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आजादी के वक्त अंग्रेजों की वो 'काली करतूत', जब भारत-पाकिस्तान के बीच बंट गई 'इंडियन आर्मी'; जानें कैसे

Indian Army partition 1947: भारत-पाकिस्तान के बीच सैनिकों का बंटवारा सिर्फ एक राजनीतिक फैसला नहीं था, बल्कि एक ऐसी काली करतूत थी, जिसने भारतीय इतिहास के सबसे दर्दनाक अध्यायों में से एक की नींव रखी.

आजादी के वक्त अंग्रेजों की वो 'काली करतूत', जब भारत-पाकिस्तान के बीच बंट गई 'इंडियन आर्मी'; जानें कैसे
  • भारत-पाक के बीच 2:1 के अनुपात में हुआ जवानों का बंटवारा
  • दोनों देशों में अंग्रेजों ने हथियारों और पैसों का भी किया बंटवारा

Indian Army partition 1947 between India-Pakistan: 15 अगस्त, 1947 को जब भारत ने आजादी की सांस ली, तो देश के साथ-साथ सेना भी दो हिस्सों में बंट गई. यह सिर्फ जमीन और लोगों का बंटवारा नहीं था, बल्कि एक ऐसी क्रूर और दर्दनाक प्रक्रिया थी, जिसने उन जवानों को भी अलग कर दिया, जो दशकों से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ते आए थे. अंग्रेजों ने अपने आखिरी दांव के रूप में भारतीय सेना का ऐसा बंटवारा किया, जिसने एक ही बटालियन के सैनिकों को भविष्य का दुश्मन बना दिया.
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बंटवारे की नींव 'आर्म्ड फोर्सेस रीकॉन्स्टीट्यूशन कमेटी'
भारत के राजनीतिक बंटवारे के साथ ही, 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत सेना को भी विभाजित करने का फैसला किया गया था. इस कठिन और असंभव काम को अंजाम देने के लिए आर्म्ड फोर्सेस रीकॉन्स्टीट्यूशन कमेटी यानी AFRC का गठन किया गया.

ऐसे में, AFRC की अध्यक्षता ब्रिटिश इंडियन आर्मी के अंतिम कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल क्लाउड औचिनलेक को सौंपी गई थी. उनका काम सैन्य संपत्तियों और जवानों को दोनों नए देशों के बीच बाँटना था. यह एक ऐसा काम था, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की थी.

2:1 के अनुपात में हुआ जवानों का बंटवारा
बंटवारे के लिए जो सिद्धांत तय किया गया था, वह यह था कि मुस्लिम बहुल इकाइयां पाकिस्तान को दी जाएंगी, और बाकी की सभी इकाइयां भारत को मिलेंगी. उस समय, ब्रिटिश इंडियन आर्मी में करीब 4 लाख जवान थे. इस बंटवारे के बाद, भारत को करीब 2 लाख 60 हजार सैनिक मिले, जबकि पाकिस्तान को करीब 1 लाख 40 हजार सैनिक मिले.

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यह बंटवारा मोटे तौर पर 2:1 के अनुपात में किया गया था. जवानों के लिए यह एक मुश्किल फैसला था, क्योंकि उन्हें अपनी पसंद के देश में जाने के लिए मजबूर किया गया था. कई सैनिकों के लिए यह धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि अपने घर और अपनी बटालियन के प्रति वफादारी का सवाल था.

जब हथियारों और पैसों का भी हुआ बंटवारा
सेना का बंटवारा सिर्फ जवानों तक ही सीमित नहीं था. अंग्रेजों ने सैन्य संपत्ति, उपकरणों, गोला-बारूद और यहां तक कि सेना के खजाने को भी बांट दिया था. एक-एक बंदूक, एक-एक गाड़ी, और एक-एक मशीन का बंटवारा किया गया. पाकिस्तान को सैन्य संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा दिया जाना था, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत धीमी और विवादों से भरी थी. इस बंटवारे ने दोनों देशों के बीच कटुता और अविश्वास की एक गहरी खाई खोद दी, जिसका असर आज भी देखने को मिलता है.

यह बंटवारा उन जवानों के लिए एक व्यक्तिगत त्रासदी था, जिन्होंने एक ही वर्दी पहनकर एक साथ दुश्मन से लोहा लिया था. रातों-रात वे साथी से अजनबी बन गए, और फिर जल्द ही वे एक-दूसरे के दुश्मन बन गए. भारतीय सेना का यह बंटवारा सिर्फ एक संख्यात्मक विभाजन नहीं था, बल्कि यह एक साझा इतिहास और गौरवशाली विरासत का दुखद अंत था, जिसने उपमहाद्वीप में आने वाले दशकों के संघर्ष की नींव रखी.

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