40 साल से वो शहर ही नहीं, आसपास का इलाका भी वीरान पड़ा है. न कोई वहां जाता है, न जाने की हिम्मत जुटा पाता है. परमाणु दुर्घटना के चलते वहां रेडिएशन इतना ज्यादा बढ़ गया कि जिंदा रहना मुश्किल है. अब वैज्ञानिकों को पता चला है कि कोई जीव वहां 'सांस' ले रहा है. पहले तो यह जान लीजिए कि वो जगह यूक्रेन का चेर्नोबिल है. आपको यह भी पता है कि 1986 में अचानक रिएक्टर में विस्फोट होने से रेडियोएक्टिव पदार्थ हवा में फैल गया था. आगे जो हुआ, वो एक डरावना इतिहास है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक चेर्नोबिल रिएक्टर नंबर 4 पर एक ऐसे जीव के होने का पता चला है जो रेडियोएक्टिव वातावरण में पनपता है. यह एक organism या कहें कि ब्लैक फंगस है. इसने विकिरण से लड़ते हुए खुद को जिंदा रखा है. इससे उम्मीद बंधी है कि वह चेर्नोबिल को क्लीन कर रहा है.
भीषण रेडिएशन का वो इलाका
चेर्नोबिल परमाणु आपदा के चलते यूक्रेन, बेलारूस और आज के रूस के इलाके के लोग प्रभावित हुए थे. कुछ ही दिनों में प्लांट में काम करने वाले 30 कर्मचारियों की मौत हो गई थी. 30 किमी के दायरे में आने वाले घरों को खाली करा लिया गया था. भीषण विकिरण यानी रेडिएशन के कारण यह इलाका भूतिया शहर बन गया. वहां कोई रह नहीं सकता और रेडियोएक्टिव वातावरण में कुछ पैदा भी नहीं हो सकता.
हालांकि अब ब्लैक फंगस पनपने की खबर हैरान कर रही है. आपदा में रिएक्टर नंबर 4 में बेकाबू हुई परमाणु रीएक्शन प्रक्रिया से विस्फोट हुआ था. अब इसकी दीवारों पर क्लैडोस्पोरियम स्फेरोस्पर्मम (Cladosporium sphaerospermum) नामक एक ब्लैक फंगस पनपता हुआ देखा गया है. रेडियोट्रॉफिक कवक कहे जाने वाले इस फंगस को दुनिया में पहली बार कहीं देखा गया है.
स्पेस यात्रा में बनेगा मददगार
हां, साइंटिस्ट मान रहे हैं कि चेर्नोबिल का यह जीव स्पेस ट्रवेल में मददगार हो सकता है. इस खोज ने वैज्ञानिकों को इस जीव का इस्तेमाल उन स्थितियों में करने के लिए प्रेरित किया है जहां जीवित जीवों का उपयोग पर्यावरण से प्रदूषकों को हटाने के लिए किया जा सकता है. सब कुछ सही रहा तो उच्च-विकिरण वाले क्षेत्रों में इसे पहुंचाया जा सकता है जहां ये रेडिएशन के लेवल को कम कर सकते हैं. इसके अलावा यह ब्लैक फंगस स्पेस ट्रवेल में भी उपयोगी साबित हो सकता है. मंगल और चंद्रमा पर इंसानों के जाने की रेस लगी है. सबसे बड़ी चुनौती रेडिएशन का खतरा ही है, जो इंसानी शरीर के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकता है. यही वजह है कि C. sphaerospermum नाम का फंगस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भेजा गया था. माना जा रहा है कि ब्लैक फंगस इस दिशा में उपयोगी साबित हो सकता है.