China: चीन की दादागिरी सिर्फ दक्षिण चीन सागर तक ही महदूद नहीं है, बल्कि वह पश्चिमी तट पर भी अपनी सैन्य गतिविधियां लगातार बढ़ा रहा है. चीन की नौसेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) बीते कुछ सालों से पश्चिमी तट पर तेजी से आगे बढ़ी है. इसके अलावा चीनी सेना प्रशांत महासागर के दूर-दराज के इलाकों में भी अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रही है. इसकी बानगी है हाल ही में चीन के द्वारा पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में दो एयरक्राफ्ट कैरियर्स की तैनाती. यह उसकी सैन्य ताकत के प्रदर्शन की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. जबकि चीन को इस इस क्षेत्र में भौगोलिक और कूटनीतिक चुनौतियों का पहले सामना करना पड़ रहा है.
बीजिंग की यह कोशिश इसलिए भी कठिन है, क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की अगुवाई वाला सैन्य गठबंधन पहले से ही मजबूत मौजूदगी बनाए रखा है. इस बीच, चीन ने पहली बार पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में एक साथ दो विमानवाहक पोत - लियाओनिंग और शांदोंग तैनात कर दिए. लेकिन, चीन का का कहना है कि ये तैनाती ट्रेनिंग के लिए थी. चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, इस एक्सरसाइज में 'कॉम्बैट ट्रेनिंग और प्रैक्टिस' शामिल थे. दोनों पोत इस तट पर क्रमश: 24 और 16 दिनों तक तैनात रहे. जहां उन्होंने टोही, जवाबी हमले और एंटी-सरफेस वॉरफेयर ट्रेनिंग दिया गया.
हालांकि, जेम्सटाउन फाउंडेशन के रिसर्चर यू-चेंग चेन और के. ट्रिस्टन टैंग के मुताबिक, इस ट्रेनिंग में तीन प्वाइंट्स काफी अहम हैं:-
- पहला- पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में दो विमानवाहक पोतों की तैनाती कर स्पेशल ट्रेनिंग.
- दूसरा- चीन का पहली बार पीएलए का विमानवाहक पोत गुआम जैसी अमेरिकी सामरिक परिसंपत्तियों के करीब पहुंचना.
- तीसरा- फर्स्ट आइलैंड चेन से परे चीनी कैरियर ग्रुप्स की रिकॉर्ड तोड़ ऑपरेटिंग ड्यूरेशन.
यही कारण है कि इस बदलाव से पता चलता है कि पीएलए अब ताइवान समेत आस-पास के जलक्षेत्रों में अपने डोमिनेंस को लेकर पूरी तरह से तैयार है. और दूर-दराज़ के समुद्री क्षेत्रों में गतिशील अभियानों की तरफ बढ़ रही है. हालांकि, एक्सपर्ट्स आगाह करते हैं कि ये विस्तारित तैनाती चीन की बड़ी कमज़ोरियों को भी उजागर करती है. मसलन लॉजिस्टिक्स, एसोसिएट्स और विश्वसनीय वैश्विक ठिकानों का अभाव.
चीन की नौसैनिक महत्वाकांक्षाओं के सामने एक बड़ी भौगोलिक रुकावट है. 'फर्स्ट आइलैंड चेन'. यह जापान से लेकर ताइवान, फिलीपींस और इंडोनेशिया तक फैली एक आइलैंड चेन है, जो चीन के पूर्वी समुद्री किनारे को घेरती है. किसी भी जंग की सूरत-ए-हाल में, खासकर ताइवान को लेकर, यह सीरीज चीन के लिए एक बड़ी बाधा बनती है. जबकि ताइवान रणनीतिक रूप से अहम है. इसे कब्जे में लेना सिर्फ चीन का राजनीतिक मकसद नहीं है, बल्कि सामरिक (रणनीतिक) टारगेट भी है. अगर चीन ताइवान पर कंट्रोल पा लेता है, तो वह इस आइलैंड सीरीज को तोड़कर सीधे प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) तक पहुंच सकता है. हालांकि, चीन की नौसेना (PLAN) ने अपनी सरगर्मियों बढ़ाई हैं. जबकि, हाल ही में एक दिन में 90 लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी. लेकिन, लंबी दूरी के ऑपरेशनों में चीन की कमजोरियां भी साफ दिखती हैं. चीन के पास अभी स्थायी लॉजिस्टिक सपोर्ट और किनारे से मिलने वाली मदद की कमी है. इसी वजह से उसे छापामार रणनीति और सीमित संसाधनों के साथ काम चलाना पड़ता है.
जैसा कि मिलिट्री एक्सपर्ट्स चेन और तांग ने लिखा है, 'इस बदलाव के कारण चीन की सेना हवाई (Hawaii) के और करीब पहुंच रही है. और इससे अमेरिका को पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी सेना की तैनाती और तैयारी पर दोबारा सोचने की ज़रूरत पड़ सकती है.'
उधर, अमेरिका और उसके सहयोगी संयुक्त अभियानों को और बेहतर बनाने और बेजोड़ पहुंच का प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं. ऑस्ट्रेलिया में अभ्यास टैलिसमैन सेबर 2025 के दौरान, अमेरिकी नौसेना के यूएसएस जॉर्ज वाशिंगटन और ब्रिटेन के एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स ने ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड और नॉर्वे के जहाजों के सहयोग से एक शक्तिशाली संयुक्त शक्ति प्रदर्शन में हिस्सा लिया. रियर एडमिरल एरिक एंडुज (कमांडर, कैरियर स्ट्राइक ग्रुप फाइव) ने बताया कि, 'हम अपनी रणनीति और संचार का रिहर्सल करते हैं. ये सभी अनुभव अंतर-संचालन को बढ़ाते हैं और इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए हमारे गठबंधन को मजबूत करते हैं.'
उन्होंने साझेदारी से मिलने वाली रणनीतिक बढ़त पर जोर देते हुए कहा, 'सफल होने और सबसे ज्यादा प्रभाव डालने के लिए हमें सहयोगियों और साझेदारों के साथ मिलकर काम करना होगा.' इस एक्सरसाइज में अंतर-उड़ान अभियान भी देखे गए, जहां अमेरिकी वायु सेना के पायलटों ने ऑस्ट्रेलियाई F-35A लड़ाकू विमान उड़ाए. जैसा कि USAF के मेजर जस्टिन लेनन ने बताया कि, 'किसी भी F-35 में किसी भी पायलट को बैठाने की अतिरिक्त सुविधा. F-35 गठबंधन की मारक क्षमता को और बढ़ा देती है.' जबकि, चीन बिना सैन्य सहयोगियों के इस तरह का एक्सरसाइज आसानी से नहीं कर सकता है. मिसाल के तौर पर, इसी एक्सरसाइज के दौरान, ऑस्ट्रेलियाई सेना ने डार्विन में कनाडाई बैटलशिप एचएमसीएस विले डे क्यूबेक को फिर से रीलोड किया.