Calcutta High Court pending cases: भारतीय न्याय व्यवस्था की धीमी रफ्तार का सबसे बड़ा बोझ आज भी आम जनता उठा रही है. इस बात का सबसे बड़ा सबूत कोलकाता हाईकोर्ट की चौंकाने वाली रिपोर्ट है. एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, कोलकाता हाईकोर्ट में 2,185 ऐसे मामले लंबित हैं, जो 50 साल या उससे ज्यादा पुराने हैं. यह संख्या देश के सभी हाईकोर्टों में लंबित 50 साल पुराने मामलों का 94% है, जो न्यायपालिका के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है. यह आंकड़ा दिखाता है कि दशकों से न्याय के इंतजार में बैठे लोगों के लिए ‘तारीख पे तारीख’ वाली कहावत कितनी सच हो चुकी है.
आंकड़े जो न्याय पर सवाल उठाते हैं
कानून मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़े सिर्फ कोलकाता तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह देश के अन्य हाईकोर्टों में भी लंबित मामलों की भयावह तस्वीर पेश करते हैं.
इतना ही नहीं, सबसे पुराना मामला तो 74 साल से लंबित है, जो 1951 से चला आ रहा है. इन आंकड़ों से यह साफ है कि भारतीय न्यायिक प्रणाली पर मुकदमों का कितना भारी बोझ है.
क्यों हो रही है यह देरी?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, न्याय में देरी के कई कारण बताए गए हैं. इनमें सबसे बड़ा कारण जजों की कमी है. देशभर के हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 1,122 है, जबकि कार्यरत न्यायाधीशों की संख्या केवल 778 है, जिसका मतलब है कि 344 पद खाली हैं. हालांकि, कानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया है कि सिर्फ जजों की कमी ही एकमात्र कारण नहीं है.
कई मामलों में तथ्य इतने जटिल होते हैं कि उनका निपटारा करना मुश्किल होता है. वहीं वकील, जांच एजेंसियां और गवाहों का सहयोग न मिलना भी एक बड़ी वजह है. साथ ही, अदालतों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी भी एक बड़ी समस्या है.
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार दिए आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार हाईकोर्टों को 10 साल से अधिक पुराने मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाने का निर्देश दिया है. इस समस्या से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन फॉर जस्टिस डिलीवरी एंड लीगल रिफॉर्म्स भी स्थापित किया गया है. लेकिन ये सभी प्रयास अभी तक इस समस्या को हल करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं, और न्याय की उम्मीद में बैठे लाखों लोगों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.
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