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कंगाली-भुखमरी के बावजूद पाकिस्तान को खास बनाती है यह चीज, ट्रंप ने यूंही नहीं की आसिम मुनीर की मेजबानी?

Pakistan: ऑपरेशन सिंदूर के बाद फील्ड मार्शल नियुक्त किए गए मुनीर को लुभाने के लिए ट्रंप ने जो किया, वह हमें याद रखने की जरूरत है. जबकि पाकिस्तान रणनीतिक रूप से अफ़गानिस्तान, ईरान और चीन के बगल में मौजूद है, जिनमें से सभी ने वक्त-वक्त पर वाशिंगटन और मॉस्को में राजनयिक पदों को प्रभावित किया है.

कंगाली-भुखमरी के बावजूद पाकिस्तान को खास बनाती है यह चीज, ट्रंप ने यूंही नहीं की आसिम मुनीर की मेजबानी?
Md Amjad Shoab|Updated: Jun 19, 2025, 09:37 PM IST
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Pakistan: पाकिस्तान को अक्सर एक 'फेल स्टेट'यानी नाकाम मुल्क कहा जाता है. कभी-कभी इसे 'रॉग स्टेट' दुष्ट देश या 'क्लाइंट स्टेट' यानी किसी और देश के इशारों पर चलने वाला मुल्क भी कहा जाता है. लेकिन ये बातें पूरे पाकिस्तान के बारे में नहीं, बल्कि वहां की फौज-केन्द्रित हुकूमत (सत्ता) के बारे में होती हैं. पाकिस्तानी सेना का एक ऐसा तंत्र है जो आम आवाम के हितों को नजरअंदाज कर महज अपनी ताकत और सोच को बनाए रखने की कोशिश करता है. इसकी बानगी है मुल्क में सेना ने कई बार सैन्य तख्तापलट और मार्शल लॉ करके लोकतंत्र को दबाया है. इसके अलावा मौजूदा पाक आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर अमेरिका में प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप के साथ व्हाइट हाउस में लंच पर मीटिंग भी की. अब सवाल यह है कि इतने आलोचनाओं और विरोध के बावजूद पाकिस्तान की फौज को इतनी ताकत और छूट कैसे मिली हुई है. न सिर्फ अपने मुल्क में, बल्कि विदेशों में भी?

इस सवाल का जवाब काफी आसान है. पाकिस्तान की संपदा एक अहम परिसंपत्ति है. जिसका मतलब यह है कि लोकतंत्र, शासन, राष्ट्रीयता या संविधान की तुलना में अचल संपत्ति ज्यादा मायने रखती है, जो एक अभिजात वर्ग ( सामाजिक, आर्थिक, या राजनीतिक रूप से प्रभावशाली शख्स )  को सत्ता में मजबूती से बने रहने में मदद करती है, बावजूद इसके कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि इस्लामाबाद लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और उसके नेताओं या एबटाबाद छावनी के पास मारे गए कुख्यात ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी समूहों या मोस्ट वॉन्टेड लोगों की अनदेखी करता है और/या उनका पोषण करता है.

ट्रंप ने क्यों की आसीम मुनीर की मेजबानी?
भारत द्वारा 7 मई को पाकिस्तान मे मौजूद आतंकी शिविरों को निशाना बनाकर हमले किए गए. इस हमले में पाकिस्तान में उसके 9 आतंकी ठिकाने नेस्तोनाबूद हो गए. ऑपरेशन सिंदूर के तहत इस कार्रवाई में  मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार में पाक सेना के अफसर भी हुए शामिल हुए. इसके कुछ ही सप्ताह बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसीम मुनीर की मेजबानी की, यह समझने के लिए गहराई से सोचने का वक्त है कि वास्तव में क्या हो रहा है?

