Indian Military Drone: भारतीय आर्मी ने जिस प्रकार सैन्य ड्रोन का पाकिस्तान से चल रहे संघर्ष में इस्तेमाल किया, उसने के दो दिनों के भीतर ही अपना प्रभाव छोड़ दिया. 7 मई को भारत ने अपने क्षेत्र से पाकिस्तान में नौ लक्ष्यों को सटीकता से हिट करने के लिए मिसाइलों और ड्रोन का इस्तेमाल किया, जबकि एक दिन बाद भारत के एंटी-ड्रोन सिस्टम ने पड़ोसी देश के 300 से अधिक ड्रोन हमलों को बेअसर कर दिया.
अब भारत के रक्षा ड्रोन देश के सीमावर्ती क्षेत्रों, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन के साथ साझा किए जाने वाले क्षेत्रों की निगरानी कर रहे हैं.
वैसे तो ड्रोन का इस्तेमाल वैश्विक स्तर पर दो दशकों से युद्ध में किया जा रहा है, लेकिन पहली बड़ी ड्रोन लड़ाई अप्रैल 2008 में हुई थी, जब रूस ने जॉर्जियाई हर्मीस 450 ( Georgian Hermes 450) को मार गिराया था. यह इजरायली रक्षा कंपनी एल्बिट द्वारा डिजाइन किया गया एक मानव रहित हवाई सिस्टम (UAS) है.
ड्रोन ने दुनिया का ध्यान तब खींचा जब यूक्रेनी सैनिकों ने अप्रैल 2022 में रूसी युद्धपोत मोस्कवा को काले सागर में डुबाने के लिए तुर्की निर्मित बायरकटर टीबी2 (Bayraktar TB2) आत्मघाती ड्रोन का इस्तेमाल किया. यह एक छोटे विमान के आकार के हैं और लेजर-निर्देशित बमों से लैस हैं.
रूस ने जवाबी कार्रवाई में शाहद ड्रोन और FPV (फर्स्ट पर्सन व्यू) ड्रोन की एक बैटरी का इस्तेमाल किया और अमेरिका द्वारा आपूर्ति किए गए अब्राम टैंकों को नष्ट कर दिया, जो दुनिया के सबसे एडवांस टैंकों में से एक है. यही वह क्षण था जब दुनिया को एहसास हुआ कि ड्रोन और नई तकनीकें भविष्य के युद्धों में एक प्रमुख हथियार बनने जा रही हैं. लेकिन अब वह समय है जब भारत की ड्रोन रक्षा क्षमताओं पर ध्यान तेजी से दिया जाना चाहिए.
DRDO और ड्रोन
स्वदेशी सैन्य ड्रोन बनाने के भारत के प्रयास 1990 में शुरू हुए जब रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO ) ने 'निशांत' (Nishant) मानव रहित हवाई वाहन (UAVs) बनाने का प्रयास किया. अपने स्वयं के ड्रोन विकसित करते समय भारतीय रक्षा सेवाएं अपनी युद्ध रणनीतियों के लिए ड्रोन भी आयात करने लगी थीं. पिछले कुछ वर्षों में भारत ने इजराइल से हेरॉन I, सर्चर Mk II और हारोप लोइटरिंग हथियारों (Heron I, Searcher Mk II, Harop) की कई यूनिट आयात की हैं और इन्हें रणनीतिक रक्षा ठिकानों पर तैनात किया गया है.
हाल ही में भारत ने लाहौर पर जब हमल किया तो उसमें Harop का इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, भारतीय सेना ने अभी तक हमलों की पुष्टि नहीं की है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, 1985 और 2014 के बीच दुनिया के UAV आयात में भारत का सबसे बड़ा हिस्सा (22.5%) था, उसके बाद यूके और फ्रांस का स्थान था. उनमें से लगभग सभी इजरायल से थे.
जून 2021 में 200 मिलियन डॉलर के सौदे में भारत ने चीन की सीमा से लगे लद्दाख क्षेत्र में निगरानी के लिए चार इजरायली निर्मित हेरॉन ड्रोन पट्टे पर लिए, जिनमें ऑटोमैटिक टैक्सी-टेक ऑफ और लैंडिंग (ATOL) सिस्टम, अल्ट्रा-लॉन्ग-रेंज सर्विलांस कैमरे और अन्य अत्याधुनिक गैजेट थे.
भारत किन ड्रोन्स पर कर रहा काम?
