Will Pakistan Support Iran in War Against Israel: ईरान-इजरायल युद्ध ने पाकिस्तान को एक्सपोज्ड कर दिया है. पूरे पाकिस्तान में इस वक्त चर्चा हो रही है कि मुल्ला मुनीर ने मुस्लिम उम्माह यानी दुनिया के मुस्लिम समुदाय को धोखा दे दिया. ट्रंप के साथ लंच किया, डॉलर लिया और पाकिस्तान की जमीन से ईरान पर हमले की हामी भर दी. हालांकि ना तो मुनीर ने ना ही ट्रंप ने अभी तक ऐलान किया है कि पाकिस्तान के एयरबेस से अमेरिका ईरान पर बम बरसाएगा. इसके बावजूद पाकिस्तान की अवाम कह रही है कि मुल्ला मुनीर ने खामेनेई की पीठ में खंजर घोपने का प्लान तैयार कर लिया है.
'PAK देगा ट्रंप का साथ तो हमारा दुश्मन'
एक लंच पर बिकने वाला मुल्ला मुनीर मुस्लिम उम्मा का परचम बुलंद करता है. डॉलर के लिए पाकिस्तान की जमीन को ईरान के खिलाफ लॉन्चिंग पैड बना देने का प्रस्ताव कबूल करने वाला मुनीर मुस्लिम उम्मा का झंडाबरदार बनता है. जिस ईरान ने पाकिस्तान को मुल्क के तौर पर सबसे पहले मान्यता दी. उस मुस्लिम देश के खिलाफ अमेरिका से गलबाहियां करने वाला मुनीर मुस्लिम उम्मा का चौधरी बनता है. पाकिस्तान का उम्मा असल में मुस्लिम देशों के बीच एकजुटता नहीं बल्कि धार्मिक बयानबाजी में लिपटा अवसरवाद है. ऐसा कहने का आधार पांच प्वाइंट में समझिए क्योंकि पाकिस्तान मुस्लिम उम्मा से बेदखल होने के कगार पर आ पहुंचा है.
इस्लामिक उम्माह से दगा करेगा पाकिस्तान!
नंबर 1
ईरान-इजरायल युद्ध शुरू हुआ तो पाकिस्तान ईरान के पक्ष में खुलकर बोला और इजरायली हमले की निंदा की.
नंबर 2
पाकिस्तान वो देश है जिसने इजरायल को एक संप्रभु देश के तौर पर अब तक मान्यता नहीं दी.
नंबर 3
ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई ने जब पाकिस्तान और तुर्की के साथ मिलकर इस्लामिक सेना बनाने की बात कही तो पाकिस्तान ने चुप्पी साध ली.
नंबर 4
पाकिस्तान ने शिगुफा छोड़ा कि वो ईरान को न्यूक्लियर बम देगा लेकिन बाद में यूटर्न मार गया.
नंबर 5
मुल्ला मुनीर जैसे ही ट्रंप के दरबार में पहुंचा और ट्रंप के साथ भोजन किया. एक लंच में उम्मा वाला ईमान बेच खाया.
PAK में मुल्ला मुनीर की थू-थू
अब पूरे पाकिस्तान में मुल्ला मुनीर की थू-थू हो रही है. जो अवाम मुस्लिम भाईचारे की एकजुटता के नाम पर ईरान के समर्थन में छाती पीट रही थी. वो अब मुनीर के इस करतूत को बर्दाश्त नहीं कर पा रही कि पाकिस्तान युद्ध में यहदियों के साथ ईरान के खिलाफ खड़ा है.
असल में पाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए उम्मा क्या है पहले इसकी डिटेल समझ लीजिए..आगे दिखाएंगे कि मुस्लिम देशों की बैठक में ईरान-इजरायल युद्ध को लेकर क्या प्रस्ताव पास हुआ?
पाकिस्तानी हुक्मरान उम्मा का इस्तेमाल एक सुविधाजनक हथियार के तौर पर करते हैं. अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए. मुस्लिम देशों की सद्भावना का लाभ उठाने के लिए, जरूरत पड़ने पर कूटनीतिक सहानुभूति हासिल करने के लिए, सीमा पार निर्दोष लोगों की जिंदगियों को बर्बाद करने वाले कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए.
करीब 1.9 अरब लोगों का मुस्लिम समुदाय
इस्लाम की साझी आस्था का हवाला देकर पाकिस्तान उम्मा, उम्मा चिल्लाता है...लेकिन जैसे ही उम्मा के लिए कुछ करने का वक्त आता है पाकिस्तान पलटी मार जाता है. ताजा उदाहरण है ईरान-इजरायल युद्ध.
इस्लामिक उम्मा दुनिया भर में करीब 1.9 अरब लोगों का समुदाय है..जो मुस्लिम समुदाय के नाम पर लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता है. 2025 में ईरान युद्ध के समय बिखरा उम्मा पहले संगठित होकर दुनिया के सामने आ चुका है. इसका उदाहरण भी देख लीजिए.
