोग पर चर्चा की और अपनी जरूरतों की सूची सौंपी जिसे ट्रंप ने मंजूरी दे दी है.

तो क्या फंस गए ट्रंप.. या फिर जल्दबाजी कर गए.. 
एक्सपर्ट की अगर माने तो ट्रंप के बदले रुख को उनके नतीजे दिखाने की जल्दी से भी जोड़ा जा रहा है. वे खुद को यूक्रेन युद्ध रोकने वाला नेता दिखाना चाहते हैं और शायद नोबेल शांति पुरस्कार की चाहत भी रखते हैं. लेकिन पुतिन की ओर से कोई क्लियर फायदा न मिलने पर वे अब खुद को लगभग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. हालांकि यह भी क्लियर नहीं है कि ट्रंप का ये मूड कितने दिन रहने वाला है. 

इन सबमें क्या भारत के लिए कुछ छिपा है?
इस पर इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से बताया कि भारत के लिए इस पूरे घटनाक्रम में दो मैसेज हो सकते हैं. पहला अमेरिका के साथ डील करते समय अपनी राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ऊपर रखना चाहिए. और दूसरा केवल आधिकारिक कूटनीति ही नहीं बल्कि ट्रंप के अनौपचारिक सर्कल से भी जुड़ाव बनाना जरूरी है. भारत के पास इस साल क्वाड समिट में ट्रंप से जुड़ने का मौका है. अब देखना होगा कि क्या परिणाम निकलकर आ सकता है.

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