PM Modi on Katchatheevu: लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) के बीच कच्चातीवु द्वीप को लेकर घमासान तेज हो गया है. इस द्वीप को लेकर RTI से हुए खुलासे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला किया है. प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने कहा है कि नए तथ्यों से ये पता चलता है कि कैसे कांग्रेस (Congress) ने बेरहमी से कच्चातीवु द्वीप को छोड़ दिया. इससे हर भारतीय नाराज है. और लोगों के मन में ये बात बैठ गई है कि कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते. पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पोस्ट में आगे लिखा, 'पिछले 75 वर्षों से कांग्रेस के काम करने का यही एक तरीका है - कांग्रेस भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करती है.'
आरटीआई से कच्चातीवु को लेकर क्या पता चला?
1974 में कच्चातीवु को श्रीलंका को सौंपने के इंदिरा गांधी सरकार के फैसले ने तमिलनाडु को ऐसा दर्द दिया था, जिसकी टीस तमिलनाडु के मछुआरों को आज भी सालती है. पीएम मोदी (PM Modi) ने जिन दस्तावेजों का हवाला देते हुए कांग्रेस की तत्कालीन सरकार के फैसले की आलोचना की है, उन प्रपत्रों और संसद के रिकॉर्ड से पता चलता है कि ढुलमुल रवैये के चलते भारत इस पर नियंत्रण की लड़ाई हार गया.
बीजेपी ने सवाय ये भी उठाया कि कैसे पाक जलडमरूमध्य में एक छोटे से देश ने इसे हथियाने के लिए दृढ़ संकल्प लिया और तत्कालीन सरकार ने इसे उसके पास जाने दिया. दरअसल भारत की तटीय सीमा से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित इस भूमि का विशेष महत्व है. तमिलनाडु की जनता कई दशकों से इस द्वीप को भारत के नियंत्रण में लेने की मांग कर रही है लेकिन इस मांग का दिल्ली की सत्ता पर लंबे समय तक काबिज रही कांग्रेस ने विरोध किया था.
श्रीलंका, जो उस समय सीलोन था, ने आजादी के ठीक बाद इस जगह पर अपना दावा जताते हुए कहा कि भारतीय नौसेना (तब रॉयल इंडियन नेवी) उसकी इजाजत के बिना कच्चातीवु द्वीप पर अभ्यास नहीं कर सकती. अक्टूबर 1955 में, सीलोन वायु सेना ने द्वीप पर अपनी मिलिट्री ड्रिल की थी.
बेकार मान कर यूं ही जाने दिया था कच्चातीवु
आरटीआई से मिले दस्तावेजों के मुताबिक 10 मई, 1961 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने ये मामला उठा तब उन्होंने इस मुद्दे को महत्वहीन बताते हुए खारिज कर दिया था. उस दौर के एक नोट के मुताबिक नेहरू ने कहा था- ' मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और इस पर अपना दावा छोड़ने में मुझे कोई झिझक नहीं होगी. मुझे इसका अनिश्चितकाल तक लंबित रहना और संसद में दोबारा उठाया जाना पसंद नहीं है.'
टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक जलाहर लाल नेहरू के बारे में मिली ये जानकारी तत्कालीन कॉमनवेल्थ सेक्रेट्री वाई डी गुंडेविया द्वारा तैयार किए गए एक नोट का हिस्सा है और जिसे विदेश मंत्रालय (MEA) ने 1968 में संसद की अनौपचारिक सलाहकार समिति के साथ पृष्ठभूमि के रूप में साझा किया था.
पचास साल पुरानी कहानी
इसी नोट के हवाले से बीजेपी अब तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर हमलावर है. पीएम मोदी ने कहा कि वो दस्तावेज दिखाता है कि कैसे 1974 भारत की सरकार का रुख इस द्वीप के लिए कैसा था. कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को देने के समझौते का तमिलनाडु में काफी विरोध हुआ. बीजेपी इस बार के लोकसभा चुनावों में ये मुद्दा जोर शोर से उठा रही है. गौरतलब है कि 1991 में तमिलनाडु एसेंबली ने केंद्र सरकार के उस फैसले के खिलाफ एक बिल पारित किया था. आगे 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता की सरकार यह मुद्दा लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गई थी. तब की AIADMK सरकार ने कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को देने के लिए हुई संधि को अवैध घोषित करने की मांग की थी.
गौरतलब है कि कच्चातीवु आईलैंड का इस्तेमाल पारंपरिक रूप से तमिलनाडु और श्रीलंका के मछुआरे करते थे. 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक समझौते पर साइन करके कच्चातीवु को श्रीलंका को दे दिया था.