कब-कब टकराए इजरायल और मुस्लिम वर्ल्ड
पहला
1948 का प्रथम अरब-इजरायल युद्ध
मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक ने एकजुट होकर इजरायल के खिलाफ जंग लड़ी. फिर भी ये सारे देश हार गए. ये मुस्लिम एकजुटता का पहला सबसे बड़ा प्रदर्शन था.
दूसरा उदाहरण
1967
छह दिवसीय युद्ध में इस्लामी देशों ने संयुक्त मोर्चा बनाकर इजरायल को हराने की कोशिश की हालांकि सफलता नहीं मिली.
तीसरा उदाहरण
1969 में अल-अक्सा मस्जिद में आगजनी के बाद सऊदी अरब, मिस्र और दूसरे इस्लामी देशों ने इस्लामिक एकता के संबंध में बड़ा फैसला
किया और OIC जैसा संगठन बनाया.
चौथा उदाहरण
1973
योम किप्पुर युद्ध के समय दिखा, जब मिस्र और सीरिया ने इजरायल पर हमला किया. उसमें सऊदी अरब ने तेल प्रतिबंध लगाकर समर्थन दिया.
पांचवां उदाहरण
1979
ईरानी क्रांति को इस्लामी देशों ने इस्लामिक उम्मा की जीत माना. अब बात उम्मा का चौधरी बनने की चाहत वाले पाकिस्तान की. जिसे लेकर पाकिस्तान की अवाम उबल रही है.
आज होगी OIC की बैठक
इस्लामी एकजुटता के नाम पर इस्तांबुल में 22 देशों के संगठन अरब लीग की बैठक हुई है. अरब लीग ने संयुक्त राष्ट्र से ईरान-इजरायल युद्ध में हस्तक्षेप करने की मांग की है और OIC की 22 जून को बैठक होने वाली है. इस बैठक में पाकिस्तान भी शामिल होगा और ये देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम देशों का सबसे बड़ा संगठन OIC ईरान-इजरायल युद्ध पर क्या रुख अख्तियार करता है.
फिलहाल पाकिस्तान जो उम्मा-उम्मा करते-करते ईरान के खिलाफ अमेरिका की गोद में जा बैठा है. सवाल है कि इस तथ्य के बावजूद कि ईरान का साथ नहीं देने पर पाकिस्तान की मुस्लिम देशों के बीच ही फजीहत होगी मुनीर ट्रंप के साथ क्यों हैं. इसे समझना बहुत जरूरी है और ये बेवजह मानकर खारिज नहीं किया जा सकता.
वजह नंबर 1
पाकिस्तान मुस्लिम देशों का नेतृत्व करना चाहता है.
वजह नंबर 2
ईरान अगर परमाणु ताकत बनता है तो पाकिस्तान का मुस्लिम देशों के बीच शक्तिशाली होने का गर्व टूटेगा. पाकिस्तान ये कभी नहीं चाहेगा.
वजह नंबर 3
पाकिस्तान सऊदी अरब, तुर्की और कतर जैसे देशों का रुख देख रहा है. जो ईरान का खुलकर समर्थन नहीं कर रहे.
वजह नंबर 4
पाकिस्तान आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. अमेरिका के खिलाफ जाकर और मुसीबत मोल लेने की पाकिस्तान के पास ताकत नहीं बची है.
ये बात मुनीर और शहबाज शरीफ समझ रहे हैं. पाकिस्तान की अवाम इसे क्या समझे. इस्लाम के नाम पर जीने-मरने का जिस मुल्क में बीज बोया गया हो. वहां का हुक्मरान अगर किसी इस्लामी देश पर हमला होता है तो किनारा कर ले तो ये अवाम को कैसे हजम हो सकता है.
शिया बहुल देश है ईरान
ईरान शिया मुस्लिम बहुल देश है और पाकिस्तान सुन्नी मुस्लिम बहुल देश है. हालांकि पाकिस्तान में भी करीब दो करोड़ शिया समुदाय के लोग रहते हैं...लेकिन इनकी आवाज पाकिस्तान में सुनाई नहीं देती. ऐसे में मुनीर के पास मौका है कि वो सुन्नी लोगों को भड़काएं कि ईरान के शिया को बचाकर जो पाकिस्तान को हासिल नहीं होगा वो अमेरिका का समर्थन कर पाकिस्तान कमाई कर सकता है.
अमेरिका और सऊदी अरब से मिलने वाली आर्थिक सहायता और IMF कर्जों पर पाकिस्तान की निर्भरता भी उसे ट्रंप की हां में हां मिलाने के लिए मजबूर करती है. इन सबसे बड़ी बात ये कि पाकिस्तान और अवसरवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. जिधर फायदा दिखे उधर पाकिस्तान खड़ा दिखता है. ऐसे में उम्मा का विचार एक कपोल कल्पना रह जाती है. पाकिस्तान सुविधा के मुताबिक जिसे अपनाता और छोड़ता है.