trendingNow1zeeHindustan2795984
Hindi news >> Zee Hindustan>> राष्ट्र
Advertisement

इंडियन आर्मी की वो रेजिमेंट, जिनकी दहाड़ है 'राजा रामचंद्र की जय'

भारतीय सेना की वो रेजिमेंट जिनकी दहाड़ से ही जिनकी दहाड़ से पाकिस्तान कांपता है. वो हमारे देश के ऐसे रक्षक हैं, जिन्होंने 1947-48 के युद्ध में पाक सेना को खदेड़ा था. इस रेजिमेंट के जवान को परमवीर चक्र के सम्मान से भी नवाजा गया है. यहां इंडियन आर्मी के राजपूताना राइफल्स का जिक्र हो रहा है, जिस रेजिमेंट के वीर अपनी मूछों के लिए भी प्रसिद्ध हैं.

इंडियन आर्मी की वो रेजिमेंट, जिनकी दहाड़ है 'राजा रामचंद्र की जय'
  • हवलदार पीरु सिंह को मिला जब मिला था परमवीर चक्र 
  • कारगिल युद्ध में राजपूताना राइफल्स ने दुश्मन को दी मात
  • राजपूताना राइफल्स का आदर्श-सिद्धांत वाक्य-'वीर भोग्या वसुंधरा'
  • कटार और बिगुल राजपूत रेजिमेंट का प्रतीक चिन्ह

Rajputana Rifles: 'राजा रामचंद्र की जय' नारे की गूंज युद्ध के मैदान पर दुश्मनों का मनोबल चकनाचूर कर देती है. राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट के सैनिक अपने युद्धघोष के साथ पूरे दम से हमला बोलकर देश के शत्रुओं को मिट्टी में मिलाने की ताकत रखते हैं. जब-जब देश की आन बान शान पर दुश्मनों की नजर पड़ी, तब-तब भारत मां के इन सपूतों ने ये बताया कि अगर दुश्मन आंख दिखाएंगे, तो हम आंख निकाल लेंगे. भारतीय सेना के पैदल सैनिक जब युद्ध के मैदान में होते हैं, तो उनकी मौजूदगी ही दुश्‍मनों का दिल दहलाने के लिए काफी होती है.

1947-48 के युद्ध में राजपूताना राइफल्स ने पाक सेना को खदेड़ा
भारत और पाकिस्तान के बीच आजादी के बाद से अब तक 4 युद्ध हुए हैं. सबसे पहले साल 1947-48 में, पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोला था तब भयंकर सर्दी के मौसम में 6 राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट ने पाकिस्तानी फौज और कबाइलियों को खदेड़ने में मुख्य भूमिका निभायी थी. इस युद्ध में वीरता के लिए राजपूताना रेजिमेंट के हवलदार पीरु सिंह शेखावत को परमवीर चक्र मरणोपरांत दिया गया. साथ ही उनके साथी राइफल मैन ढ़ोंकल सिंह और हवलदार चूना राम को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.

fallback

पाकिस्तान के खिलाफ हुई इस जंग में राजपूताना राइफल्स को एक-दो नहीं, बल्कि 14 वीर चक्र भी दिए गए थे. राजपूताना राइफल्स ने इस परपंरा का आगे भी जारी रखा, साल 1965 और 1971 के युद्ध में भी इस रेजिमेंट ने पाकिस्तानी सेना के सामने मोर्चा संभाला और दुश्मन खेमे को बुरी तरह से तबाह कर दिया था. राजपूताना राइफल्स के जवानों ने वर्ष 1953-1954 में कोरिया में चल रहे संयुक्त राष्ट्र संरक्षक सेना में भी हिस्सा लिया. इसके अलावा साल 1962 में कांगो में चले संयुक्त राष्ट्र मिशन में भी राजपूताना राइफल्स ने मुख्य भूमिका अदा की थी.

राजपूताना राइफल्स के वीरों ने कारगिल युद्ध में भी 16 हजार फीट की उंचाई पर तिरंगा फहराया था. 18 राजपूताना राइफल्स के जवानों ने खेमकरण में दुश्मन का डटकर सामना किया और उन्हें खदेड़ते हुए जीत हासिल की. राजपूताना राइफल्स के जवानों ने खेमकरण की धरती को पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह बना दिया था.

