Iran-Israel Missile Attack: इजरायल से जंग के बीच ईरान एक गलती कर चुका है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ऐलान किया था कि अमेरिकी हितों पर हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे और ईरान की फौज ने ठीक उल्टा किया. इंटरनेट पर एक वीडियो वायरल हो रह है, जो चंद घंटे पहले का है. जब ईरान ने इजरायल पर एक और मिसाइल अटैक किया था. लेकिन इस हमले में एक मिसाइल तेल अवीव में अमेरिकी दूतावास के ऊपर जा गिरी. मिसाइल अटैक इतना भीषण था कि दूतावास की इमारत का एक हिस्सा मलबे में तब्दील हो गया और अमेरिकी दूतावास में चीख पुकार मच गई. हमले की वजह से अमेरिकी दूतावास को अस्थायी तौर पर बंद करना पड़ गया है.
खामेनेई ने दी अमेरिकी शक्ति को चुनौती
अमेरिकी दूतावास पर सीधा हमला करके खामेनेई ने ट्रंप के अहम और शक्ति को चुनौती दी है और अमेरिका में ये आशंका बढ़ रही है कि तेल अवीव में दूतावास पर हमला सिर्फ एक शुरुआत है. ईरान आगे भी अमेरिकी हितों को निशाना बनाता रहेगा. अमेरिका में जारी किए गए इस अलर्ट का आधार क्या है. चलिए समझते हैं.
अमेरिकी मीडिया की कुछ रिपोर्ट्स में शक जाहिर किया गया है कि ईरान की सेना मिडिल ईस्ट में मौजूद अमेरिकी सैन्य अड्डों को निशाना बना सकती है. जिन थिंक टैंक्स के आकलन पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है, उनका कहना है कि अमेरिकी सैन्य अड्डों पर हमले के लिए ईरान लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल कर सकता है. साथ ही एक खतरा ये भी जताया गया है कि यमन, सीरिया और लेबनान में मौजूद हूती और हिज्बुल्ला आतंकियों को अमेरिकी सेना पर हमले के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
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— Zee News (@ZeeNews) June 18, 2025
मिडिल ईस्ट में अमेरिका की किलेबंदी
ईरान से इस खतरे को लेकर अमेरिका भी संजीदा है क्योंकि मिडिल ईस्ट में अमेरिका के कई सैन्य अड्डे हैं और ये ईरानी मिसाइलों की रेंज में आ सकते हैं. मिडिल ईस्ट में अमेरिका की किलेबंदी को कुछ इस तरह समझिए.
मध्य पूर्व एशिया में अमेरिका की सबसे बड़ी सैन्य मौजूदगी कुवैत में है, जहां अमेरिका के चार सैन्य अड्डे हैं. बहरीन, कतर और UAE में भी अमेरिका का एक सैन्य अड्डा है. तुर्किये में भी अमेरिका के दो सैन्य अड्डे हैं. सऊदी अरब, इराक, जॉर्डन और ओमान में अमेरिकी फौज के हवाई अड्डे और स्पेशल फोर्सेज की तैनाती है. कुल मिलाकर इस क्षेत्र में अमेरिका के 40 हजार फौजी तैनात हैं.
आर्मी और एयरफोर्स के साथ ही साथ मिडिल ईस्ट में अमेरिकी नेवी की भी बड़ी मौजूदगी है. अमेरिकी नौसेना के 8 युद्धपोत, एक पनडुब्बी और एक विमानवाहक पोत मिडिल ईस्ट में हैं, जिनपर कुल 7500 अमेरिकी नौसैनिक तैनात हैं.
अमेरिका की ताकत भी कमजोर नस भी
तकरीबन 47 हजार सैनिक साथ में फाइटर जेट और युद्धपोत मिडिल ईस्ट में ये अमेरिका की शक्ति भी है और कमजोर नस भी. इतनी बड़ी फौज के साथ अमेरिका ईरान को नुकसान तो पहुंचा सकता है लेकिन अगर विदेशी धरती पर अमेरिकी सैनिक कुर्बान हुए तो अपने देश में डॉनल्ड ट्रंप को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा. यही वजह है कि ट्रंप ईरान पर दबाव बढ़ाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. खामेनेई पर प्रेशर बढ़ाने के लिए ट्रंप क्या कर रहे हैं, ये अमेरिका में हो रही हलचल से पता चल जाएगा.
30 विमान मिडिल ईस्ट रवाना
अमेरिकी एयरफोर्स ने 30 विमान मिडिल ईस्ट के लिए रवाना किए हैं. ये सभी विमान टैंकर एयरक्राफ्ट हैं. यानी ये हवा में ही फाइटर जेट में ईंधन भर सकते हैं. अमेरिकी मीडिया में ऐसी भी खबरें हैं कि वायुसेना ने चार B-52 बॉम्बर्स भी सऊदी अरब और इराक के सैन्य अड्डों पर भेजे हैं. इससे पहले 17 जून को अमेरिका ने अतिरिक्त फाइटर जेट्स भी रवाना किए थे. बताया जा रहा है कि अमेरिकी फाइटर जेट्स की दो अतिरिक्त स्क्वॉड्रन भेजी गई हैं यानी तकरीबन 36 फाइटर जेट मध्य पूर्व एशिया के अमेरिकी अड्डों पर पहुंच गए हैं.
ट्रंप चाहते हैं कि ईरान बिना किसी शर्त के सरेंडर कर दे. खामेनेई कह रहे हैं कि पूरा ईरान एकजुट है और ईरान कभी घुटने नहीं टेकेगा. दूसरी तरफ नेतान्याहू हैं, जो निश्चय कर चुके हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने से पहले सैन्य कार्रवाई रुकेगी नहीं. यानी ये टकराव तीन देशों का नहीं बल्कि तीन शख्सियतों का बन चुका है और इन तीनों में से जो भी मजबूत फैसला लेगा, पहला वार करेगा जीत उसी को हासिल होगी.