Strait of Hormuz: अमेरिका भी ईरान और इजरायल के बीच इस जंग में कूद गया है. उसने ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों को निशाना बनाया है. लेकिन अब ईरान बदला लेने को बेताब है. ईरान के पास ऐसा खतरनाक ट्रिगर प्वाइंट या यूं कहें कि सऊदी-यूएई समेत सुन्नी इस्लामिक देशों के गुट और अमेरिका की मध्यपूर्व में बोलती बंद करने का हथियार है, उसने ये चलाया तो कोहराम मच जाएगा. इस हथियार का नाम है होर्मुज स्ट्रेट
होर्मुज जलडमरूमध्य कहां है
होर्मुज जलडमरूमध्य 39 किलोमीटर का वो गलियारा है, जहां से दुनिया के 20 फीसदी कच्चे तेल-प्राकृतिक गैस और अन्य सामानों की आवाजाही होती है. ये अरब की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच ऐसा रास्ता है, जहां से बड़े समुद्री जहाजों के आवागमन के रूट को बंद किया जा सकता है. ईरान ने इजरायल से युद्ध के बीच इस जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है, अगर ऐसा हुआ तो यहां जहाजों के आने-जाने के लिए बने दो मील चौड़े रूट पर व्यापार ठप हो जाएगा.इससे तेल की कीमतों में भी उछाल देखने को मिल सकता है.
खाड़ी देशों की कमजोर नस
होर्मुज स्ट्रेट एक छोर पर ईरान तो दूसरी ओमान और यूएई हैं, ये दोनों देश अमेरिका के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं.यूएई,कतर, कुवौत ही नहीं, इराक और सऊदी अरब के व्यापारिक जहाज भी इस रूट से गुजरते हैं.कच्चे तेल के दाम ईरान-इजरायल युद्ध के बाद से 5 फीसदी तक बढ़ चुके हैं.
ईरान ने बिछाया बारूदी सुरंगों का जाल
ईरान के पास होर्मुज स्ट्रेट के पास बारूदी सुरंगों का पूरा जाल बिछा रखा है, जो समुद्र के पानी को खून से लाल कर सकता है. 1988 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान एक अमेरिकी का गाइडेड मिसाइल पोत U.S.S. Samuel B. Roberts ऐसी ही एक माइन से टकरा गया था और आधा डूब गया था. यूएस सेंट्रल कमांड के पूर्व कमांडर जनरल जोसेफ वोटेल और यूएस नेवी के पूर्व वाइस एडमिरल केवल डोनेगन का कहना है कि ईरान ने ये होर्मुज स्ट्रेट में माइनिंग ट्रिगर दबा दिया तो इजरायल को बमबारी रोकने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान कमजोर है, लेकिन वो इस्लामिक क्रांति को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.
ईरान के पास तीन तरह की समुद्री बारूदी सुरंगें (Sea Mines)
ईरान के पास हल्की लिंपेट माइन्स और भारी मूर्ड माइंस भी हैं. हल्की लिंपेट माइंस को गोताखोर समुद्र में ले जाकर कहीं भी किसी शिप में लगा सकते हैं और टाइमर के साथ ये धमाका कर सकते हैं.इसमें थोड़ा विस्फोटक ही खतरनाक काम करता है. जबकि मूर्ड माइंस में सैकड़ों किलो विस्फोटक होता है, इन्हें समुद्र में छोड़ दिया जाता है, जो संदिग्ध शिप से चिपककर उन्हें धमाके के साथ उड़ा सकती हैं.इससे भी एडवांस्ट बॉटम माइंस भी उसके पास हैं, जो समुद्री तलहटी में पड़ी रहती हैं. मैग्रनेटिक- सीस्मिक सेंसर से लैस ये माइंस किसी शिप की हलचल देखते हुए एक्टिव हो जाती हैं और बड़ा धमाका कर सकती हैं.