वर्ष 1775 में हुई थी राजपूताना राइफल्स की स्थापना
राजा रामचंद्र की जय का युद्धघोष करने वाले राजपूताना राइफल्स की वीरगाथा कई किस्से-कहानियों से भरी पड़ी है. राजपूताना राइफल्स भारतीय सेना का एक मुख्य सैन्य-दल है. जिसकी स्थापना 1775 में की गई थी. उस वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजपूत और जाट लड़ाकों की क्षमता, बहादुरी और जज्बे को देखते हुए एक रेजिमेंट बनायी थी. फ्रांसीसी सेना को धूल चटाने के लिए अंग्रेजों ने इसका गठन किया था. अंग्रेजों को फ्रांसीसी सेना से मुकाबला करने में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा था ऐसे समय में अंग्रेजों ने राजपूतों के युद्ध कौशल और वीरता को देखते हुए  1775 में इस बहादुर रेजिमेंट का गठन किया.

fallback

आज ये भारतीय सेना की सबसे पुरानी राइफल रेजिमेंट है. कई सैनिक परिवार ऐसे भी हैं जिनकी पांचवीं पीढ़ी राजपूताना राइफल्स में अपनी सेवाएं दे रही है. 1945 से पहले इसे 6 राजपूताना राइफल्स के नाम से जाना जाता था क्योंकि, तब ब्रिटिश इंडियन आर्मी के 6 रेजिमेंट्स के विलय के बाद इसे बनाया गया था. जानकारी के लिए बता दें कि राजपूत रेजिमेंट और राजपूताना राइफल्स दो अलग-अलग आर्मी यूनिट हैं.

राजपूताना राइफल्स का युद्धघोष है 'राजा रामचंद्र की जय'
राजपूताना राइफल्स का युद्धघोष “राजा रामचंद्र की जय” है. राजपूताना राइफल्स का आदर्श और सिद्धांत वाक्य “वीर भोग्या वसुंधरा” है, जिसका अर्थ होता है कि ‘केवल वीर और शक्तिशाली ही इस धरती का भोग कर सकते हैं. राजपूताना राइफल्स के आक्रामक लड़ाइयों और बहादुर सैनिकों की वीरता के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है.

राजपूताना राइफल्स 1999 में हुए कारगिल युद्ध में लड़ने वाली 7 आर्मी यूनिट्स में से पहली यूनिट थी. प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी राजपूताना राइफल्स के करीब 30,000 सैनिकों शहीद हुए थे. राजपूताना राइफल्स को दूसरे विश्व युद्ध में बहादुरी और श्रेष्ठ युद्ध कौशल के लिए ब्रिटेन के सबसे बड़ा सैनिक सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था. 

राजपूताना राइफल्स ने कई प्रमुख ऑपरेशन को दिया अंजाम
इस रेजिमेंट ने कई मौका पर देश और सेना का सिर गर्व से ऊंचा किया है. राजपूताना राइफल्स ने भारतीय सेना के सभी प्रमुख ऑपरेशन जैसे ‘ऑपरेशन ऑर्किड’, श्रीलंका में ‘ऑपरेशन पवन’, ‘पंजाब के ऑपरेशन रक्षक, जम्मू-कश्मीर के ऑपरेशन रक्षक ‘ऑपरेशन मेघदूत’, ‘ऑपरेशन विजय’, ‘ऑपरेशन पराक्रम’, ‘ऑपरेशन फाल्कन’, ‘ऑपरेशन राइनो’, में भाग लिया है. अशोक चक्र, एक कीर्ति चक्र, छह शौर्य चक्र, चार वीर चक्र, 28 सेना पदक, एक विशिष्‍ट सेवा पदक और सैन्य कमांडरों द्वारा कई प्रशस्ति पत्रों प्राप्त किए हैं. 

fallback

राजपूताना राइफल्स के समृद्ध इतिहास की एक बेहतरीन झलक दिल्ली में स्थित राजपूताना म्यूजियम में देखी जा सकती है. राजपूतों के अलावा, इस रेजिमेंट में जाट, अहीर, गुज्जर और मुस्लिमों की भी एक बड़ी संख्या है. राजपूताना राइफ्लस के जवानों को कड़ी से कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है. उन्हें हर मौसम में लड़ने और दुश्मन का सामना करने के लिए तैयार किया गया है. इस रेजिमेंट के जवान किसी भी परिस्थितियों को सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.

राजपूताना राइफल्स के वीर अपनी मूछों के लिए प्रसिद्ध 
राजपूताना राइफल्स के ज्यादातर सदस्य अपनी विशेष शैली की मूछों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. मध्यकालीन राजपूतों का हथियार कटार और बिगुल राजपूत रेजिमेंट का प्रतीक चिन्ह है. गणतंत्र दिवस के मौके पर भी राजपूताना राइफल्स के जवान राजपथ पर अपनी ताकत और पराक्रम का परिचय देते हैं. जिसे देखकर हर भारतीय को अपनी सेना पर नाज होता है.

fallback

राजपूताना राइफल्स के जवान सिर्फ हथियारों से ही नहीं, बल्कि हौसलों से भी लड़ना जानते हैं. पूरे विश्व में राजपूताना राइफल्स ने भारत का सिर ऊंचा रखा है. आजादी के बाद जब-जब दुश्मनों नें हमारी पवित्र धरती पर अपनी नजरें डाली तब-तब भारत माता की सेवा में लगी राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट के बहादुर जवानों ने उच्च कोटि के युद्ध कौशल दिखाया है.

Read More