आदित्य पूजन/ Bangladesh Demolished Satyajit Ray House: सत्यजीत रे का पुश्तैनी घर आखिरकार तोड़ दिया गया. भारत सरकार की मदद की पेशकश के बावजूद बुधवार सुबह बांग्लादेश सरकार ने घर को तोड़ दिया. मैमनसिंह में स्थित यह घर सत्यजीत रे के दादा उपेंद्रकिशोर राय चौधरी ने बनाया था. एक दिन पहले ही सरकारी अधिकारियों ने घर को गिराए जाने की योजना का खुलासा किया था. इसके बाद भारत ने बांग्लादेश सरकार से इस पर दोबारा विचार की अपील की थी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी एक्स पर पोस्ट के जरिए इस फैसले पर ऐतराज जताया था. भारत ने घर को संरक्षित करने में मदद की पेशकश की थी, लेकिन बांग्लादेशी सरकार अपना फैसला बदलने को राजी नहीं हुई. इस घर में सत्यजीत रे कभी गए तक नहीं, फिर भी इसको तोड़े जाने पर भारत में आक्रोश है तो इसकी दो बड़ी वजह हैं. पहला बंगाली साहित्य में उपेंद्रकिशोर राय चौधरी का योगदान और दूसरा बांग्लादेश में स्थित भारत से संबंधित सांस्कृतिक विरासतों की तबाही का सिलसिला.
उपेंद्रकिशोर राय चौधरी ने करीब सौ साल पहले ये घर बनवाया था. मैमनसिंह के हरिकिशोर राय चौधरी रोड पर 36 एकड़ में फैले इस घर में रिहायशी कमरों के अलावा एक पूजा घर, रसोई, गार्डन हाउस, खेल के मैदान के अलावा जानवर और इंसानों के लिए अलग-अलग दो तालाब भी थे. सत्यजीत रे के पिता भी कभी इस घर में नहीं रहे. बांग्लादेश के बनने के बाद ये घर सरकारी संपत्ति बन गया. 1989 में इसमें शिशु अकादमी की शुरुआत हुई. 2007 के आते-आते घर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गया और अकादमी का संचालन बंद करना पड़ा. इसके बाद यह घर वीरान हो गया. इसकी दीवारें ढह गईं, दरवाजे और खिड़कियां चोरी हो गईं और बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ हुई. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अब इस घर की मरम्मत भी संभव भी नहीं थी. इसलिए इसे तोड़कर नई इमारत बनाई जाएगी और शिशु अकादमी का फिर से संचालन होगा. भारत सरकार ने पेशकश की थी कि इस घर को म्यूजियम में तब्दील करने में वह बांग्लादेश की मदद कर सकती है. भारत सरकार ने इसे दोनों देशों की साझा सांस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव दिया था, जिसे बांग्लादेश ने नहीं माना.
इस घर को लेकर भारत के भावनात्मक लगाव का सबसे बड़ा कारण बंगाल साहित्य और कला से जुड़ी तीन पीढ़ी उपेंद्र किशोर, उनके बेटे मशहूर कवि सुकुमार और सत्यजित रे से है. उपेंद्रकिशोर राय चौधरी को बंगाली भाषा में बाल साहित्य का जनक माना जाता है. उन्होंने सरल भाषा में विज्ञान को बच्चों तक पहुंचाने के लिए उल्लेखनीय काम किए. उन्हें बंगाली पुनर्जागरण का एक प्रमुख चेहरा माना जाता है. बंगाल की साहित्यिक विरासत का वे अहम हिस्सा हैं. उपेंद्रकिशोर की इस विरासत को पहले उनके बेटे सुकुमार रे और फिर पोते सत्यजीत रे ने आगे बढ़ाया. सुकुमार रे ने साहित्य को अपना माध्यम बनाया तो सत्यजीत रे फिल्म निर्माण में ऑस्कर पुरस्कार तक जीता. ये दोनों कभी मैमनसिंह वाले घर में भले नहीं गए, लेकिन यह उनकी पुश्तैनी विरासत थी और इस लिहाज से इसे तोड़े जाने पर भारत में आक्रोश लाजिमी है.
आक्रोश का दूसरा बड़ा कारण बांग्लादेश की हालिया घटनाएं हैं जिनमें भारत से जुड़े प्रतीकों पर हमले हुए हैं. भारत ही नहीं, हिंदी और हिंदुस्तान से जुड़े प्रतीकों को निशाना बनाने की घटनाएं बांग्लादेश में तेजी से बढ़ी हैं. इस साल जून महीने में भीड़ ने सिराजगंज जिले में स्थित रविंन्द्रनाथ टैगोर के पुश्तैनी घर पर हमला कर दिया था. इससे पहले पिछले साल शेख हसीना सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान कई मंदिरों को तोड़ा गया था. हिंदुओं पर भी हमले हुए थे. मोहम्मद युनुस के सत्ता प्रमुख बनने के बाद भी यह सिलसिला जारी है. सत्यजीत रे हों या रविंद्रनाथ टैगोर, वे भारत के साथ बांग्लादेश की सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा हैं. टैगोर के घर पर हमले के बाद अधिकारियों ने सफाई दी थी कि पार्किंग को लेकर हुए विवाद में भीड़ उग्र हो गई. सत्यजीत रे के पुश्तैनी घर को गिराने का फैसला तो सरकार ने ही लिया. कहीं ऐसा तो नहीं कि बांग्लादेश में भारत-विरोध के इस खेल में सरकार भी शामिल हो गई है.
FAQs
सवाल:- सत्यजीत रे कौन थे ?
जवाब:- सत्यजीत रे एक मशहूर भारतीय फिल्म डाइरेक्टर, लेखक, पेंटर, और संगीतकार थे. उनकी पैदाइश 2 मई 1921 को कलकात्ता ( कोलकाता) में हुई थी.
सवाल:- सत्यजीत रे की दो सबसे मशहूर फिल्में?
जवाब:- सत्यजीत रे को सिनेमा के इतिहास में सबसे महान और सबसे प्रभावशाली फिल्म निर्देशकों में से एक माना जाता है. खासकर उन्होंने अपनी दो फिल्म "पाथेर पांचाली" और "अपु त्रयी" से भारतीय सिनेमा को ग्लोबल लेवल पर पहचान दिलाई.
सवाल:- सत्यजीत रे की मशहूर हिन्दी मूवी?
सत्यजीत रे की मशहूर हिंदी मूवी "शतरंज के खिलाड़ी" है. यह फिल्म 1977 में रिलीज़ हुई थी. इसके अलावा, सत्यजीत रे ने एक और हिंदी मूवी "सदगति" बनाई थी.