Israel Target Pakistan Kahuta: ईरान परमाणु बम न बना ले, यह कहकर इजरायल ने उसके कई साइंटिस्टों और न्यूक्लियर बेस को उड़ा दिया है. कम लोगों को पता होगा कि एक बार इजरायल यही काम पाकिस्तान के खिलाफ करने वाला था. हां, भारत का थोड़ा सा सहयोग चाहता था लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान का परमाणु ठिकाना बच गया. ये कहानी 1980 के दशक के शुरुआती दौर की है. तब पाकिस्तान परमाणु बम बनाने के लिए छटपटा रहा था.
मुस्लिम बहुल पाकिस्तान के खिलाफ था इजरायल
इजरायल नहीं चाहता था कि फिलिस्तीन का खुलकर सपोर्ट करने वाला मुस्लिम बहुल पाकिस्तान परमाणु क्षमता हासिल करे. पाकिस्तान में उसके जासूस घुसे हुए थे. नाई की दुकान से इकट्टा बालों से भारत ही नहीं, इजरायल को भी पता चल चुका था कि पाकिस्तान का परमाणु बम कार्यक्रम कहां चल रहा है. अब इजरायल ने भारत के सामने एक गुप्त प्रस्ताव रखा. इसमें कहा गया था कि भारत की मदद से इजरायल पाकिस्तान के काहुता में चल रहे परमाणु सेंटर को उड़ा देगा.
कई तरह की आशंकाएं पैदा होने लगीं. 1971 की लड़ाई से पाकिस्तान के दो टुकड़े हो चुके थे. वैश्विक पटल पर दिखे गठजोड़ और चिंताओं के कारण भारत ने पूरी मजबूती से हामी नहीं भरी. जबकि इजरायल ने भारत के जामनगर और उधमपुर एयरबेस पर अपने F-16 और F-15 फाइटर जेट तैनात करने की तैयारी कर ली थी. इस प्लान में भारत के जगुआर विमानों से ईंधन भरने में सहायता दी जानी थी. TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शुरुआत में आगे बढ़ने के लिए हरी झंडी दे दी लेकिन अटैक से कुछ दिन पहले ऑपरेशन रोक दिया गया. उसके बाद पीएम बने राजीव गांधी ने इसे पूरी तरह से कैंसल कर दिया.
पाकिस्तान टू लीबिया
पाकिस्तान के परमाणु क्षमता हासिल करने की तरफ तेजी से बढ़ने को लेकर इजरायल चिंतित था. उस समय सैन्य शासक जिया उल हक थे. 1979 में इजरायली पीएम ने ब्रिटिश पीएम मार्गरेट थैचर को लिखकर आगाह भी किया था कि पाकिस्तान से परमाणु तकनीक लीबिया को दी जा सकती है. ऐसे में सवाल यह है कि तब भारत इस ऐक्शन से पीछे क्यों हट गया.
आंतरिक टेंशन में फंसा था भारत
दरअसल, भारत हिचकिचा रहा था. 1980 के दशक की शुरुआत में देश में घरेलू अशांति थी. पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में उग्रवाद बढ़ रहा था, JKLF के संस्थापक मकबूल भट की फांसी के बाद कश्मीर में तनाव बढ़ रहा था और सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तान के साथ सैन्य टकराव था. यही नहीं, अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ चल रही कोशिशों में अपनी भूमिका के कारण पाकिस्तान ने अमेरिकी सरकार से अच्छे संबंध बनाए हुए थे.
ऐसे में भारत को इस बात की आशंका थी कि अगर वह इजरायल का सहयोग करता है तो अमेरिका ऐक्शन ले सकता है. अमेरिका ने 1982 से इस्लामाबाद को एफ-16 की आपूर्ति भी शुरू कर दी थी. ऐसे में यह कूटनीतिक कदम काफी जोखिम भरा था. काहुता पर अटैक से बड़ा संघर्ष छिड़ सकता था. इजरायल दूर है और भारत पड़ोस में, ऐसे में हमारा नुकसान ज्यादा हो सकता था.
आगे 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और 1988 में जिया की मृत्यु के बाद ऑपरेशन को चुपचाप बंद कर दिया गया. तब तक पाकिस्तान ने अपना परमाणु हथियार कार्यक्रम काफी आगे बढ़ा लिया था.