जब भी देश के अंदरूनी इलाकों में सुरक्षा की बात होती है, CRPF का नाम सबसे पहले लिया जाता है. दंगों से लेकर आतंकवाद-रोधी ऑपरेशन और आपदा राहत तक, CRPF हर मोर्चे पर डटी रहती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फोर्स की शुरुआत आजादी से पहले, ब्रिटिश राज के दौर में हुई थी? इसकी नींव 1939 में रखी गई थी और तब इसका नाम कुछ और था. आइए जानते हैं, CRPF की शुरुआत कब और क्यों हुई, और कैसे यह आज भारत की सबसे बड़ी केंद्रीय पुलिस फोर्स बनी.
इसकी जरूरत क्यों महसूस हुई?
1930 के दशक के आखिर में भारत में राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ रही थी. स्वतंत्रता आंदोलन तेज हो चुका था और कई रियासतों में अस्थिरता थी. ब्रिटिश प्रशासन को एक ऐसी फोर्स की आवश्यकता थी जो जल्दी तैनात हो सके, संवेदनशील इलाकों में कानून-व्यवस्था संभाल सके, अधिकारियों और महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा कर सके. इसी वजह से CRPF का गठन किया गया. यह फोर्स स्थायी रूप से तैनात नहीं रहती थी, बल्कि जरूरत पड़ने पर किसी भी राज्य या क्षेत्र में भेजी जाती थी. पहले इसका नाम Crown Representative's Police था.
स्वतंत्रता के बाद का बदलाव
जब 1947 में भारत को आजादी मिली, तब CRPF को भारत सरकार ने अपने अधीन कर लिया. अब इसकी भूमिका सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं रही, बल्कि देश की आंतरिक शांति बनाए रखने में इसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. इसके बाद संसद ने Central Reserve Police Force Act, 1949 पारित किया. यह कानून 28 दिसंबर 1949 को लागू हुआ और इसी के साथ CRPF का आधिकारिक नाम बदलकर Central Reserve Police Force (CRPF) रखा गया. इस एक्ट ने CRPF को एक कानूनी पहचान और स्थायी ढांचा प्रदान किया.
आज का CRPF
आज CRPF न केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि कई जरूरी मिशनों में भी सुरक्षा प्रदान करता है जैसे नक्सल विरोधी अभियान, आतंकवाद-रोधी अभियान, चुनावों में सुरक्षा और दंगा नियंत्रण आदि. CRPF प्राकृतिक आपदा के समय राहत कार्य में भी अहम भूमिका निभाती है. यह फोर्स हर परिस्थिति में देश की सुरक्षा और नागरिकों की रक्षा के लिए तैयार रहती है.