अगर आपने कभी किसी शहर में 'सिविल लाइंस' या कैंटोनमेंट एरिया का नाम सुना है, तो शायद आपके मन में ये सवाल आया होगा कि ये जगहें आखिर होती क्या हैं और इनका नाम ऐसा क्यों है? असल में इन दोनों जगहों का इतिहास अंग्रेजों के समय से जुड़ा हुआ है. चलिए जानते हैं कि भारत में सिविल लाइंस और कैंटोनमेंट की शुरुआत कैसे हुई और इसका क्या मकसद था.
क्या होता है सिविल लाइंस?
सिविल लाइंस एक ऐसा इलाका होता है, जिसे अंग्रेज अफसरों और सिविल प्रशासन (जैसे कलेक्टर, मजिस्ट्रेट आदि) के रहने के लिए बनाया करते थे. यह इलाका बाकी शहर से अलग और ज्यादा साफ-सुथरा होता था. यहां बड़ी कोठियां, चौड़ी सड़कें, हरियाली और शांति होती थी.
शुरुआत कब हुई?
सिविल लाइंस की शुरुआत 19वीं सदी की शुरुआत में हुई. जब 1857 से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी देश के कई हिस्सों में शासन कर रही थी, तब उन्होंने अफसरों के रहने के लिए अलग इलाके बनाए. सबसे पहले इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में सिविल लाइंस बसाई गई, जिसे भारत की पहली सिविल लाइंस माना जाता है.
क्या होता है कैंटोनमेंट?
कैंटोनमेंट या कैंट शब्द का मतलब होता है फौज की छावनी. अंग्रेजों ने अपने सैनिकों को रखने के लिए शहरों से दूर छावनियां बनाईं, जहां सेना के लिए ट्रेनिंग, रहने और गोला-बारूद रखने की सुविधाएं थीं.
कब बना पहला कैंट?
भारत में पहला कैंटोनमेंट 1765 में बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) में बनाई गई थी. बाद में लखनऊ, मेरठ, अंबाला, झांसी, पुणे, दिल्ली, सिकंदराबाद जैसे शहरों में भी कैंटोनमेंट बसाए गए. इन इलाकों में सेना के अलावा अस्पताल, स्कूल और चर्च जैसी सुविधाएं भी मौजूद थीं.
क्यों बनाए गए ये अलग इलाके?
ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि उनके अफसर और सैनिक भारतीयों से अलग रहें, ताकि वो अपनी सुविधा और सुरक्षा के साथ रह सकें. इसलिए उन्होंने सिविल लाइंस और कैंटोनमेंट को आम भारतीय बस्ती से दूर बसाया. इन जगहों पर भारतीयों की आवाजाही बहुत सीमित होती थी और अंग्रेजों के लिए अलग कानून और सुविधाएं लागू होती थीं.
आज क्या हाल है?
आजादी के बाद भी भारत के ज्यादातर शहरों में ये इलाके मौजूद हैं. सिविल लाइंस अब भी कई शहरों में सबसे पॉश और शांत इलाका माना जाता है. कैंटोनमेंट एरिया अभी भी सेना के अधीन होते हैं और यहां बिना परमिशन जाना आसान नहीं होता.