पाकिस्तान की ख़ास चीज
अगर हम  सटीक शब्दों में कहें तो पाकिस्तान की ख़ास अहमियत उसका राजनीतिक इतिहास नहीं, बल्कि उसकी 'डिप्लोमैटिक जियोग्राफी' यानी सिफारती हैसियत है. सोशल मीडिया पर चाहे जितने भी मीम्स बनें ट्रंप और मुनीर की प्राइवेट लंच मीटिंग को लेकर, असली वजह पाकिस्तान की 'लोकेशन, लोकेशन, लोकेशन' है. जबकि यह कहावत रियल एस्टेट (जायदाद) के व्यापार में बहुत मशहूर है, जिसमें कहा जाता है कि किसी भी जगह की कीमत तय करने में उसकी लोकेशन सबसे अहम होती है. हालांकि, यह बात ब्रिटिश बिज़नेसमैन हैरोल्ड सैमुअल से जुड़ी मानी जाती है, लेकिन असल में 1926 में एक अमेरिकी अखबार 'शिकागो ट्रिब्यून' के इश्तहार में पहली बार लिखी गई थी. पाकिस्तान की यही लोकेशन उसे कई बार कूटनीतिक परेशानियों से बचा लेती है.

पाकिस्तान  अमेरिका का पुराना मददगार
ऐसा इसलिए है क्योंकि पाकिस्तान रणनीतिक रूप से अफ़गानिस्तान, ईरान और चीन के बगल में मौजूद है, जिनमें से सभी ने वक्त-वक्त पर वाशिंगटन और मॉस्को में राजनयिक पदों को प्रभावित किया है. जब 1979 में तत्कालीन सोवियत संघ की कठपुतली शासन स्थापित करने की योजना के तहत रूसी सैनिकों ने अफगानिस्तान में एंट्री की, तो यह पाकिस्तान ही था जिसने शीत युद्ध के आखिरी वक्त में “मुजाहिद्दीन” या मुक्ति समूहों की मेजबानी करके अमेरिका की मदद की थी.

अमेरिकी विदेश नीति 
जबकि बिन लादेन के वैश्विक जिहादी आंदोलन बनाने के विचार का पता पाकिस्तान में उसकी मौजूदगी से लगाया जा सकता है. यह विडंबना है कि न केवल अलकायदा ग्रुप वजूद में आया बल्कि उसने 2001 में न्यूयॉर्क में 9/11 के हमलों को अंजाम भी दिया. वहीं, तालिबान जो मौजूदा वक्त में अफगानिस्तान पर शासन करता है और अमेरिका का बड़ा विरोधी रहा है. बावजूद इसके अमेरिकी विदेश नीति से यह समझा सकता है कि कैसे भारत के सर्वोत्तम कूटनीतिक प्रयास और सबूत विदेश विभाग को प्रभावित करने में बहुत कम मदद करते हैं.

ऑपरेशन सिंदूर के बाद फील्ड मार्शल नियुक्त किए गए मुनीर को लुभाने के लिए ट्रंप ने जो किया, वह हमें याद रखने की जरूरत है कि आम तौर पर रिपब्लिकन और खास तौर पर मौजूदा व्हाइट हाउस के मौजूदा चीफ के तहत, अमेरिका लोकतंत्र या सभ्य कूटनीति का सरपरस्त और अपने रणनीतिक हितों और व्यापारिक ताकत की देखभाल करने वाली शक्ति ज्यादा है. इसे एक प्रभावशाली यहूदी लॉबी से मदद मिलती है, जिसने अचानक अमेरिका का ध्यान चीन के साथ व्यापार वार्ता से हटाकर इजरायल और ईरान को शामिल करते हुए एक आक्रामक जुड़ाव की ओर मोड़ दिया है. जबकि भारत के ऑपरेशन सिंदूर का ईरान से कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन ईरान युद्ध पाकिस्तान के लिए अमेरिका के साथ जुड़ने के लिए एक बेहतरीन अवसर बनकर उभरा है.

मुनीर अब सरकार के नियंत्रण में
वहीं, इजरायल-ईरान जंग पर शोर कम होने के बाद चीन विश्व मानचित्र पर ठीक उसी जगह पर बना रहेगा, जहां वह पहले से है. लेकिन इससे इस्लामाबाद को अमेरिका के मुकाबले भू-राजनीतिक कार्ड खेलने में मदद मिलेगी. इससे यहां ये भी साफ हो गया कि व्यावहारिक तौर पर मुनीर अब सरकार के नियंत्रण में हैं. 

पाकिस्तान में कौन हुकूमत करता है?
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के एक हफ़्ते बाद ही पाकिस्तान सरकार ने एक सेवारत सैन्य जनरल असीम मलिक को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया. जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के पूर्व प्रमुख, वे कोई साधारण जनरल नहीं हैं. अफसरों के ऊपर एनएसए के पद पर उनकी नियुक्ति से पता चलता है कि पाकिस्तान में कौन हुकूमत करता है.

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