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जंग में फौजी नहीं रोबोट भेजेगा ये देश, सरकार का बड़ा फैसला

Army news: रक्षा मंत्रालय के मुताबिक यह निगरानी रोबोट देसी तकनीक से विकसित किया गया है. इसमें कैमरे और सेंसर लगे हैं, जो बैटरी के जरिए लगातार 30 दिनों से अधिक समय तक निगरानी कर सकते हैं. बैटरी की क्षमता कम होने पर एक ऑन-बोर्ड तरल ईंधन जनरेटर इसे रिचार्ज करेगा. सेना के फ्यूचर लैंड वारफेयर के महानिदेशक ब्रिगेडियर ने इसकी ताकत के बारे में बताया है.

जंग में फौजी नहीं रोबोट भेजेगा ये देश, सरकार का बड़ा फैसला
Shwetank Ratnamber|Updated: Sep 13, 2024, 12:36 PM IST
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War News: दुनिया के चंद विकसित देशों में युद्ध के पुराने तौर-तरीके बदलने की तैयारी हो रही है. भविष्य में सैनिकों के स्थान पर रोबोट युद्ध लड़ते नजर आ सकते हैं. ऑस्ट्रेलियाई सेना ने इसे लेकर कोशिश भी शुरू कर दी है. सेना एक मानवरहित रोबोट का परीक्षण कर रही है, जिसे ग्राउंड अनक्रूड सिस्टम (GUS) नाम दिया गया है. यह जोखिम भरे इलाकों में सैनिकों की जगह ले सकता है. ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्रालय ने बुधवार को बताया कि रोबोट का परीक्षण पिलबारा रेजिमेंट के सैनिक कर रहे हैं. यह रेजिमेंट ऑस्ट्रेलियाई सेना का रीजनल फोर्स सर्विलांस ग्रुप (RFSG) है.

ऑस्ट्रेलिया ने दिखाया दम

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह निगरानी रोबोट ऑस्ट्रेलिया में ही विकसित किया गया है. इसमें कैमरे और सेंसर लगे हैं, जो बैटरी के जरिए लगातार 30 दिनों से अधिक समय तक निगरानी कर सकते हैं. बैटरी की क्षमता कम होने पर एक ऑन-बोर्ड तरल ईंधन जनरेटर इसे रिचार्ज करेगा. सेना के फ्यूचर लैंड वारफेयर के महानिदेशक ब्रिगेडियर जेम्स डेविस ने कहा कि रक्षा अधिकारी नई तकनीक का इस्तेमाल करने वाली क्षमताओं को विकसित करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. मंत्रालय के मुताबिक, यह रोबोट गतिशील वस्तुओं का पता लगा सकता है और इस सूचना को रिमोट ऑपरेटर को भेज सकता है.

कई जगहों पर कारगर

जीयूएस में निगरानी क्षेत्र का विस्तार करने की क्षमता है. यह सैनिकों को मुश्किल मौसमी हालात से निकालने में भी सक्षम है. ऑस्ट्रेलियाई सेना और उसके औद्योगिक साझेदार ने मिलकर जीयूएस को विकसित किया है. इसका रिसर्च और डेवलपमेंट विक्टोरियन शहर यिनार में चल रहा है. विक्टोरिया के सबसे बड़े शिक्षा संस्थान, फेडरेशन यूनिवर्सिटी के मेक्ट्रोनिक्स शोधकर्ताओं ने सबसे पहले जीयूएस को विकसित किया था. इसका इस्तेमाल अफ्रीका के विशाल राष्ट्रीय उद्यानों में सशस्त्र घुसपैठियों से रेंजर्स की रक्षा करने के लिए किया जाना था. हालांकि, आगे चलकर ऑस्ट्रेलियाई सेना ने इसमें दिचलस्पी दिखाई और वन्यजीव संरक्षण से हटाकर सैन्य दृष्टिकोण पर ध्यान लगाया.

(इनपुट: न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस)

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