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जहां जनता दाने-दाने को तरस रही.. वहीं रमजान में चिकन हो गया 800 पार, मच गया त्राहिमाम

Ramzan News: चिकन के दाम आसमान छू रहे हैं. रमजान नजदीक आते ही कीमतों में उछाल जारी है जिससे आम जनता की जेब पर भारी असर पड़ रहा है. मौजूदा हालात को देखते हुए आने वाले दिनों में चिकन की कीमत शायद हजार पहुंच जाए तो कोई ताजुब नहीं होगा. 

जहां जनता दाने-दाने को तरस रही.. वहीं रमजान में चिकन हो गया 800 पार, मच गया त्राहिमाम
Gaurav Pandey|Updated: Feb 23, 2025, 10:54 AM IST
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Chicken Price Pak: रमजान जैसे पवित्र महीने में जब पाकिस्तानी जनता इबादत और त्योहार की तैयारियों में जुटी है तब महंगाई ने उनका रोजा और मुश्किल कर दिया है. खासतौर पर चिकन की कीमतें बेकाबू हो गई हैं जो तेजी से 800 रुपये प्रति किलो की ओर बढ़ रही हैं. कराची समेत कई शहरों में लोग ऊंचे दामों से परेशान हैं तो दुकानदार भी सरकारी दरों को अव्यावहारिक बताकर अपनी मजबूरी गिना रहे हैं. बढ़ती कीमतों के बीच गरीब और मध्यम वर्ग के लिए अपनी थाली में चिकन रखना अब किसी सपने से कम नहीं रह गया है.

दुकानदार अपनी ही दरें चला रहे

असल में समा टीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाजार में सरकारी रेट कुछ और हैं लेकिन दुकानदार अपनी ही दरें चला रहे हैं. जीवित मुर्गे का आधिकारिक रेट 420 रुपये प्रति किलो तय किया गया है लेकिन यह 500 रुपये किलो तक बेचा जा रहा है. इसी तरह चिकन मीट का आधिकारिक भाव 650 रुपये किलो है. लेकिन दुकानों पर यह 760 रुपये किलो तक मिल रहा है. दुकानदारों का कहना है कि वे खुद 470 रुपये किलो की दर से खरीद रहे हैं तो फिर सस्ता कैसे बेचें?

बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की रसोई से चिकन गायब कर दिया है. लोग मजबूरी में सस्ते विकल्प तलाश रहे हैं. कराची के बाजार में एक महिला ने मायूसी से कहा कि चिकन खरीदने आई थी, लेकिन सिर्फ लीवर लेकर जाना पड़ेगा.

कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा

सिर्फ एक महीने पहले ही चिकन 500-550 रुपये किलो मिल रहा था लेकिन अब इसकी कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है. रमजान के दौरान इसकी मांग और बढ़ेगी जिससे दाम और चढ़ने की आशंका है.

इस महंगाई से निपटने के लिए पाकिस्तानी लोग नए-नए तरीके अपना रहे हैं. कुछ लोग वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों की ओर बढ़ रहे हैं तो कुछ सरकार से दखल देने की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या हुकूमत वाकई इस संकट से निपटने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर जनता को खुद ही कोई नया 'जुगाड़' लगाना पड़ेगा?

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