Benjamin Netanyahu Biography: इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को खतरनाक फैसले लेने वाला लिकुड पार्टी का नेता माना जाता है. ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम रोकने के लिए उस पर हमला करने की बात हो या अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के खिलाफ गाजा में पिछले 15 महीने से जारी आक्रामक अभियान, उन्हें विवादों और बहादुरी के लिए जाना जाता है.
नेतन्याहू इजरायल के पहले ऐसे पीएम हैं,जिनका जन्म देश की स्थापना के बाद हुआ. नेतन्याहू का जन्म 21 अक्टूबर 1949 को तेल अवीवमें हुआ था. वो 1967 में इजरायली सेना में शामिल हुए. वो देश के 9वें पीएम और सबसे लंबे समय तक ये पद संभालने वाले शख्स हैं. नेतन्याहू लिकुड पार्टी के अध्यक्ष भी हैं.
इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू तीन शादियां कर चुके हैं. उनकी पहली पत्नी मिरियम वेजमन से उनका रिश्ता 1972 से 1978 तक चला. उनकी एक बेटी, नोआ की शादी हो गई. उनकी दूसरी फ्लेर कैट्स से उनका रिश्ता 1981 से 1984 तक रहा और दोनों का तलाक हो गया. नेतन्याहू की तीसरी पत्नी सारा एक मनोवैज्ञानिक हैं. नेतन्याहू के दो बच्चे येयर और अवनेर हैं.
नेतन्याहू के पिता बेंजियोन इतिहासकार थे और वो भी कट्टर राष्ट्रवादी थे. वो फलस्तीन स्थापना के कतई पक्ष में नहीं थे और न ही अरब देशों से बहुत ज्यादा नरमी दिखाने के पक्ष में थे. इसका सीधा असर नेतन्याहू पर भी पड़ा. वो ग्रेटर इजरायल के पक्षधर थे. उनकी मां फलस्तीन की रहने वाली थीं.
जन्म के कुछ वक्त बाद उनका परिवार अमेरिका जाकर बस गया. लेकिन 1967 के युद्ध में जब इजरायल पर छह देशों ने एक साथ हमला बोला था तब वो 18 साल की उम्र में देश लौटे और सेना में शामिल हो गए. उन्हें इजरायल की कमांडो फोर्स की एलीट यूनिट सायरेट मैटकल की कमान सौंपी गईं. यही यूनिट आज गाजा में हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजरायली नागरिकों की रिहाई का ऑपरेशन चला रही थी.
1967 में मिस्र, जॉर्डन और सीरिया जैसे देशों के खिलाफ उस जीत से वेस्ट बैंक, पूर्वी यरूशलम और गाजा को इजरायल में लाने की कोशिशें शुरू हुईं. सिनाई प्रायद्वीप पर इजरायल ने कब्जा जमा लिया. सीरिया और मिस्र ने जब गोलान पहाड़ी और सिनाई पर दोबारा कब्जा करने के लिए 1972 में दोबारा हमला किया तो बेंजामिन पढ़ाई बीच में छोड़ सेना के लिए युद्ध ( Yom Kippur War in Israel) लड़ने लौटे.
सेना में पांच साल के बाद 1976 में वो नौकरी छोड़कर अमेरिका लौटे और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पढ़ाई की. उन्होंने आर्किटेक और बिजनेस मैनेजमेंट में डिग्री हासिल की. नेतन्याहू (Ben Nitai) ने 4 साल की बजाय ढाई साल में डिग्री पूरी की और 1973 में फिर युद्ध के लिए लौटे.1976 में नेतन्याहू ने कुछ वक्त बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप में आर्थिक सलाहकार का काम किया.
बेंजामिन नेतन्याहू के भाई भी उसे कमांडो फोर्स (The Sayeret Matka) का हिस्सा थे, जो हाईजैक या यहूदी नागरिकों को बंधक बनाए जैसे मामले के वक्त ऑपरेशन संभालती है. जून 1976 में जब एयर फ्रांस की फ्लाइट तेल अवीव से पेरिस जा रही थी तो उसे आतंकियों ने हाईजैक कर लिया. विमान हाईजैक कर युगांडा ले जाया गया, जहां एयरपोर्ट पर इजरायली फोर्स ने ऑपरेशन एंटेबे के दौरान प्लेन से सौ से ज्यादा बंधकों को बचाया गया, लेकिन जोनाथन (Yoni) एकमात्र ऐसे अफसर थे, जिनकी मौत हो गई. उन्हें इजरायल के हीरो जैसा सम्मान मिला.
