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औरंगजेब तो फिर भी ठहरा पराया, छावा के ये करीबी ही बन बैठे थे 'आस्तीन के सांप'!

छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता ने हर किसी को हैरान किया है. औरंगजेब ने जिस तरह उन्हें मौत के घाट उतारा उसने हर शख्स का सीना छलनी कर दिया. हालांकि, कम ही लोग जानते हैं कि संभाजी के साथ उनके अपनों ने ही धोखा किया था.

औरंगजेब तो फिर भी ठहरा पराया, छावा के ये करीबी ही बन बैठे थे 'आस्तीन के सांप'!
  • संभाजी राजे को अपनों ने धोखा दिया
  • पिता शिवाजी जैसे ही वीर थे संभाजी

नई दिल्ली: छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता के किस्से आज भी अक्सर लोगों की जुबां से सुनने को मिल जाते हैं. मुगल शहंशाह औरंगजेब ने संभाजी को जिस बेरहमी से मौत के घाट उतारा उसे यादकर आज भी लोगों का खून खौल उठता है. हाल ही में रिलीज हुई विक्की कौशल की फिल्म 'छावा' में संभाजी की जिंदगी को इतनी खूबसूरती से दिखाया है कि दर्शकों की रौंगटे खड़े हो गए. खासतौर पर फिल्म के क्लाइमेक्स सीन ने झकझोर कर रख दिया. संभाजी महाराज को 'छावा' कहा जाता था, जिसका अर्थ है (शेर का बच्चा). उन्हें शेर का बच्चा ऐसे ही नहीं कहा जाता था, उन्होंने हर जगह साबित किया कि वह किसी भी मामले में अपने पिता शिवाजी महाराज से कम नहीं हैं. 

4 करीबियों ने किया था धोखा

औरंगजेब के लिए संभाजी को तड़पा-तड़पा कर मारन आसान नहीं होता, अगर उनके अपनों ने ही उनके साथ दगा न किया होता. कम ही लोग जानते हैं कि संभाजी महाराज के अपने ही कुछ ऐसे रिश्तेदार और करीबी लोग थे, जिन्होंने औरंगजेब से जाकर हाथ मिला लिया था और उनके खिलाफ राजनीति करने लगे थे. चलिए आज हम संभाजी के उन 4 करीबियों के बारे में जानने के कोशिश करते हैं जिन्होंने उनके साथ गद्दारी की थी.

गणोजी शिर्के

गणोजी शिर्के को लेकर बताया जाता है कि छत्रपति संभाजी महाराज की पत्नी महारानी येसूबाई के भाई थे. उन्होंने संभाजी महाराज के खिलाफ 'वतनदारी' जैसे विषय को मुद्दे बनाकर उन्हें धोखा दिया. कहते हैं कि गणोजी शिर्के ने संभाजी से अपनी बात मनवाने के लिए काफी चर्चा की, लेकिन जब संभाजी उनकी बातों में नहीं आए तो गणोजी ने जाकर मुगलों से हाथ मिला लिया. इसके बाद वह संभाजी के खिलाफ मुकरब खान के साथ मिलकर राजनीति करने लगे. गणोजी की सूचना पर ही औरंगजेब, संभाजी को कैद करने में सफल हो पाया था. 

कान्होजी शिर्के

गणोजी शिर्के की तरह कान्होजी शिर्के भी संभाजी महाराज की पत्नी येसूबाई के भाई थे. कान्होजी शिर्के कोंकण के श्रृंगारपुर दाभोल क्षेत्र में रहा करते थे. वे चाहते थे कि शिवाजी महाराज उन्हें वहां का उत्तराधिकार घोषित कर दें, जिससे कि वहां की पूरी जमीन उनके कब्जे में आ सके. हालांकि, छत्रपति शिवाजी महाराज को उनकी ये योजना बिल्कुल रास नहीं आई. ऐसे में शिवाजी महाराज के निधन के बाद शिर्के भाइयों ने संभाजी महाराज को भी मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने भी अपने पिता की तरह उनकी बात मानने से साफ इनकार कर दिया. इस कारण कान्होजी शिर्के भी अपने भाई की राह पर चले और वह भी संभाजी महाराज के खिलाफ राजनीति करने लगे.

सोयराबाई

सोयराबाई, छत्रपति संभाजी महाराज की सौतेली मां थीं. वो भी उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करती थीं. वह चाहती थीं कि स्वराज्य की गद्दी उनका बेटा राजाराम महाराज संभालें. हालांकि, छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद स्वराज्य की गद्दी के पहले हकदार संभाजी महाराज ही थे. ऐसे में सोयरबाई अपने अपने सपने को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गईं. उन्होंने कई बार संभाजी को जान से भी मारने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह असफल हो जाया करती थीं. जब संभाजी महाराज को सोयराबाई की इन हरकतों के बारे में जानकारी मिली, तब उन्होंने अपनी सौतेली मां कैद करवा दिया. इसके बाद सोयराबाई की तबीयत बिगड़ती गई, जिस कारण उनका निधन हो गया.

अनाजी पंत

छत्रपति शिवाजी महाराज के अष्टप्रधान मंडल के प्रमुख सचिव थे अनाजी पंत, जो छावा से बेहद नफरत किया करते थे. उन्होंने संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई संग मिलकर उनके खिलाफ कई बार साजिशें रचीं. उन्होंने संभाजी महाराज को पसंद नहीं किया. शिवाजी महाराज के निधन के बाद उनकी हमेशा पूरी कोशिश रह कि संभाजी कभी स्वराज्य की गद्दी पर न बैठ पाएं. बताया जाता है कि अनाजी को संभाजी से इतनी नफरत थी कि उन्होंने आगे बढ़कर अकबर को खत लिख दिया कि वह संभाजी को रास्ते से हटाने के लिए उनसे हाथ मिलाना चाहते हैं. कहते हैं कि जब संभाजी महाराज को अनाजी की गद्दारी के बारे में पता चला तो उन्होंने उन्हें हाथी के पैरों तले कुचलने का आदेश दे दिया.

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