जब भी हम भारत की राजधानी की बात करते हैं, तो हमारे दिमाग में सबसे पहले दिल्ली का नाम आता है. आज दिल्ली देश की राजनीतिक, प्रशासनिक और ऐतिहासिक राजधानी है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आजादी से पहले या ब्रिटिश राज में भारत की राजधानी कहां हुआ करती थी? बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि दिल्ली से पहले किसी और शहर को भारत की राजधानी माना जाता था.
कोलकाता
ब्रिटिश शासन के समय, यानी ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में, कोलकाता (जिसे पहले 'कलकत्ता' कहा जाता था) भारत की राजधानी थी. 1772 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने जब बंगाल का गवर्नर जनरल बनने के बाद कलकत्ता को ईस्ट इंडिया कंपनी की राजधानी बनाया, तब से लेकर 1911 तक यही शहर भारत की राजधानी रहा.
कलकत्ता को राजधानी बनाने की सबसे बड़ी वजह थी उसका व्यापारिक महत्व. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए यह शहर बंगाल, बिहार और ओडिशा जैसे क्षेत्रों से व्यापार करने का एक अहम केंद्र बन चुका था. यहां से ब्रिटिश सरकार को प्रशासन चलाने और अपने हितों को साधने में काफी सुविधा होती थी.
राजधानी क्यों बदली गई?
1911 में, ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली में एक दरबार का आयोजन किया और वहीं यह ऐलान किया गया कि भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा. इसकी कई वजहें थीं:
भौगोलिक स्थिति: दिल्ली भारत के केंद्र में स्थित है, जिससे देश के बाकी हिस्सों तक पहुंचना आसान होता है.
ऐतिहासिक महत्व: दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध रहा है. मुगलों और कई राजवंशों ने यहां से शासन किया था.
राजनीतिक रणनीति: ब्रिटिश सरकार को उत्तर भारत के राजनीतिक हालात पर ज्यादा नियंत्रण चाहिए था, और दिल्ली इसके लिए बेहतर विकल्प थी.