trendingNow12783873
Hindi News >>पाकिस्तान-चीन
Advertisement

पिछले 90 वर्षों से खामोश पड़ी है ये घड़ी, ठीक ना कराने के पीछे है दर्दनाक कहानी

इतिहास के कुछ पन्ने अपने अंदर बहुत चीख-पुकार समेटे हुए हैं. आज हम आपको इन्हीं पन्नों में से 90 साल पुरानी घटना लेकर आए हैं, जब चंद सेकेंड के भीतर एक पूरा शहर तबाह हो गया था और चीख-पुकार मच गई थी.

पिछले 90 वर्षों से खामोश पड़ी है ये घड़ी, ठीक ना कराने के पीछे है दर्दनाक कहानी
Tahir Kamran|Updated: Jun 03, 2025, 05:41 PM IST
Share

History: 90 साल पहले 1935 की एक रात जो काल बनकर आई और 45 सेकेंड में एक शहर को मलबे में बदल गई. जिस समय लोग गहरी नींद में सो रहे थे, तभी अचानक एक खौफनाक गड़गड़ाहट की आवाज सुनाई दी, जिससे नींद टूट गई और इससे पहले कि कुछ समझ आता, सब कुछ तबाह हो चुका था. रात तीन बजकर 3 मिनट पर जमीन कुछ इस तरह हिली कि महज कुछ ही सेकेंड में एक पूरा शहर तबाह हो गया और तकरीबन 30-50 हजार लोगों ने इस रात अपनी जिंदगी खोई थी.

हम बात कर रहे हैं 1935  के क्वेटा में आने वाले भूकंप की. हालात इतने बुरे थे कि कई दिनों तक तो सिर्फ मलबे में दबी लाशों को निकालने का काम जारी था. कुछ लाशें तो मलबे के नीचे दबे-दबे ही गलने-सड़ने लगी थीं. सड़ी-गली लाशों के कोई बीमारी ना फेल जाए, इसलिए 40 दिनों तक पूरे क्वेटा को सील कर दिया गया था. 

90 वर्षों से खामोश है घड़ी

भूकंप के समय के लेकर भी कई तरह के अलग-अलग दावे हैं, लेकिन मौसम विभाग के क्वेटा दफ्तर में लगी एक घड़ी इस संबंध में मार्गदर्शन प्रदान करती है. अब आप सोच रहे होंगे कि इस घड़ी में ऐसा क्या खास है? तो इसका जवाब है कि यह घड़ी 90 वर्षों से खामोश है, क्योंकि यह उस दर्दनाक घटना की एक अहम गवाह है.  31 मई 1935 की सुबह 3 बजकर 4 मिनट पर भूकंप की वजह से यह घड़ी खराब हो गई थी, जिसके बाद से आज तक यह खामोश है. भूकंप के बाद इस घड़ी को ठीक करने की कोशिश भी नहीं की गई और अब इसको इस खौफनाक रात के गवाह के तौर पर देखा जाता है.

पक्षी और जानवरों में बेचैनी 

यह भूकंप इतना खौफनाक था कि इससे पहले जानवरों और पक्षियों में बहुत बेचैनी देखी गई थी. बीबीसी ने एक रिपोर्ट के हवाले यह दावा किया. भूकंप में बच जाने वाले लोगों ने बाद में मीडिया से बात करते हुए बताया कि जानवर बहुत तेज-तेज बोल रहे थे. कुछ लोगों ने दावा किया कि उनके जानवर इतनी तेज बोल रहे थे कि उन्होंने उनकी बेचैनी को महसूस करते हुए दरवाजे खोल दिए थे.

रोशनी के नाम पर सिर्फ मोटरसाइल की लाइट

चूंकि इस जलजले में सबकुछ तबाह हो गया था, यहां तक कि बिजलीघर भी अपना काम नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि उन्हें बड़ा नुकसान पहुंचा था. जिसकी वजह से पूरा शहर अंधेरे में डूब गया था. ऐसे में राहती ऑपरेशन चलाने में कई दिक्कतें आ रही थीं. वहां पर अगर रोशनी के नाम पर कुछ था तो सिर्फ कार और मोटरसाइकलों की लाइटें थीं. जिसकी मदद से कुछ दूर रोशनी दिख रही थी, अन्यथा पूरा शहर अंधेरे में डूबा हुआ था.

बड़ी तादाद में जानवर भी मरे

एक लंबे अरसे तक लोग संभल नहीं पाए थे. घर, मकान के अलावा वो लोग जो जानवर पालते थे उन्हें भी भारी नुकसान पहुंचा. क्योंकि बड़ी तादाद में जावरों की मौत हुई थी. उस वक्त ज्यादातर लोगों की आजीविका का मुख्य जरिया खेती ही था और बैल इसमें अहम किरदार अदा किया करते थे. रिपोर्ट के मुताबिक बैलों के नुकसान के मुआवजे को लेकर पीड़ितों के जरिए किए गए दावे संदिग्ध और ज्यादा लग रहे थे. शक था कि लोगों के बैल कम मरे हैं लेकिन मुआवजे के लिए वो ज्यादा बैल मरने का दावा कर रहे हैं.

कुरान पर हाथ रखकर खिलाई कमस

ऐसे में प्रशासन की तरफ यह फैसला लिया गया कि लोगों से कुरान पर हाथ रखकर कसम खिलवाई जाएगी और फिर पूछा जाएगा कि उनके कितने बैल मरे हैं, ताकि वो झूठ ना बोल सकें. आखिर में लोगों से कुरान पर हाथ रखकर पूछा गया कि उनके कितने बैल मरे हैं. हैरानी की बात है कि जब लोगों से कुरान पर हाथ रखकर पूछा गया तो मरने वालों बैलों की तादाद में भारी कमी देखी गई. बाद में कम वाले आंकड़े के तहत लोगों की मदद की गई थी.

Read More
{}{}