Pakistan-US Friendship: ट्रंप ने पाकिस्तान पर लगातार मेहरबानी की. पाकिस्तान को IMF से लोन दिलाया. पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच कराया.लेकिन मेहरबानी के बदले में पाकिस्तान ने उल्टा ट्रंप को ही ठग लिया है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, चलिए आपको बताते हैं. दो तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.
ट्रंप के दुश्मन को शहबाज ने लगाया गले
पहली तस्वीर अजरबैजान की है, जहां एक व्यापारिक मंच पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और ईरान के राष्ट्रपति मसूद की मुलाकात हुई थी. दूसरी तस्वीर इस्लामाबाद की है, जहां शहबाज शरीफ ने ईरान के राष्ट्रपति का स्वागत किया. इन दो तस्वीरों के बीच सिर्फ 24 घंटों का अंतर है.शहबाज ने ट्रंप के शत्रु माने जाने ईरान को ना सिर्फ गले लगाया बल्कि शहबाज और मुनीर ने ईरान का साथ देने का दावा भी किया.
पाकिस्तान ने जो सबसे बड़ी घोषणा की है, वो ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी है. पाकिस्तान ने अधिकारिक बयान में कहा है कि वो ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम का समर्थन करेगा. इसके साथ ही साथ पाकिस्तान ने ईरान के साथ द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने का भी ऐलान किया है. यानी ईरान से पाकिस्तान को आर्थिक और सामरिक सहयोग दोनों मिलेंगे.
अब पाक कर रहा खुलेआम समर्थन
सिर्फ 2 महीने पहले ईरान के परमाणु कार्यक्रम की वजह से ही अमेरिका और इजरायल के गठबंधन ने ईरान पर हमला किया था. ट्रंप ने तो खुद मीडिया के सामने आकर दावा किया था कि अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बड़ा नुकसान पहुंचाया है और अब ट्रंप की मेहरबानियों पर निर्भर पाकिस्तान खुद ईरान के परमाणु कार्यक्रम का खुलेआम समर्थन कर रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि आंकड़े पसंद ना आने पर जिन डॉनल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकार को निकाल दिया था वो ईरान का समर्थन करने वाले पाकिस्तान के साथ क्या करेंगे.
जिस तरह ट्रंप ने भारत और रूस के सहयोग पर झूठे आरोप लगाए हैं, क्या वो पाकिस्तान और ईरान के संबंधों पर भी ऐसे ही सख्त बयान देंगे. क्या डॉनल्ड ट्रंप इस्लामाबाद में बैठी सरकार को ईरान से दूरी बनाने के लिए कहेंगे. और सबसे बड़ा सवाल क्या ईरान से हाथ मिलाने के बाद ट्रंप पाकिस्तान के ऊपर टैरिफ बढ़ाएंगे.
क्यों पाक पर एक्शन नहीं लेंगे ट्रंप?
अगर सामरिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इन सब सवालों का एक ही जवाब होगा कि पाकिस्तान पर ट्रंप कोई सख्त कदम नहीं उठाएंगे या फिर यूं कहें कि ट्रंप कोई सख्त कदम नहीं उठा सकते. ये समझने के लिए आपको शहबाज और मुनीर की वो बिसात देखनी चाहिए, जिसमें ट्रंप फंस चुके हैं. इस बिसात का केंद्रबिंदु है अफगानिस्तान में राज कर रहा तालिबान.
इस समीकरण पूरी तरह समझने के लिए आपको सबसे पहले तालिबान पर ट्रंप की मेहरबानियों का रिकॉर्ड देखना चाहिए. मार्च के महीने में ट्रंप सरकार ने तालिबान के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी पर घोषित किया गया ईनाम रद्द कर दिया था.अप्रैल 2025 में ट्रंप सरकार ने कहा था कि तालिबान को प्रतिबंधित संगठन की श्रेणी में डालने के फैसले पर दोबारा विचार किया जाएगा. ट्रंप ने उन अफगान शरणार्थियों को भी वापस भेजने का फैसला किया है, जो अमेरिकी फौज के साथ तालिबान के खिलाफ लड़े थे.
क्या है ट्रंप का मिडिल एशिया प्लान?
सामरिक हलकों में माना जा रहा है कि इन मेहरबानियों के पीछे ट्रंप का मध्य एशिया प्लान है. ट्रंप चाहते हैं मध्य एशिया तक अमेरिकी पहुंच बढ़ाकर पुतिन को खुली चुनौती दी जाए. अजरबैजान जैसे रूस और अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों से ट्रंप पहले ही डील कर चुके हैं. यानी तालिबान का सहयोग मिलते ही ट्रंप का प्लान एक कदम आगे बढ़ जाएगा. वहीं दूसरी तरफ अगर भौगोलिक परिस्थितियों को देखें तो पाकिस्तान और अफगानिस्तान बड़ा बॉर्डर साझा करते हैं. ऐसे में अगर ट्रंप ने पाकिस्तान या ईरान पर ट्रंप दबाव बढ़ाया तो मुनीर अफगानिस्तान में अस्थिरता पैदा करके ट्रंप के तालिबान प्लान को चारों खाने चित कर सकते हैं. इसी वजह से पाकिस्तान पर ट्रंप के सख्त कदम की संभावनाएं ना के बराबर मानी जा रही हैं.