नेतन्याहू 1978 में फिर इजरायल लौटे और भाई जोनाथन के नाम पर आतंकवाद रोधी संस्थान चलाने लगे. नेतन्याहू ने वर्ष 1994 से 1998 तक संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के स्थायी प्रतिनिधि के तौर पर जोरदार तरीके से अपने देश की बात रखी. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले नेतन्याहू को इससे बहुत लोकप्रिय हुए.
इजरायल लौटने पर नेतन्याहू 1980 में एक फर्नीचर कंपनी रिम इंडस्ट्रीज में काम करने लगे. लेकिन दो साल बाद उनकी किस्मत बदली. नेतन्याहू के पारिवारिक मित्र और लिकुड नेता मोशे आरेन्स को अमेरिका में इजरायल का राजदूत नियुक्त किया गया. उन्हें एक डिप्टी की जरूरत थी और 1982 में नेतन्याहू उनके सहायक बन गए. लेबनान में तब इजरायली सेना समर्थित ईसाइयों के सशस्त्र गुट के हमले में 3500 से ज्यादा नागरिकों के मारे जाने को लेकर इजरायल निशाने पर था. लेकिन नेतन्याहू ने टीवी शो से लेकर यूएन के मंच पर दमदार तरीके से बात रखी. लिहाजा 1984 में वो 35 साल की उम्र में यूएन में इजरायली राजदूत बने.
नेतन्याहू की दोस्ती डोनाल्ड ट्रंप के पिता फ्रेड ट्रंप से भी थी, जो तब 80 साल के एक बुजुर्ग कारोबारी थे.यहीं से उनकी दोस्ती डोनाल्ड ट्रंप से हुई औऱ दोनों अपने देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे.ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में वो मध्य पूर्व में वो अमेरिका के लिए सुनहरे मौके की तरह हैं.
नेतन्याहू ने अपने राजनीतिक करियर का आगाज 1991 में किया. उन्होंने उग्र दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी के नेता के तौर पर नेसेट (इजरायली संसद) का चुनाव लड़ा और जीते. वो उप विदेश मंत्री बने. 1991 में जब जॉर्ज बुश सरकार के दबाव में इजरायल को फलस्तीन के साथ बातचीत की और ओस्लो समझौता 1993 और 1995 हुआ. लेकिन इसकी वजह से लिकुड नेता और यित्जाक राबिन को 1993 में हार का सामना करना पड़ा और लिकुड पार्टी की कमान उनके हाथों में आ गई. लेबर पार्टी की शिमोन पेरेज सरकार आई और नेतन्याहू नेता विपक्ष बने.
फलस्तीन से शांति को लेकर 1993 में हुए ओस्लो अकॉर्ड का नेतन्याहू ने तीखा विरोध किया. वो तत्कालीन इजरायली पीएम यित्जाक राबिन की नकली अर्थी लेकर जुलूस भी निकाला. दो साल बाद 1995 में राबिन की हत्या कर दी गई तो नेतन्याहू कठघरे में आ गए. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे.
1995 के चुनाव के वक्त शिमोन पेरेज की सरकार की वापसी तय लग रही थी, तभी इजरायल में दो बड़े आत्मघाती हमले हुए, जिसमें दर्जनों यहूदी नागरिकों की मौत हो गई. लोगों का गुस्सा भड़क उठा और चुनाव में महज एक फीसदी वोट से नेतन्याहू जीत गए और 1996 में पहली बार वो सत्ता में आए. फिर से वो पांच बार इजरायल के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और फलस्तीन के खिलाफ इजरायल को मजबूत कर रहे हैं.
नेतन्याहू की छवि को सबसे बड़ा झटका 7 अक्टूबर 2023 का आया, जब हमास के आत्मघाती हमलावरों ने जमीन-समुद्र और हवाई रास्ते से इजरायल पर हमले किए. इसमें 1100 से ज्यादा इजरायली नागरिकों की मौत हो गई. ये इजरायल को हुए जानमाल का सबसे बड़ा नुकसान था. ये खुफिया एजेंसियों की विफलता भी थी, जिसे इन हमलों की भनक नहीं लग पाई. तब से 15 महीने से इजरायल गाजा में हमास के खिलाफ अभियान चला रहा है, जिसमें करीब 50 हजार लोग मारे जा चुके हैं
ईरान को परमाणु हथियार न बनाने देने की कसम उठाने वाले नेतन्याहू ने 12 जून को उसके परमाणु संयंत्रों पर हमला बोल दिया. ईरानी सेना प्रमुख समेत 12 सैन्य कमांडरों को मार डाला. नेतन्याहू के लिए ये करो या मरो का वक्त है. अगर ईरान को रोक पाने में इजरायल नाकाम रहा तो उन्हें बुरा सियासी अंजाम भुगतना पड़ेगा.