Pakistan Space Programme And SUPARCO: भारत साइंस और तकनीक के क्षेत्र में मुसलसल तरक्की कर रहा है. हर साल भारत नई खोजों और मॉडर्न तकनीकों के साथ ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर अपनी मौजूदगी मजबूत कर रहा है. स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में भी भारत ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं. लेकिन आपको ये जानकर बहुत हैरानी होगी कि पाकिस्तान ने भारत से पहले, 1961 में SUPARCO की स्थापना कर स्पेस प्रोग्राम शुरू किया था, जबकि भारत ने 1969 में इसरो की नींव रखी. लेकिन वक्त के साथ भारत ने स्पेस रिसर्च में हर दिन नई-नई ऊंचाइयों को छुआ, वहीं पाकिस्तान का प्रोग्राम पिछड़ गया और धीरे-धीरे गुमनामी में चला गया.
अपनी अंतरिक्ष एजेंसी शुरू करने वाला चौथा एशियाई देश बनने के बाद भी पाकिस्तान का इस क्षेत्र में बहुत पीछे है. दूसरी तरफ, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( ISRO ) ने साइकिल पर रॉकेट कोन ले जाने और बैलगाड़ी पर सैटेलाइट ले जाने से लेकर मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक अपना ऑर्बिटर भेजने और सूर्य का स्टडी करने के लिए एक सैटेलाइट भेजने तक का लंबा सफर तय किया है. चलिए जानते हैं कि भारत से पहले स्पेस प्रोग्राम शुरू करने वाला पाकिस्तान क्यों पिछे रह गया?
इसरो से पहले पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी SUPARCO!
दरअसल, जब अमेरिका-यूएसएसआर स्पेस की दौड़ शुरू हुई, तो वाशिंगटन ने SUPARCO के लिए अपना साउंडिंग रॉकेट भेजा था. इससे पाकिस्तान को ऊपरी एटमॉस्फेयर की कार्यप्रणाली को समझने में मदद मिली और वह जान सका कि वायुमंडल के टॉप पर वायु धाराएं कैसे चलती हैं. प्रो. अब्दुस सलाम पाकिस्तान में स्पेस रिसर्च के पीछे मुख्य मार्गदर्शक ताकत थे, जिन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के सलाहकार के रूप में काम करते हुए SUPARCO की स्थापना की थी. SUPRARCO की स्थापना 16 सितंबर, 1961 को हुई थी और इसने जून 1962 में अपना पहला सैटेलाइट रहबर-1 लॉन्च किया. दिलचस्प बात यह है कि यह सब पाकिस्तान ने इसरो के जन्म से बहुत पहले किया.
नोबेल पुरस्कार विजेता अब्दुस समद ने पाकिस्तान क्यों छोड़ दिया?
रहबर-1 के लॉन्च ने भारत को असहज कर दिया, क्योंकि स्पेस और सैन्य प्रौद्योगिकियों का विकास साथ-साथ होता है. नई दिल्ली इस बात से परेशान थी कि इस्लामाबाद मिसाइलों और अन्य हथियारों के डेवलेपमेंट में उसी तकनीक का इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि, कट्टरपंथी इस्लाम के आगे झुकते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदियों को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया. इससे प्रोफेसर सलाम को भारी अपमान और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा. जिसके चलते उन्होंने पाकिस्तान छोड़ दिया. उनके जाने से इस्लामाबाद को बहुत बड़ा झटका लगा.
SUPARCO यूजलेस हो गया!
दूसरी बात, कश्मीर से ग्रस्त और भारत विरोधी होने के कारण पाकिस्तान ने जल्द ही डिफेंस रिसर्च पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया और स्पेस टेक्नोलॉजी को नजरअंदाज कर दिया. इसकी वजह से SUPARCO ने भी अपना रास्ता खो दिया, क्योंकि पाकिस्तानी जनरलों ने ऑर्गेनाइजेशन में नेतृत्व की भूमिका ले ली और वैज्ञानिकों को किनारे कर दिया गया. अब SUPARCO के पास फख्र करने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है, एक भी सफल लॉन्च भी नहीं है क्योंकि यह खस्ताहाल है.
पाकिस्तान अभी तक स्वदेशी सैटेलाइट डेवलेप्ड नहीं कर पाया
पाकिस्तान स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च और प्रोडक्शन तकनीक डेवलेप्ड नहीं कर सका है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो 2040 में उसके पास अपनी पहली लॉन्च सुविधाएं होंगी, वह भी चीन की मदद से. मामले की जड़ को तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा की गई घोषणा से समझा जा सकता है. उन्होंने कहा था, 'हम (पाकिस्तान) घास खाएंगे, भूखे भी रहेंगे, लेकिन हमें अपना एक (परमाणु बम) मिलेगा. हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है!'
इसरो की उपलब्धियां
पाकिस्तान ने उनकी बातों को सही साबित कर दिया. पाकिस्तान के पास परमाणु बम हैं, उसकी अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लोग खाना के लिए लड़ रहे हैं और आईएमएफ उसे बचाने से इनकार कर रहा है. स्पेस रिसर्च और मंगल मिशन के बारे में भूल जाइए, ये सब इसरो पहले ही हासिल कर चुका है.