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स्पेस मेडिसिन पर शोध करेगा AIIMS, पहाड़ों पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए बनेंगी दवाएं

Space Medicine: सियाचिन जैसी मुश्किल जगहों पर तैनात सेना के जवान हों या डॉक्टर या स्टाफ, उनके लिए किस तरह की दवाएं बनाई जाएं जिससे जल्द से जल्द आराम मिले इस पर अब दिल्ली का एम्स (AIIMS) काम करेगा.

स्पेस मेडिसिन पर शोध करेगा AIIMS, पहाड़ों पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए बनेंगी दवाएं
  • सियाचिन जैसी मुश्किल जगहों पर रहने के लिए दवाइयों पर शोध करेगा AIIMS
  • DRDO के साथ काम करेगा AIIMS

Space Medicine: ऊंचे दुर्गम पहाड़ों पर सेना कैसे रहती है? सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात सेना कैसे रखती है अपना ख्याल? क्या होती हैं उनकी खास दवाएं? कपड़े और खाना पीना...ये आम आदमी के लिए बहुत दिलचस्प जानकारी होती है. लेकिन सियाचिन जैसी मुश्किल जगहों पर तैनात सेना के जवान हों या डॉक्टर या स्टाफ, उनके लिए किस तरह की दवाएं बनाई जाएं जिससे जल्द से जल्द आराम मिले इस पर अब दिल्ली का एम्स (AIIMS) काम करेगा.

High Altitude Medicine पर कैसे काम किया जाए, साथ ही Space Medicine कैसी हो यानी अंतरिक्ष यात्रियों को किस तरह की दवाओं की जरूरत हो सकती है, इस पर अब एम्स के एक्सपर्ट डॉक्टर काम करेंगे. इस साझा काम के लिए एम्स के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग के हेड डॉ राजेश खड्गावत को नोडल ऑफिसर बनाया गया है.

कराकोरम क्षेत्र में उत्तरी लद्दाख में मौजूद सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचा और दुर्गम युद्र क्षेत्र है. भारतीय सेना के जवानों को वहां सीमित समय के लिए तैनात किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वहां माइनस पचास डिग्री के तापमान पर रहना और वहां जीवन काटना बाकी दुनिया से बिल्कुल अलग अनुभव होता है.  

ऊंचाई वाली जगहों ये बीमारी है खतरनाक
High Altitude Pulmonary Oedema यानी HAPO ऊंचाई वाली जगहों पर होने वाली सबसे खतरनाक बीमारी है. आसान भाषा में बताएं तो शरीर में पानी भरने की वजह से सूजन का आ जाना और नलियों का अकड़ कर सख्त हो जाना.  

इसके अलावा Mountain Sickness ये कई बार कुछ समय में ठीक हो जाती है लेकिन यह कुछ लोगो में दिमाग में सूजन होने की वजह से जानलेवा साबित हो सकती है.

वहीं, frost bite, शरीर का तापमान बेहद कम हो जाना जिसे hypothermia कहा जाता है, snow blindness, avalanche, carbon monoxide poisoning, ये हाई ऑल्टीट्यूड की परेशानियां भी हैं.  

बहुत कठीन जीवन
16 से 23 हजार फीट पर तैनात जवानों के लिए खास कपड़ों, स्लीपिंग बैग और जूतों का इंतजाम तो रहता है लेकिन इसके बावजूद यहां तैनात जवानो को युद्ध के साथ-साथ मौसम की वजह से जान गंवाने का खतरा बना रहता है. केवल गन फायर के लिए मेटल को छूने भर से उंगलियां फ्रॉस्टबाइट की शिकार हो सकती हैं. इसलिए इनके लिए यूनिफॉर्म से लेकर दवाओं पर लगातार काम होता रहता है.

DRDO इस क्षेत्र में लगातार रिसर्च करती रहती है. अब एम्स इस काम के लिए Directorate General of Armed Forces Medical Services (DGAFMS) के साथ MoU साइन करने वाला है.

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