India Russia relation 1971 war: आज जब दुनिया की नजर भारत और रूस के बढ़ते संबंधों पर है, तब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल की रूस यात्रा कोई सामान्य कूटनीतिक मुलाकात नहीं है. यह उस ऐतिहासिक भरोसे की यात्रा है, जिसकी नींव 50 साल पहले एक महायुद्ध के मैदान में रखी गई थी. आज, जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत पर व्यापारिक दबाव बना रहे हैं, तब यह याद करना जरूरी हो जाता है कि 1971 के युद्ध में जब पूरी दुनिया ने भारत से मुंह मोड़ लिया था, तब केवल एक ही देश हिंदुस्तान की ढाल बनकर सामने आया था.
जब पाकिस्तान का साथ दे रहा था अमेरिका
यह 1971 का वो साल था, जब पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना बेकसूर लोगों पर बेहिसाब जुल्म ढा रही थी. लाखों शरणार्थी भारत की सीमा में घुस रहे थे, जिससे भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो गया था.
ऐसे में, जब भारत ने इस अमानवीयता के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया, तो दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भारत के विरोध में खड़ा हो गया. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर पाकिस्तान के समर्थन में थे. उनका मकसद भारत को युद्ध से रोकना और पाकिस्तान को बचाना था
जब अमेरिका का सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी पहुंचा
जब भारत की सेनाओं ने युद्ध में बढ़त हासिल कर ली, तब अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए अपनी सबसे बड़ी नौसैनिक ताकत का प्रदर्शन किया. उसने अपने सातवें बेड़े को बंगाल की खाड़ी में रवाना कर दिया. जिसमें परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत USS एंटरप्राइज शामिल थे. अमेरिका का इरादा भारत को डराकर युद्ध विराम के लिए मजबूर करना था.
ऐसे में, अमेरिका के इस कदम से युद्ध का माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया था. ऐसा लग रहा था कि यह युद्ध अब भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं, बल्कि भारत और अमेरिका के बीच होने वाला है.
रूस ने किया सीक्रेट मिशन के तहत पलटवार
लेकिन तभी भारत के पुराने दोस्त, सोवियत संघ ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने अमेरिका की पूरी साजिश को नाकाम कर दिया. सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेझनेव ने आदेश दिया कि प्रशांत महासागर में मौजूद सोवियत नौसेना की पनडुब्बियों के एक बड़े बेड़े को तुरंत भारतीय महासागर की तरफ रवाना किया जाए.
इन पनडुब्बियों का सीक्रेट मिशन था, यूएसएस एंटरप्राइज का पीछा करना और अगर वह भारत के खिलाफ कोई कार्रवाई करता है, तो उसे पूरी तरह से निष्क्रिय कर देना. इस खबर से अमेरिका सकते में आ गया. उसे अपनी नौसेना को पीछे हटने का आदेश देना पड़ा. कुछ इस तरह, सोवियत संघ की इस साहसिक कार्रवाई ने न केवल भारत को बचाया, बल्कि पूरे युद्ध का रुख पलट दिया.
ऐसे में, भारत-रूस का साथ होना कोई ताज्जुब होने वाली बात नहीं है. दोनों ही देश मुश्किल हालात में साथ-साथ खड़े रहे हैं. ऐसे में, भारत का रूस के साथ होना लाजमी है. वैसे भी यूरोपीय देश, यहां तक कि अमेरिका भी रूस से छिपकर ट्रेड कर रहा है. जिसके आंकड़े दुनिया के सामने हैं.
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