पाकिस्तान का कहना है कि वह नोबेल शांति पुरस्कार के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नाम की सिफारिश करेगा. पाकिस्तान का यह फैसला सबको चौंका वाला है, न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय राजनीति विशेषज्ञ, बल्कि खुद पाकिस्तान के लोग और नेता भी इस ऐलान से हैरान हैं. पाकिस्तान सरकार ने ट्रंप को यह नामांकन भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान उनके 'निर्णायक राजनयिक प्रयासों' के लिए दिया है. पाकिस्तान का दावा है कि ट्रंप ने दोनों देशों के बीच संघर्ष को टालने में अहम भूमिका निभाई.
इस ऐलान के कुछ ही दिन पहले ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर बुलाया था. व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एना केली के मुताबिक मुनीर ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने का वादा किया था. हालांकि भारत पहले ही साफ कर चुका है कि जंगबंदी दोनों देशों के बीच सीधे संवाद से हुई थी, जिसमें अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी.
पाकिस्तान के इस फैसले की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हुई. कई कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और पूर्व राजनयिकों ने इसे शर्मनाक और नीतिगत भूल बताया. पाकिस्तानी पत्रकार जाहिद हुसैन ने कहा कि यह दुखद है कि सरकार ने ऐसे व्यक्ति को नोबेल के लिए नामित किया है जो गाजा में 'जनसंहार जैसी जंग' का समर्थन करता है और ईरान पर हमला करने की योजना बना रहा है.
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की पूर्व प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने भी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि 'चापलूसी को नीति नहीं बनाया जा सकता.' उन्होंने कहा कि यह फैसला पाकिस्तान की जनता की भावनाओं को नहीं दर्शाता. पाकिस्तानी एक्टिविस्ट रिदा राशिद ने कहा कि गाजा में कत्लेआम अब भी जारी है क्योंकि ट्रंप उसे रोकना नहीं चाहते. उन्होंने ट्वीट किया,'फिर भी पाकिस्तान की कठपुतली सरकार उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित कर रही है. कोई आत्म-सम्मान नहीं बचा.'
सीनेटर अल्लामा राजा नासिर ने इसे 'नैतिक तौर पर खोखला और पूरी तरह से भटका हुआ फैसला बताया. उन्होंने कहा कि इस तरह की नामांकन अमन और इंसाफ के उसूलों का मजाक बनाते हैं. अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ डेरेक जे ग्रॉसमैन ने ट्वीट किया,'पाकिस्तान की जो थोड़ी बहुत गरिमा बची थी, अब वो भी खत्म हो गई.'
पाकिस्तान सरकार ने ट्रंप की हालिया कोशिशों को 'वास्तविक शांति-दूत' के तौर पर पेश करते हुए नामित करने का फैसला किया है. दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप पहले भी कई बार कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की पेशकश कर चुके हैं. हालांकि भारत ने साफ किया है कि भारत कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेगा. भारत का हमेशा से मानना है कि कश्मीर उसका अंदरूनी मामला है और पाकिस्तान से कोई भी बातचीत सिर्फ पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र को लेकर होगी. ऐसे में पाकिस्तान का ट्रंप को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित करना शायद अमेरिका से कश्मीर मुद्दे पर समर्थन पाने की एक रणनीति हो सकता है.