Maharaja Samudragupta Story: भारत के इतिहास में ऐसे कई राजाओं के नाम स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज हैं, जिनकी वीरता की गाथाएं आज भी याद किए जाते हैं. एक वक्त ऐसा भी था, जब भारत अलग-अलग राज्यों में बंटा हुआ था. कई राजाओं की अपनी-अपनी रियासतें थी, जो एक-दूसरे से युद्ध के मैदान में दो-दो हाथ करते नजर आते थे. इतिहास के पन्नों को पलटने पर ऐसी कई कहानियां मिलती हैं, जिन्हें पढ़कर ये समझ आता है कि हमारे देश में ऐसे कई पराक्रमी राजा हुए, जिन्होंने अपनी वीरता का अध्याय लिखा। एक ऐसा ही नाम गुप्त राजवंश के राजा समुद्रगुप्त का है।
इस राजा को कहा जाता था भारत का नेपोलियन
समुद्रगुप्त के पिता गुप्त राजवंश के संस्थापक जिनका नाम राजा चंद्रगुप्त प्रथम और उनकी माता लिच्छवी रानी कुमारदेवी थी. वैसे तो समुद्रगुप्त को गुप्त राजवंश के दूसरे शासक के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनका जन्म कब और कहां हुआ, इससे जुड़े कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते है. समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा गया. जो एक असाधारण योद्धा के रूप में जाने जाते थे. समुद्रगुप्त बचपन से ही प्रतिभाशाली, अनोखे और साहसी थे. इतिहासकार वी.ए. स्मिथ ने समुद्रगुप्त को उनकी विजय के लिए भारत का नेपोलियन कहा था. यही वजह थी कि उनके पिता चंद्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी चुना. हालांकि चंद्रगुप्त का ये फैसला सही भी साबित हुआ, क्योंकि समुद्रगुप्त ने अखंड भारत की स्थापना की.
वो राजा जिसने की अखंड भारत की स्थापना की
उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक राजा समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का न सिर्फ विस्तार किया, बल्कि उन्होंने छोटे-बड़े राज्यों को जीतकर अखंड भारत की स्थापना की. इतिहास में समुद्रगुप्त को एक पराक्रमी, दानवीर, विद्वान, कवि, संगीतज्ञ, साहित्यकार, कला-प्रेमी और महान शासक के रूप में याद किया जाता है. इतिहास में उनके शासनकाल के साक्ष्य मौजूद हैं. प्रयागराज के पास कौशाम्बी में मिला शिलालेख समुद्रगुप्त के इतिहास का सबसे मुख्य स्रोत है, जिसमें उनके विजय अभियानों का विवरण दिया गया है. समुद्रगुप्त के बारे में शिलालेख पर लिखा है कि 'जिसका खूबसूरत शरीर, युद्ध के कुल्हाड़ियों, तीरों, भाले, बरछी, तलवारों, शूल के घावों की सुंदरता से भरा हुआ है.' इतिहास के अनुसार समुद्रगुप्त के शासनकाल का समय 335 के आसापास से 380 ईस्वी तक रहा था.
गुप्त राजवंश के दूसरे सम्राट के रूप में 335 ईस्वी में समुद्रगुप्त ने गद्दी संभाली थी, जिसके बाद उन्होंने अपने साम्राज्य का लगातार विस्तार किया. इतिहासकारों का इस बात का भी जिक्र किया है कि समुद्रगुप्त ने कई राजाओं को जीता, जाति नायकों को भी अपने वश में कर लिया था और जंगली जातियों पर सत्ता जमाई. समुद्रगुप्त ने उत्तर के कुछ राज्यों पर जीत काबिज करने के बाद अपना विजय रथ दक्खिन की ओर दौड़ा दिया. समुद्रगुप्त ने युद्ध के मैदान में दक्षिण के 12 राजाओं को हराया, लेकिन उन्होंने उदारता दिखाते हुए सभी दक्षिणी राजाओं को राज्य सौंप दिया.
राजाओं के राजा "महाराजा" कैसे बने समुद्रगुप्त?
