trendingNow1zeeHindustan2786940
Hindi news >> Zee Hindustan>> राष्ट्र
Advertisement

औरगंजेब से पहले इस राजा ने की थी अपने पिता की हत्या, जेल में रखा… फिर दे दिया जहर

भारत के सबसे समृद्ध साम्राज्य के राजकुमार को सत्ता की लालच ऐसी हुई, कि उसने अपने पिता तक की हत्या तक कर डाली. लेकिन वो कहते हैं ना… ‘जस करनी, तस भरनी’. वही हाल उसके बेटे ने भी किया. आइए जानते हैं, कौन था भारत का वो पहला राजा, जिसने अपने पिता की हत्या कर सत्ता पर काबिज हुआ.

औरगंजेब से पहले इस राजा ने की थी अपने पिता की हत्या, जेल में रखा… फिर दे दिया जहर
  • तुरंत सम्राट बनने की इच्छा ने बना दिया राजकुमार को हत्यारा
  • बेटा भी पिता के नक्शेकदम पर चला, सत्ता के लिए कर दी हत्या

भारतीय इतिहास के पन्नों में अनेक सम्राटों और उनकी बहादुरी की गाथाएं दर्ज हैं. परंतु कुछ कहानियां ऐसी भी हैं, जहां सत्ता की लालसा ने रिश्तों को तार-तार कर दिया. यह एक ऐसी ही कहानी है, जहां एक महत्वाकांक्षी बेटे ने सिंहासन के लिए अपने ही पिता को मौत के घाट उतार दिया. हम बात कर रहे हैं मगध साम्राज्य की. प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली महाजनपदों में से एक, अपने गौरवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है. लेकिन इसी भूमि पर एक ऐसी घटना घटी, जिसने सदियों तक राजवंशों के भीतर सत्ता संघर्ष की क्रूरता को जन्म दे दिया. आइए जानते हैं उस राजकुमार की कहानी, जिसने राजमुकुट पाने की चाह में अपने पिता के रक्त से अपने हाथों को रंगा, और खुद को सम्राट घोषित कर दिया.

मगध साम्राज्य और अजातशत्रु की क्रूरता
प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक, मगध. उस समय सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभर रहा था. छठी शताब्दी ईसा पूर्व के करीब,  इस साम्राज्य पर हर्यंक वंश का शासन था, जिसके संस्थापक बिंबिसार एक कुशल और दूरदर्शी शासक थे. उन्होंने अपनी नीतियों और वैवाहिक संबंधों से मगध का विस्तार किया. हालांकि, उनके पुत्र अजातशत्रु जो बाद में 'कुणिक' के नाम से भी जाने गए, की महत्वाकांक्षाएं इतनी प्रबल थीं कि उन्होंने अपने पिता के शासन का अंत करने का निश्चय कर लिया.

सत्ता की लालसा और बिंबिसार की हत्या
अजातशत्रु की सत्ता की लालसा इतनी तीव्र थी कि उन्होंने अपने पिता बिंबिसार को जेल में डाल दिया और अंत में उनकी हत्या करवा दी. वहीं, कुछ ग्रंथों में विष देकर या भूखा रखकर मारने का भी उल्लेख मिलता है. यह घटना करीब 492 ईसा पूर्व की मानी जाती है. बिंबिसार एक शांतिप्रिय और धार्मिक राजा थे, जो भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी के समकालीन और अनुयायी थे.

उनकी मृत्यु के बाद अजातशत्रु ने मगध का सिंहासन संभाला. इस क्रूर कृत्य के बावजूद, अजातशत्रु को एक शक्तिशाली और कुशल शासक के रूप में जाना जाता है, जिसने मगध साम्राज्य का और विस्तार किया. उन्होंने वज्जि संघ (वैशाली) पर विजय प्राप्त की और राजगीर (राजगृह) को अपनी राजधानी बनाया, जिसकी किलेबंदी उन्होंने स्वयं करवाई थी.

हत्या की घटना का उल्लेख कई बौद्ध और जैन ग्रंथों, जैसे 'महापरिनिर्वाण सूत्र' और 'कथाकोश' में मिलता है. जिसमें अजातशत्रु ने सत्ता हासिल करने के लिए अपने पिता बिंबिसार की हत्या कर दी थी.

बौद्ध धर्म अपनाकर किया पश्चाताप
हालांकि, अजातशत्रु एक क्रूर शासक के रूप में सिंहासन पर बैठे, बौद्ध ग्रंथों में उनके जीवन के बाद के हिस्से में पश्चाताप का वर्णन मिलता है. कहा जाता है कि उन्हें अपने कृत्य का बोध हुआ और उन्होंने भगवान बुद्ध से मुलाकात की. 'सामञ्ञफल सुत्त' में अजातशत्रु का बुद्ध के साथ संवाद मिलता है, जहां वे अपने पापों के लिए पश्चाताप करते हैं.

अजातशत्रु के शासनकाल में ही प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में हुआ था, जो बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी. जिससे मालूम चलता है कि सत्ता संघर्ष और हिंसा के बावजूद, उस काल के शासकों का धार्मिक आंदोलनों के साथ गहरा संबंध था.

उदायिन ने की अजातशत्रु की हत्या
अजातशत्रु के बाद मगध के सिंहासन पर उनके पुत्र उदायिन बैठे. विडंबना यह है कि उदायिन ने भी वही रास्ता अपनाया जो उनके पिता ने अपनाया था. इतिहास में उदायिन को भी अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर सिंहासन हथियाने वाले शासक के रूप में जाना जाता है.

यह घटना हर्यंक वंश में 'पितृहत्या' परंपरा को जारी रखने की कहानी बताती है. वहीं, उदायिन का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह था कि उन्होंने अपनी राजधानी राजगीर से पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) स्थानांतरित की और उसे एक मजबूत किला बनाया. पाटलिपुत्र रणनीतिक रूप से गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित था, जिससे उसे बेहतर व्यापार और सुरक्षा मिलती थी.

एक वंश का अंत और सत्ता की अस्थिरता
हर्यंक वंश में लगातार हो रही राजा पिता की हत्या की घटनाओं के कारण लोगों में आक्रोश और अस्थिरता फैल गई. वहीं, आखिर में उदायिन के बाद भी इस वंश के कई कमजोर शासक हुए, जो अपने ही मंत्रियों द्वारा मारे गए. इस वंश का अंत 413 ईसा पूर्व के आसपास शिशुनाग वंश के उदय के साथ हुआ.

शिशुनाग ने अंतिम हर्यंक शासक को हटाकर मगध की गद्दी संभाली. अजातशत्रु और उदायिन की कहानी भारतीय इतिहास में सत्ता की अंधी दौड़, नैतिक पतन और राजवंशों के भीतर के संघर्ष की कहानी बयां करती है, जिसने आने वाले समय में भी कई शासकों को प्रभावित किया.

ये भी पढ़ें- वो 'जादुई' डिब्बा जिसने बदल दी रसोई की तस्वीर, जानें भारत में पहली बार कब आया फ्रिज

Read More