Azerbaijan and Pakistan Deal: भारत की तरफ से नजर अंदाज किए जाने के बाद अजरबैजान ने पाकिस्तान की तरफ मुंह मोड़ लिया है. खबर है कि अजरबैजान ने किसी और देश के ज़रिए भारत को संदेश भिजवाया कि वो हथियार खरीदना चाहता है. हालांकि, भारत ने इस अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया और साफ कहा कि वह अपने दो तरफा संबंधों और प्राथमिकताओं को खुद तय करेगा, किसी अन्य देश के ज़रिए से नहीं. भारत की तरफ से भाव ना मिलने पर अजरबैजान ने 'दुश्मन मुल्क' पाकिस्तान की तरफ रुख कर लिया और अब यह खबर आ रही है कि पाकिस्तान जल्द ही अजरबैजान को हथियार सौंपने वाला है.
अज़रबैजान जल्द ही पाकिस्तान से JF-17 थंडर लड़ाकू विमानों की पहली खेप हासिल कर लेगा और भविष्य में दोनों देशों के बीच इन विमानों के ज्वाइंट प्रोडक्शन की संभावना भी है. यह जानकारी पाकिस्तान के सूचना मंत्री अत्ता तारड़ ने एक इंटरव्यू के दौरान दी. उन्होंने बताया कि अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करना चाहते हैं और पाकिस्तान में 2 अरब डॉलर का निवेश करने का भी वादा किया है. तारड़ ने पुष्टि करते हुए कहा कि अज़रबैजान के पाकिस्तान में निवेश को लेकर आखिरी चर्चा चल रही है और अप्रैल में राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव की इस्लामाबाद यात्रा के दौरान इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे.
सोमवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बिजनेस फोरम में हिस्सा लिया, जो अज़रबैजान की राजधानी बाकू में हुआ. इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया और 'नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर' को इस इलाके के लिए एक 'गेम चेंजर' बताया. प्रधानमंत्री शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान और अज़रबैजान मिलकर रक्षा उत्पादन में सहयोग बढ़ा रहे हैं और JF-17 लड़ाकू विमान इस रक्षा साझेदारी का एक उदाहरण है. उन्होंने यह भी कहा कि 2 अरब डॉलर का निवेश समझौता एक महीने के अंदर पूरा कर लिया जाएगा.
खबरें थीं कि अज़रबैजान ने सीधे तौर पर भारत से कोई संपर्क नहीं किया, बल्कि एक मित्र देश के माध्यम से यह संदेश भिजवाया कि अगर भारत अपने स्वदेशी हथियारों को निर्यात करना चाहता है, तो वह अज़रबैजान को एक दीर्घकालिक रक्षा साझेदार बना सकता है. हालांकि भारत ने इस अनुरोध को अनदेखा करते हुए साफ कर दिया कि वह अपनी विदेश नीति और रक्षा साझेदारों का चयन स्वतंत्र रूप से करेगा और किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा. अज़रबैजान ने यह भी इशारा दिया कि वह भारत-अर्मेनिया के रक्षा सौदों की बराबरी करने को तैयार है, लेकिन भारत ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
अजरबैजान को मुंह ना लगाने के पीछे एक वजह यह भी है कि भारत और अर्मेनिया रक्षा साझेदार भी हैं और दूसरी तरफ अज़रबैजान व अर्मेनिया के बीच लंबे समय से नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर संघर्ष चल रहा है. 2020 की जंग में अज़रबैजान ने तुर्की से मिले ड्रोन और हथियारों की मदद से बढ़त हासिल की थी, जिसके बाद अर्मेनिया ने भारत से हथियार खरीदने शुरू किए. अब तक अर्मेनिया ने भारत से रॉकेट लॉन्चर, तोपें, गोला-बारूद, स्नाइपर राइफल और एंटी-टैंक मिसाइल खरीदी हैं. इसके अलावा वह भारतीय 'अस्त्र' मिसाइल खरीदने की योजना बना रहा है, जिससे उसके सुखोई Su-30 लड़ाकू विमानों की ताकत बढ़ेगी. अर्मेनिया सिर्फ भारत का रक्षा साझेदार ही नहीं, बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. फ्रांस और ग्रीस जैसे भारत के अन्य सहयोगी देश भी अर्मेनिया को रक्षा सहयोग प्रदान कर रहे हैं.