Recep Tayyip Erdogan support Russia-Ukraine peace talks: तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन खुद को मुस्लिम देशों का 'खलीफा' बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. कभी वह भातर और पाकिस्तान के बीच विवादों में बयान देते हैं. कभी पाकिस्तान की हर संभव मदद की बात कहते हैं तो कभी गाजा-हमास पर बोलते हैं. यानी मुस्लिम समुदायों से जुड़े विवादास्पद मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी का साथ मिले न मिले, तुर्की हर मामले में अपनी हाजिरी लगाने आ ही जाता है. हद तो तब हो गई जब तुर्की के राष्ट्रपति यूक्रेन-रूस मामले में भी अपना बयान दे रहे हैं. मदद की भी बात कह रहे हें. आइए समझते हैं पूरा मामला.
यूक्रेन के राष्ट्रपति से बातचीत
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की से फोन पर बातचीत किया है. राष्ट्रपति एर्दोगन के कार्यालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच हुई इस बातचीत में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता को सुविधाजनक बनाने के लिए तुर्की की प्रतिबद्धता दोहराई गई. एर्दोगन ने इस बात पर जोर दिया है कि शांति का माहौल बनाने के लिए युद्धविराम आवश्यक है. दोनों पक्षों को संघर्ष को समाप्त करने के उद्देश्य से कूटनीतिक वार्ता के लिए मौजूद अवसर का लाभ उठाना चाहिए.
यूक्रेन-रूस में सुलह कराने की कोशिश
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक एर्दोगन ने शांति वार्ता के अवसर पर तुर्की में रूस और यूक्रेन प्रतिनिधिमंडलों की मेजबानी करने की इच्छा जाहिर की. तैयप एर्दोगन की जेलेंस्की के साथ यह बातचीत रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई बातचीत के ठीक एक दिन बाद हुई है. इस दौरान एर्दोगन ने कहा कि तुर्की इस्तांबुल में फिर से रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता की मेजबानी करने के लिए तैयार है.
तुर्की खुद को शांतिदूत बता रहा
सोमवार की कैबिनेट की बैठक के बाद राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने कहा कि तुर्की वैश्विक शांति और कूटनीति में एक महत्वपूर्ण किरदार बन गया है. एर्दोगन ने मध्यस्थता, मानवीय सहायता और संघर्ष समाधान की कोशिश में अपनी भूमिका पर जोर दिया. यानी जो काम अमेरिका नहीं कर पाया वह काम अब तुर्की करने की कोशिश कर रहा है कितना सफल होगा यह समय बताएगा लेकिन अगर पीछे तोड़ा इतिहास देखें तो अब तक जितने भी देश को तुर्की ने मदद की सब बर्बाद हो गए हैं. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया है.
मुस्लिम देशों का खलीफा बनने की चाहत 2019 में पैदा हुई
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एर्दोगन जिनका भले अपने देश में विरोध हो लेकिन वैश्विक इस्लामी नेतृत्व की दौड़ में वह और अपने देश को सबसे आगे मानते हैं. वह मुस्लिम ब्रदरहुड, हमास और अन्य इस्लामी समूहों का खुलकर समर्थन करते हैं. तभी तो 2019 में कुआलालंपुर में पाकिस्तान, मलेशिया, ईरान और कतर के साथ इस्लामी शिखर सम्मेलन आयोजित कर उन्होंने सऊदी अरब की अगुवाई वाली इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) को चुनौती दी थी. एर्दोगन की यह छवि उन्हें कई मुस्लिम देशों में लोकप्रिय बनाती है, लेकिन उनकी नीतियां विवादों से घिरी रहती हैं. जिसके वजह से हर किसी को डर रहता है.
जिन देशों से दोस्ती वह बर्बाद?
एर्दोगन की दोस्ती जिन देशों से होती है, वे आर्थिक, राजनीतिक या सामाजिक संकट में फंस जाते हैं. उदाहरण के लिए:
पाकिस्तान:
एर्दोगन ने पाकिस्तान के साथ गहरे रिश्ते बनाए हैं. उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का समर्थन किया और दोनों देशों ने सैन्य और प्रचार सहयोग बढ़ाया. तभी तो तुर्की ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के तरफ से खुलकर बैटिंग भी किया है. भले इससे भारत का कोई नुकसान न हुआ हो. तुर्की के ड्रोन भारत के खेतों में धूल फांक रहे थे.
लीबिया:
एर्दोगन ने लीबिया में मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ी सरकार का समर्थन किया और सैन्य सहायता भेजी. इससे लीबिया में गृहयुद्ध और अस्थिरता बढ़ी, जिसे कुछ लोग तुर्की की नीतियों से जोड़ते हैं. जिसके बाद आज तक लीबिया फंसा हुआ है.
कतर:
2017 में जब सऊदी अरब और यूएई ने कतर का बहिष्कार किया, तो एर्दोगन ने कतर का साथ दिया. कतर ने इस दोस्ती से भू-राजनीतिक लाभ उठाया, लेकिन क्षेत्रीय तनाव बढ़ा, जिसका असर अन्य देशों पर भी पड़ा.
सीरिया:
दिसंबर 2024 में बशर असद की सत्ता गिरने के बाद एर्दोगन ने सीरिया में हयात तहरीर अल-शाम (HTS) समूह का समर्थन किया. वह सीरिया को एकजुट रखने की बात करते हैं, लेकिन उनकी सैन्य मौजूदगी और इस्लामी समूहों का समर्थन अस्थिरता बढ़ा सकता है.अगर सीरिया में गृहयुद्ध फिर से भड़का, तो इसे एर्दोगन की नीतियों से जोड़ा जा सकता है.