मिडिल ईस्ट आज की दुनिया का सबसे संवेदनशील और विस्फोटक भूभाग बन चुका है. ईरान और इजरायल के बीच चल रही घातक लड़ाई ने इस पूरे क्षेत्र को एक जीवंत युद्ध प्रयोगशाला बना दिया है. जहां मिसाइल, ड्रोन और अत्याधुनिक हथियारों का प्रयोग दिन-रात हो रहा है. ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हमले के बाद युद्ध के पूरे मिडिल ईस्ट में फैलने की आशंका बढ़ गई है.
तेहरान से तेल अवीव तक फैले इस 'आसमान में लड़े जा रहे युद्ध' के बीच में है इराक — एक ऐसा देश, जो दशकों से हिंसा, विदेशी हमलों, सांप्रदायिक संघर्ष और आतंकवाद की मार झेलता आया है. इराकियों के लिए यह सिर्फ कागज़ी दूरी नहीं, मानसिक तनाव और असुरक्षा का सीधा अनुभव है. मिसाइलें उनके सिर के ऊपर से उड़ती हैं और एक बार फिर युद्ध की आहट उनके जीवन की स्थिरता को हिला रही है. लेकिन इसी अंधेरे में एक नई रोशनी की किरण फूटी है- "योग" के रूप में.
11वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर बगदाद स्थित भारतीय दूतावास में हजारों इराकियों की उपस्थिति इस बात की गवाही है कि योग ने इराक में शांति और आत्मबल का प्रतीक रूप ले लिया है.
भारतीय राजदूत डॉ. सोमेन बागची बताते हैं कि दूतावास की जगह सीमित है, लेकिन योग सीखने वालों की कतार लगातार लंबी होती जा रही है. अब तो प्रचार की ज़रूरत भी नहीं रही — इराक में योग खुद ही एक जन-आंदोलन बन चुका है.
शांति का साधन, अवसाद से राहत
इराक में लगभग 5000 से अधिक प्रशिक्षित योग साधक रोजाना अभ्यास कर रहे हैं. नूर युनुस जैसी महिलाओं ने बताया कि योग ने उन्हें मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से नया जीवन दिया है. वहीं, अमीन जैसी इराकी महिलाएं युद्ध की नकारात्मकता के बीच भी आंतरिक शांति को बनाए रखने का माध्यम योग को मानती हैं.
जब चारों ओर नफरत और अस्थिरता है, योग हमें आत्मबल देता है कि हम सकारात्मकता को बनाए रखें. इराकी नागरिकों के लिए योग इस युद्ध के केंद्र मिडिल ईस्ट में शांति की खोज का जरिया बन गया है । तेहरान से बगदाद की दूरी लगभग 1000 किलोमीटर है. जबकि बगदाद से तेल अवीव लगभग 880 किलोमीटर दूर है. यानी ईरान और इज़रायल के बीच तनाव में इराक भूगोल नहीं, मनोविज्ञान से भी प्रभावित हो रहा है. जब दोनों देश इराक के ऊपर से मिसाइलें छोड़ते हैं, तो सिर्फ हवा में धमाके नहीं होते, बल्कि लोगों के भीतर डर की लहरें भी दौड़ती हैं.
इराक में भारतीय राजदूत सोमेन बागची के मुताबिक इराक एक ऐसा देश है जो अवसाद से उठ रहा है. इराक ने 1990 के दशक के आर्थिक प्रतिबंध झेले. देश में महंगाई बढ़ी और आवश्यक वस्तुओं की किल्लत हुई. 2003 में अमेरिकी हमले से इंफ्रास्ट्रक्चर और जनहानि हुई. सद्दाम हुसैन के पतन के बाद इराक में गृहयुद्ध शुरू हो गया. 2014 से 2017 तक ईरान ने ISIS का आतंक झेला. इस दौरान लगभग 3–5 लाख इराकी नागरिकों की मौत हुई और 40 लाख से अधिक लोगों को विस्थापन झेलना पड़ा. अब योग इस देश में इसीलिए लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि यह लंबे अवसाद के इस दौर से इराकी लोगों को बाहर निकल रहा है. इराक के लोग खुद अपने अंदर योग से बड़ा बदलाव महसूस कर रहे हैं. डॉ. डीपी जोशी ने कहा, शुरुआत में मुश्किल थी, अब योग जीवनशैली बन चुका है.
बगदाद में योग सिखा रहे डॉ. डीपी जोशी बताते हैं कि शुरुआत में मुस्लिम समाज में योग को लेकर संदेह था. पर जैसे ही लोगों को इसके लाभ दिखने लगे, इराकियों ने योग को अपनाना शुरू कर दिया। अब स्थिति यह है कि योग सिर्फ अभ्यास नहीं, बल्कि आशा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है.मिडिल ईस्ट में जब युद्धविमानों की गड़गड़ाहट गूंज रही है, तब इराक जैसे देश में योग की गूंज यह बताती है कि शांति की चाह कभी नहीं मरती. जब हथियार संस्कृति का चेहरा बनते जा रहे हैं, तब योग उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर रहा है जो अहिंसा, संतुलन और आत्मशक्ति की बात करता है. भारत और इराक के बीच योग के इस नए सेतु ने यह दिखा दिया है कि युद्ध के बीच भी शांति बोई जा सकती है.