बहरीन में US Navy का बेड़ा
बहरीन में अमेरिकी नेवी का पांचवां बेड़ा इसी शिपिंग जोन में मोर्चा संभाले हुए हैं. अमेरिकी नौसेना के पास (Task Force 56) चार माइस्वीपिंग जहाज(minesweeper) हैं, जो बहरीन में डेरा डाले हैं. यूएस नेवी अंडरवॉटर रोबोट का इस्तेमाल भी ऐसी बारूदी सुरंगों का पता लगाने में करती है, लेकिन हजारों जहाजों के बीच ये कितना कारगर होगा, ये देखना बाकी है.
भारत औऱ चीन को भी नुकसान
हालांकि होर्मुज स्ट्रेट बंद हो जाने से भारत और चीन को भी तगड़ा नुकसान होगा, यहां से ईरान और मध्य पूर्व के बड़े देशों से चीन के लिए कच्चा तेल सप्लाई होता है.चीन कतई नहीं चाहता कि ईरान की खाड़ी से उसको तेल की सप्लाई ठप हो जाए या कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आए. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि अगर होर्मुज को बंद किया गया तो कच्चे तेल के दाम 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं.
क्या है होर्मुज जलडमरूमध्य
होर्मुज जलडमरूमध्य यानी (Strait of Hormuz) ईरान और ओमान के बीच करीब 40 किलोमीटर चौड़ा समुद्री गलियारा है. इसके रास्ते से सऊदी अरब (63 लाख बैरल रोजाना), यूएई, कुवैत, कतर, इराक (33 लाख बैरल रोजाना) और ईरान (13 लाख बैरल रोजाना) कच्चा तेल भेजते हैं. प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा भंडार कतर की पूरी सप्लाई भी यहीं से होती है.
इराक-ईरान का युद्ध
ईरान का जब इराक से 1980 में युद्ध शुरू हुआ तो अयातुल्लाह अली खामेनेई सरकार ने यहां मोर्चा खोल दिया. अमेरिका औऱ पश्चिमी देशों ने जब 2011 में ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए तो जलडमरूमध्य की राह में उसने बाधाएं पैदा कीं. होर्मुज स्ट्रेट पर ही मई 2019 में सऊदी अरब के तेल टैंकरों पर हमला हुआ था, जिसमें ईरान समर्थित हुती विद्रोहियों का हाथ बताया जाता है.जुलाई 2021 में इजरायल के एक तेल टैंकर भी हमला किया गया, जिसमें दो लोगों की मौत भी हुई. इसके पीछे इजरायल ने ईरान का हाथ बताया था.
खाड़ी देशों में अमेरिका के 40 हजार सैनिक
अमेरिका के सैन्य ठिकाने ईरान के चारों ओर मध्यपूर्व देशों में हैं, जहां करीब 40 हजार सैनिक हैं. इनमें सऊदी अरब, यूएई, कतर, बहरीन, ओमान, इराक और कुवैत भी शामिल हैं.मध्यपूर्व में अमेरिका का युद्धपोत भी डेरा डाले हुए हैं.अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाने के लिए ईरान को वैसी लंबी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइलों की जरूरत नहीं पड़ेगी, जैसा वो इजरायल के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है.
आत्मघाती हमलों का खतरा
न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एडमिरल डोनेगन कहना है कि ईरान की छापामार गुरिल्ला युद्ध में माहिर कुड्स फोर्स भी खाड़ी देशों में बड़ा खतरा है. कुड्स फोर्स और ईरान समर्थित हिजबुल्ला, हमास और हुती विद्रोही भी अमेरिकी सैन्य ठिकानों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं. इराक, सीरिया से लेकर जॉर्डन तक कुड्स फोर्स के एजेंट फैले हैं.कार्नेगी एंडावमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में ईरानी पॉलिसी एक्सपर्ट करीम सादजादपुर ने कहा कि सुसाइड बांबर ईरान का बड़ा हथियार बन सकते हैं.
कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद मचाया था कोहराम
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिकी ड्रोन ने ईरान के टॉप जनरल कासिम सुलेमानी को बगदाद में मार डाला था. इसके बाद ईरान ने 100 से मिसाइलों की बारिश इराक में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर कर दी थी. इस हमले में अमेरिका के 100 से ज्यादा जवानों को ब्रेन इंजरी हुई थी. उसने गलती से एक हवा में एक यात्री विमान को भी हिट किया था, जिसमें सवार 176 यात्रियों की मौत हो गई थी.