भारत देश को आजादी दिलाने के लिए कई क्रांतिकारेियों ने अपना बलिदान दिया है. ऐसे ही एक बहादुर सिपाही थे मंगल पांडे, जिनका नाम सुनते ही हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है. आज जब हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं, तो उसके पीछे ऐसे लाखों क्रांतिकारियों की कुर्बानी है, जिनमें मंगल पांडे सबसे पहले थे. हर साल 29 मार्च को उन्हें याद किया जाता है और उनके योगदान को सम्मान दिया जाता है. आज हम बात करने जा रहे हैं उस ऐतिहासिक पल की, जब भारत में पहली बार किसी ने अंग्रेजों के खिलाफ बंदूक चलाई थी और वो कोई और नहीं बल्कि मंगल पांडे थे.
मंगल पांडे कौन थे?
मंगल पांडे एक भारतीय सिपाही थे, जो ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे. उनका जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था. वे बचपन से ही निडर और देशभक्ति से भरे हुए थे. अंग्रेजों की गुलामी उन्हें कभी स्वीकार नहीं थी.
बंदूक चलाने की शुरुआत
साल 1857 की बात है, उस समय अंग्रेजों ने भारतीय सिपाहियों को नई एनफील्ड राइफल दी थी. इन राइफलों के कारतूसों को दांतों से काटकर खोलना पड़ता था, लेकिन कहा गया कि इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी लगी होती थी. यह बात हिन्दू और मुस्लिम, दोनों धर्मों के खिलाफ थी, जिसके चलते सिपाहियों में बहुत गुस्सा था.
मंगल पांडे ने जब ये सुना, तो उन्होंने इसका विरोध करने का फैसला लिया. 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में उन्होंने अंग्रेज अफसरों के खिलाफ आवाज उठाई और पहली बार बंदूक भी चलाई. उन्होंने अंग्रेज अफसर ह्यूसन को गोली मारी और उनकी राइफल उठाकर विद्रोह की शुरुवात कर दी.
उनकी बहादुरी की मिसाल
मंगल पांडे अकेले होने के बाजूद, निडर होकर बगावत की और उन्होंने खुलकर अंग्रेजों का विरोध किया और बंदूक से हमला कर दिया. उनकी इस बहादुरी से कई सिपाहियों को भी हिम्मत मिली. हालांकि, उन्हें जल्द ही गिरफ्तार कर लिया गया और 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई थी.
1857 की क्रांति की शुरुआत
मंगल पांडे का ये कदम कोई साधारण घटना नहीं थी. इसी घटना को 1857 की पहली आजादी की लड़ाई की शुरुआत माना जाता है. उन्होंने जो चिंगारी लगाई, वो जल्द ही पूरे देश में आग बनकर फैल गई. हर कोने से लोग उठ खड़े हुए और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने लगे.
मंगल पांडे की विरासत और प्रेरणा
आज भले ही मंगल पांडे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी हर भारतीय के दिलों में जिंदा है. स्कूल की किताबों से लेकर फिल्मों तक, हर जगह उनके योगदान को याद किया जाता है. उनके ऊपर बनाई गई फिल्म 'मंगल पांडे द राइजिंग' ने भी युवाओं के बीच उनके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ाई.