बेशक भारत के पास अपना कोई ड्रोन नहीं, लेकिन कई सारी योजनाएं चालू हैं और जल्द खतरनाक हथियार भारतीय सेना को मिलने वाले हैं. DRDO और संबंधित संस्थान जैसे एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ADE) प्रयोगशाला अभ्यास, घातक, रुस्तम-1, तापस, इंपीरियल ईगल, कपोतका, लक्ष्य, निशांत, गोल्डन हॉक, पुष्पक और स्लीबर्ड (Abhyas, Ghatak, Rustom- 1, TAPAS, Imperial Eagle, Kapothaka, Lakshya, Nishant, Golden Hawk, Pushpak, Slybird) जैसे स्वदेशी ड्रोन प्रोजेक्ट विकसित कर रहे थे. पिछले कुछ सालों में इनमें से कुछ का व्यावसायिक उत्पादन भी शुरू हो गया है.
दो प्रमुख पीपीपी परियोजनाएं थीं नेत्रा, जिसे मुंबई स्थित आइडियाफोर्ज और रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (R&DE) ने विकसित किया था और HAL CATS वॉरियर ड्रोन कार्यक्रम न्यूस्पेस R&D और HAL द्वारा बनाया गया था. HAL CATS में मानवयुक्त लड़ाकू विमान को झुंड में उड़ने वाले UAVs और मानवरहित लड़ाकू हवाई वाहनों (UCAVs) के एक सेट के साथ जोड़ा गया है, जिससे गहरे पैठ वाले हमलों और उच्च ऊंचाई पर निगरानी करना संभव हो गया है.
जुलाई 2021 में DRDO ने एक एंटी-ड्रोन सिस्टम विकसित किया, जो काउंटर अटैक करने में सक्षम है, जिसमें डिटेक्शन, सॉफ्ट किल (हमलावर ड्रोन के संचार लिंक को जाम करना) और हार्ड किल (हमलावर ड्रोन को नष्ट करने के लिए लेजर-आधारित हार्ड किल) शामिल हैं. इस स्वदेशी DRDO काउंटर-ड्रोन तकनीक को BEL और अन्य कंपनियों को ट्रांसफर किया गया.
इसके अलावा, DRDO ने एक ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डेमोस्ट्रेटर (AFTD) विकसित किया है, जो एक तेज गति वाला UAV है जो जमीन पर आधारित रडार, बुनियादी ढांचे या पायलट पर निर्भर किए बिना, स्वायत्त रूप से उतरने में सक्षम है. जुलाई 2022 में इसने अपनी पहली उड़ान भरी. भारतीय वायुसेना Ghatak जैसे बड़े, स्टेल्थी UCAVs भी विकसित कर रही है.
एक और चालू परियोजना आर्चर-एनजी (Archer-NG) है, जो एक एडवांस MALE (मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस) UAV है, जो विकास के अधीन है. पिछले साल अक्टूबर में भारत और अमेरिका ने एक अंतर-सरकारी समझौते के माध्यम से जनरल एटॉमिक्स द्वारा निर्मित 31 MQ-9B सशस्त्र हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (HALE) रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम (RPAS) की खरीद के लिए 3.5 बिलियन डॉलर का सौदा किया था.
निजी खिलाड़ी भी अहम
अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसार भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमला करने के लिए स्काईस्ट्राइकर (SkyStriker) आत्मघाती ड्रोन का इस्तेमाल किया था. बेंगलुरु स्थित अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज (2018 में अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज ने अधिग्रहित किया) ने इसे इजरायल की एल्बिट सिस्टम्स के साथ साझेदारी में बनाया था.
वहीं, हैदराबाद में अडानी एल्बिट UAV कॉम्प्लेक्स भारत में पहली निजी UAV प्रोडक्शन फैसिलिटी है और इजराइल के बाहर एल्बिट की पहली फैसिलिटी है, जिसने हर्मीस 900 UAV का निर्माण किया था.
अल्फा जैसे कई फ्रंटलाइन डिफेंस ड्रोन हैं. हाल के वर्षों में एंटी-ड्रोन निर्माता भी उभरे हैं. सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों- HAL, BEL और भारत डायनेमिक्स के अलावा सैन्य ड्रोन बनाने वाली निजी कंपनियों में IdeaForge, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स, अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज, पारस डिफेंस एंड एयरोस्पेस, जेन टेक्नोलॉजीज, सागर डिफेंस, रतन इंडिया और गरुड़ एयरोस्पेस जैसी अग्रणी कंपनियां शामिल हैं. वहीं, JSW UAV लिमिटेड और शील्ड AI, एक प्रमुख अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकी कंपनी है, ये अब शील्ड AI के 'V-BAT' (एक मानव रहित हवाई प्रणाली (UAS)) बनाने के लिए तेलंगाना में ₹800 करोड़ का निवेश कर रही है.
बता दें कि भारतीय सैन्य ड्रोन बाजार ने 2024 में 1,527.1 मिलियन डॉलर का राजस्व कमाया और 2030 तक 4,082.1 मिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. ग्रैंड व्यू रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 से 2030 तक इसके 17.9% की CAGR से बढ़ने की उम्मीद है.
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