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'धर्म अफीम जैसा काम करता है' ऐसा कहने वाले कार्ल मार्क्स कौन थे? सुप्रीम कोर्ट में भी हुआ जिक्र

Karl Marx Philosophy: कार्ल मार्क्स नाम तो सुना होगा आपने. 30-40 साल के हैं तो उनके बारे में थोड़ा ज्यादा जानते होंगे. 200 साल पुरानी उनकी फिलॉसफी आज भी चर्चा में रहती है. लेफ्ट पार्टियां मार्क्स का नाम दोहराती रहती हैं लेकिन 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जज ने उनके धर्म पर दिए बयान को दोहराया तो समझना जरूरी है कि कार्ल मार्क्स कौन थे और उन्होंने दुनिया को कौन सा विचार दिया?

'धर्म अफीम जैसा काम करता है' ऐसा कहने वाले कार्ल मार्क्स कौन थे? सुप्रीम कोर्ट में भी हुआ जिक्र
Anurag Mishra|Updated: Jul 23, 2025, 06:52 PM IST
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Karl Marx Theory: उन्हें दुनिया समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिक विश्लेषक और दार्शनिक कहती है. नाम - कार्ल मार्क्स. जन्म 1818 में हुआ था. Gen Z पीढ़ी के लोगों ने शायद ये नाम कम सुना हो. इस समय इनके नाम की चर्चा की एक वजह है. सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने कांवड़ यात्रा रूट से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कार्ल मार्क्स की एक मशहूर लाइन दोहराई. मार्क्स ने कहा था, 'धर्म अफीम है.' कार्ल मार्क्स ने क्यों ऐसा कहा था? कौन था वो जिसे आज 200 साल बाद भी याद किया जा रहा है? उसकी विचारधारा क्या थी जिसे मार्क्सवाद कहा जाता है. पूंजीवाद के सपोर्टर इसका विरोध क्यों करते हैं? शुरू से शुरू करते हैं. 

20वीं सदी में मार्क्सवाद के चलते दुनिया में दो गुट बन गए थे. कई देश पूरी तरह से मार्क्सवाद के हिसाब से चले तो पश्चिमी यूरोप और अमेरिका इसे खतरनाक आइडिया मानने लगे. ये सब क्यों और कैसे हुआ? इसे समझने के लिए 19वीं सदी की शुरुआत में चलना होगा. यूरोप में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत होती है. इससे दुनिया का सिस्टम ही बदल गया. अब तक राजाओं और सामंतों के पास पैसा, सत्ता और सबसे महत्वपूर्ण जमीन हुआ करती थी. फसल पर भी सारा हक उन्हीं का हुआ करता था. उस सारी अर्थव्यवस्था का केंद्र गांव हुआ करता था. 

दुनिया में मशीनें आने से क्या बदला?

अब Industrial Revolution होने से मशीनों का बोलबाला हुआ और वे मशीनें कई लोगों के बराबर काम करने लगीं. इंसानों को अब मशीनों की देखरेख ही करनी थी. फैक्ट्रियां लगने से गांवों से पलायन होने लगा. गांव के लोग श्रमिक के तौर पर फैक्ट्रियों में काम करने शहर गए. सबसे ज्यादा फायदा उसे हुआ जो मशीनों यानी इंडस्ट्री का मालिक था. इन्हें आप कैपिटलिस्ट यानी पूंजीवादी वर्ग कह सकते हैं. हालांकि फायदा कामगारों को भी हुआ था. उन्हें सैलरी मिली, उनका जीवन पहले से बेहतर हुआ लेकिन इस बदलाव का अलग-अलग तरीके से विश्लेषण किया जाने लगा. 

पढ़ें: जज साहब बोले, मार्क्स ने सही कहा है धर्म अफीम है

कम्युनिस्ट सोसाइटी कैसे बदली?

अब सीन में आते हैं कार्ल मार्क्स. उन्होंने इस बदलाव को गलत बताया. मार्क्सवाद के तहत कहा गया कि शुरुआत में इंसानों की सारी कोशिश पेट भरने को लेकर थी. शिकार हो जाए और लोग पेट भर लें. मार्क्स ने कहा कि उस समय कम्युनिस्ट सोसाइटी थी जहां सभी लोग बराबर थे. समय के साथ खेती शुरू हुई. औजार बने और उत्पादन का तरीका बदला. पेट भरने के साथ अतिरिक्त अनाज पैदा होने लगा. इसने इंसान को बेहतर संसाधनों पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया. छोटे कबीले बनने लगे. 

कबीले के बाद आगे साम्राज्य बने

मार्क्स के मुताबिक इस तरह के बदलाव से समाज में खाई पैदा होने लगी. किसी के पास सब कुछ था और कुछ लोगों के पास बहुत कम. फिर से बदलाव हुआ. बड़े साम्राज्य बने. नहरें और दूसरे विकास के काम हुए. बड़ा फायदा जमीनों के मालिकों को हुआ. बाकियों को खाना तो मिला लेकिन आर्थिक स्थिति नहीं सुधरी. मार्क्स कहते हैं कि यही चीज आगे भी जारी रही जिससे संसाधन कुछ लोगों तक ही सीमित होकर रह गए. बाकी नौकर की स्थिति में रहे. औद्योगीकरण के दौर में बुर्जुआ फैक्ट्री मालिक थे और सर्वहारा कामगार. 

'मालिक और कामगार में संघर्ष निश्चित'

मार्क्स के अनुसार इन दोनों ही वर्गों में संघर्ष अगला चरण होता है. उन्होंने कहा कि इन दोनों क्लास में संघर्ष निश्चित है क्योंकि मालिक कम से कम सैलरी पर ज्यादा से ज्यादा काम चाहता है और कामगारों को अच्छा अप्रैजल चाहिए जो होता नहीं. मार्क्स ने कहा है कि इस संघर्ष में अक्सर कामगार ही हारता है और उसी का शोषण होता है. 

इस संघर्ष में सर्वहारा यानी कामगार ग्रुप एलियनेशन से गुजरता है. मार्क्स की मानें तो पहले व्यक्ति कोई काम खुद कर रहा था तो उसका प्रॉफिट उसी का था और मालिक भी वही था लेकिन इंडस्ट्री आने से कामगारों में काम बंट गया और वे अपना प्रोडक्ट बनाने के बाद भी उसके मालिक नहीं हुए. अपने बनाए प्रोडक्ट को ही न खरीद पाने की स्थिति के चलते उनका इस काम से लगाव खत्म होता गया. यहीं पर मार्क्स का वो धार्मिक एंगल आया. 

धर्म पर मार्क्स ने क्या कहा है?

मार्क्स ने कहा है कि जब कोई अकेला पड़ता है या महसूस करता है तो धर्म की शरण में जाता है और धर्म उसके लिए अफीम जैसा काम करता है. धर्म उसकी समस्याओं को नियति के तौर पर पेश करता है. ऐसा इसलिए क्योंकि धर्म सत्ता यानी ताकत वाले लोगों की रक्षा के लिए बनाया गया है. मार्क्स ने आगे भविष्यवाणी यह भी की है कि एक दिन संघर्ष के चलते समाज फिर से कम्युनिस्ट हो जाएगा.

FAQ: कार्ल मार्क्स कौन थे और क्या कहा है?

जवाब: मार्क्स जर्मन दार्शनिक और अर्थशास्त्री थे. उन्होंने 1843 में दार्शनिक आलोचना पर एक पुस्तक के परिचय में टिप्पणी के रूप में लिखा था, 'धर्म जनता की अफीम है.' 

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