समुद्रगुप्त के महाराजा बनने की सबसे बड़ा जरिया उनका 'विजय रथ' बना, लगातार जीत का परचम फहराने वाले इस राजा की उदारता ने उसे महाराजा की उपाधि दिलाई. उन्होंने अपनी शक्ति का पूरे भारत में जमकर विस्तार किया. समुद्रगुप्त का विजय पताका पीठापुरम के महेंद्रगिरि, कुरला के मंत्रराज, कांची के विष्णुगुप्त, खोसला के महेंद्र और कृष्णा नदी तक फहरा रहा था. समुद्रगुप्त ने पंजाब की ओर तमाम गणराज्यों की बड़ी-बड़ी सेनाएं को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया.
समुद्रगुप्त के खिलाफ इन राजाओं ने किया विद्रोह
दक्षिण में समुद्रगुप्त का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था, इसी बीच जब वो दक्षिण पर विजय प्राप्त कर वापस लौटे तो उत्तर के कई राजाओं ने उनके खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया था। कई ऐसे राजा था, जिन्होंने खुद को स्वतंत्र घोषित कर रखा था. विद्रोह करने वाले राजाओं में...
शामिल थे. उत्तर भारत में एक बार फिर रणक्षेत्र में समुद्रगुप्त अपना लोहा मनवाने के लिए तैयार थे. विद्रोह करने वाले राजाओं और समुद्रगुप्त के बीच घमासान युद्ध हुआ. नतीजा वही हुआ, विद्रोह को कुचलते हुए उनका विजयरथ एक बार फिर पुष्पपुर यानि पाटलिपुत्र तक जा पहुंचा. इसके बाद उनके सामने किसी के पास सिर उठाने की हिम्मत नहीं बची थी. समुद्रगुप्त के विरोधियों में उनका खौफ इस कदर फैल चुका था कि तमाम प्रदेशों और गणराज्यों ने उनकी अधीनता को स्वीकार कर लिया. दक्षिण और पश्चिम के कई राजा तो समुद्रगुप्त को खुश रखने के लिए बार-बार तोहफे भेजा करते थे.
समुद्रगप्त ने अपने सारी धरती को बाहुबल से बांध लिया
पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में आसाम तक समुद्रगुप्त का साम्राज्य फैल चुका था, साथ ही उत्तर में हिमालय के कीर्तिपुर जनपद से लेकर दक्षिण में सिंहल तक उनका दबदबा कायम था. जिसके बारे में समुद्रगुप्त के महादंडनायक हरिषेण ने प्रयाग की प्रशस्ति में लिखा है कि 'पृथ्वी भर में कोई उसका प्रतिरथ नहीं था. सारी धरती को समुद्रगप्त ने अपने बाहुबल से बांध रखा था.'
स्वर्ण और ताम्र मुद्राओं को समुद्रगुप्त ने दिया बढ़ावा
भारत के महान शासक के रूप में प्रख्यात समुद्रगुप्त को अपने जीवन काल में कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा. इतिहासकारों ने ये दावा किया कि भारत में समुद्रगुप्त ने स्वर्ण युग की शुरुआत की थी. समुद्रगुप्त ने मुद्रा से जुड़े कई सुधार किये थे.
उन्होंने उच्चकोटि की ताम्र मुद्राओं और शुद्ध स्वर्ण की मुद्राओं का प्रचलन करवाया था. उन्होंने चांदी की मुद्राओं का प्रचलन नहीं करवाया था. दान में भी वह शुद्ध सोने की मुद्रा दिया करते थे. बयाना, बनारस, जौनपुर, बोधगया आदि स्थानों से समुद्रगुप्त की सात प्रकार की मुद्राएं प्राप्त हुई हैं.
संगीत में समुद्रगुप्त की गहरी दिलचस्पी हुआ करती थी. उन्होंने करीब 40 वर्षों तक शासन किया था. उनकी मृत्यु 380 ईस्वी में हुई. इसके बाद उनके बेटे चंद्रगुप्त द्वितीय ने गुप्त राजवंश के शासनकाल को आगे बढ़ाया.
ये भी पढ़ें- भारत में कब, कहां और कैसे किया गया था परमाणु परीक्षण? जानिए पूरी कहानी
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.