नई दिल्ली: भारत में कई ऐसी चीजें आज भी मौजूद हैं जिन्हें देश के इतिहास से जोड़ा जा सकता है. इन्हीं में से एक है राजधानी दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन, जिसे देश की शान के तौर पर देखा जाता है. यह उन ऐतिहासिक चीजों में से एक है, जिसका निर्माण अंग्रेजों ने किया था. हालांकि, यह जितना खूबसूरत दिखता है, इसके निर्माण भी उतना ही मुश्किल था. आपको जानकर हैरानी होगी कि खासतौर पर राष्ट्रपति भवन के निर्माण के लिए अंग्रेजों ने एक स्पेशल ट्रेन तक चलाई थी.
राष्ट्रपति भवन में बने 300 कमरे
जिस राष्ट्रपति भवन में आज देश के राष्ट्रपति अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं, वो कभी अंग्रेजों का व्हाइसरॉय हाउस हुआ करता था. कम ही लोग जानते होंगे कि इसे बनाने में 17 साल का वक्त लगा था. इसमें 300 कमरे बनवाए गए हैं और सभी तरह की सुविधाएं दी गई हैं. राष्ट्रपति भवन के अंदर ही म्यूजियम, सेरेमनी हॉल, गार्डन, बॉल रूम, गेस्ट रूम और स्टॉफ के रहने की जगह भी बनाई गई है.
29 हजार मजदूरों ने किया तैयार
अंग्रेजों के जमाने में व्हाइसरॉय हाउस कहे जाने वाले इस राष्ट्रपति भवन का आर्किटेक्चर ही बहुत अलग ढंग से तैयार किया गया था. इसे 17 साल का वक्त ही इसलिए लगा क्योंकि इसका ढांचा बेहद मजबूत बनाया जाना था, जिसके लिए उम्मीद से कई ज्यादा मजदूरों की जरूरत पड़ने वाली थी. इस तरह का आर्किटेक्चर बेहद कम जगहों पर इस्तेमाल किया जाता है. इस भवन के निर्माण करीब 29 हजार मजदूर लगे थे.
इस वजह से चलीं स्पेशल ट्रेनें
आपको बता दें कि राष्ट्रपति भवन को बनाने में लगभग 700 मिलियन ईंटों और 3 मिलियन क्यूबिक फिट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था. राष्ट्रपति भवन के आर्किटेक्ट सर लैंडसर लुटियन्स थे, जिन्हें उनकी दूरदर्शिता और भव्यता के लिए जाना जाता था. वह अपने काम में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं चाहते थे, ऐसे में उन्होंने राष्ट्रपति भवन के निर्माण के लिए कई स्पेशल ट्रेनें तक चलवा दी थीं.
चलाई गईं ट्रेनें
इन स्पेशल ट्रेनों को केवल इसलिए चलवाया गया, ताकि राजस्थान सहित दूसरे अन्य क्षेत्रों से निर्माण के लिए कीमती सामान और पत्थर मंगवाए जा सकें. राष्ट्रपति भवन के निर्माण के लिए लंबे वक्त तक इन स्पेशल ट्रेनों का संचालन होता रहा. गौरतलब है कि राष्ट्रपति भवन इसता भव्य बनाया गया है कि इसे पूरा घूमने के लिए कम से कम आपको एक दिन की जरूरत तो पड़ेगी ही.
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